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#patriotic poem
पराक्रम दिवस और गणतंत्र दिवस पर कविता:
अब देश जाग्रत हो रहा,
नेताजी को जल्द बुलाओ।
सो रहा जो युवा आज,
उसे उठाओ, उसे जगाओ।
नई क्रांति की चलो बालो मशाल
इस गणतंत्र नहीं हैं कोई भी सवाल।
पराक्रम दिवस पर नेताजी के
तप को आत्मसात करो।
उस स्वतंत्रता के मतवाले का
युद्ध घोष ले साथ चलो।
जाग रहा है देश नाच रहा है अरि पर काल।
इस गणतंत्र नहीं है कोई भी सवाल।
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भारत नही त्रिपिटक लेकर
अब शांति प्रस्ताव पढ़ता है।
देश सत्य के लिए जीत की
परिभाषा खुद गढ़ता है।
विश्व समझे भारत की दृष्टि विशाल।
इस गणतंत्र नहीं है कोई भी सवाल।
जो रहे अब तक भ्रम में
गंगा- जमुनी तहजीब रटा करते थे।
जो रहे अब तक घात क्रम में,
देश को जर्जर किया करते थे।
उनकी पहचान हुई, टूटा भ्रमजाल।
इस गणतंत्र नहीं है कोई भी सवाल।
अब वीर देश की जीत का
मुकुट धारण करता है।
प्रलय के मेघों का मुख मोड़
चट्टानों में राह बनाया करता है।
देश दुश्मनों की ताड़ चुका हर चाल।
इस गणतंत्र नही है कोई भी सवाल।
कुछ छद्म बुद्धिजीवी क्यों,
आस्थाओं पर करते हैं प्रहार?
उन्हें पता होना चाहिए,
नहीं देश को यह स्वीकार।
समझो हमारी भाषा वरना जाओगे पाताल।
इस गणतंत्र नहीं है कोई भी सवाल।
आओ देश के लिए जगाओ अंगार को,
आओ देश के लिए स्वर दो हुंकार को।
आओ देश के लिए गुंजाओ दहाड़ को।
आओ देश के लिए झुकाओ पहाड़ को,
जवानियों में धधक रहा है लाल - लाल ज्वाल ।
इस गणतंत्र नहीं है कोई भी सवाल ।
©ब्रजेंद्रनाथ