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Friday, June 26, 2020

छोड़ महल चले वीराने को (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poemonramvanvaas
#रामवनगमन #ramvangaman

परम स्नेही मित्रों, 
पिच्छले २९ सितम्बर को डॉ राधानंदन सिंह जी के आमंत्रण पर मैं मारुती सत्संग मंडल पुणे के वेबिनार से जुड़ा।  डॉ राधा बाबू के कर्मफल सिद्धांत पर दिए गए प्रेरक वक्तव्य के बाद मैंने अपनी दो भक्तिपूर्ण रचनाएँ प्रस्तुत की।  एक योगेश्वर श्री कृष्ण पर और दूसरी भगवान राम के वन गमन पर। इसी का यूट्यूब वीडियो  लिंक मैं दे रहा हूँ। आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत है। सादर:
--ब्रजेंद्र नाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/fJES-jIN7cw























छोड़ महल चले वीराने को

पिता का वचन निभाने को
रघुकुल का मान बचाने को।
राम, लखन सीता समेत
छोड़ महल, चले वीराने को।

पुष्प सभी थे विस्मित
रोये अश्व, रोयी मैना।
चेतन की कौन कहे वहाँ
बहे नीर जड़ के नैना।

चेतना शून्य, दौड़ी जनता,
रोती रह गयी माँ की ममता।
करुणा का बादल बरस पड़ा,
यह हाहाकार नहीं थमता।

हमें छोड़, मुंह को न मोड़,
हे प्रभु राम, अयोध्यानाथ।
हमने किया कोई अपराध ?
तो क्यों कर रहे हमें अनाथ?

गर है अपराध नहीं मेरा
क्यों दंडित किये जाते हो?
नैनों के अमृत वर्षण से,
क्यों वंचित किये जाते हो?

क्या परिवार के वचनों का है
अधिक महत्व, पूछे जनता?
क्या जनता के लिए कर्तव्यों
का कोई महत्व नहीं होता?

हे राम, अवध की प्रजा से
बड़ा नहीं कोई भी वचन।
जनता के लिए रुकना होगा,
तोड़ तुम्हें सारे बंधन।

प्रजा का मत सबसे ऊपर
हम साथ चलेंगे जग होगा।
जहां चलेंगें अवधनाथ
जनता का वहीं अवध होगा।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

Thursday, June 25, 2020

इरादों को जगाता हूँ (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poemonlife'sphilosophy
















इरादों को जगाता हूँ

जिंदगी की पलकों पर सपने सजाता हूँ।
यादों को सुलाकर, इरादों को जगाता हूँ।

उन सायों के पीछे, छोड़ आया था जिन्हें,
उनके हाथों की छुवन, हंसकर मिटाता हूँ|

वक्त तो अनसुलझी रेशों का घेरा है यहाँ,
उन्हीं रेशों से जिंदगी की राहें सजाता हूँ |

एक पेड़ जिसपर पखेरू सो रहे थे रात भर,
उस छाँव में हर दोपहर मैं भी सो आता हूँ।

सीधे सच कहने से मैंने किनारा कर लिया,
अब झूठ से संवादों का सिलसिला चलाता हूँ|

शाहंशाह का है महल दरिया के किनारे पर,
वहाँ गुम झोपड़ियों की फरियादे सुनाता हूँ। 

एक नदी जो बहती जा रही छल - छल कर,
उसे समन्दर तक पहुँचने की कहानी बताता हूँ।

---ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

Tuesday, June 23, 2020

ममता की गोद (कविता) #vatsalya

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#poemonmother'slove
#vatsalya

















ममता की गोद

बालक का तन,
माता का लगा मन,
आँचल है नम
ममता पोर पोर है।
आनन पर स्वेद कण,
काम में उलझा तन,
बोझ नहीं होता कम,
स्नेह सराबोर है।

ठुमक-ठुमक चलता,
उंगली पकड़ लेता,
मन की भाषा ,
खोजती परिभाषा है।
आँखे हैं चंचल,
चित्त है चपल
माँ की बंधी आशा,
जगाती अभिलाषा है।

स्थिर हुआ मन
खुलता वातायन
हवाओं में सुधियाँ
आयीं संग संग है।
तन है थकित, पर
हृदय पुलकित,
उमंगों की तटिनी में
उठती तरंग है।

आजा मेरे कान्हा,
माँ को न तू सता,
ममता की गोद सूनी
मेरी सौगंध है।
मैया सौगंध ना दे
वापस इसे ले ले
तेरी गोद से ही मेरा
जीवन-संबंध है।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

Sunday, June 21, 2020

राही तू चलता जा (कविता) #motivational

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#motivationalpoem




















राही तू  चलता जा


राही तू  चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।

राहों पर कंकड़ - पत्थर,
टूट - टूटकर धूल बन गए।
वे सहलाती राही के
पैरों के नीचे फूल बन गए।

नहीं रहेगी थकन,
छाँव के नीचे बना है रास्ता।
राही  तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।

चिलचिलाती  धूप खिली हो,
सर पर आग है बरस रहा।
तू रुकना मत, तू थकना मत,
तेरी आहट को कोई तरस रहा।

बाधाओं, अवरोधों से तुम,
जोड़ चलो एक रिश्ता।
राही  तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।

आंधी में, तूफानों में,
नीरव वन में, सिंह - गर्जन हो।
साथी रुकना नहीं तुम्हें,
भले तड़ित-वाण वर्षण हो।

यादें अपने परिजनों की,
लाद चलो ना जैसा बस्ता।
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।

सत्य शपथ  ले, चले चलो तुम,
विजयपथ पर बढे चलो तुम।
अशुभ संकेतों से निडर हो,
रश्मिरथ पर चढ़े चलो तुम।

तन बज्र -सा, मन संकल्पित,
झंझावातों में समरसता।
राही तू चलता जा
चलने से तेरा वास्ता।


©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
   जमशेदपुर, तिथि : मई, 2016.


इस कविता को मेरी आवाज में मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के इस लिंक पर सुनें। कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य लिखें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं।

Link: https://youtu.be/zxdTXPQfEQM




Wednesday, June 17, 2020

गलवान घाटी (लद्दाख) में गतिरोध पर (कविता) #galwanvalley#indochinesestandoff

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#galwanvalley
#indochinesestandoff#laddakhstandoff











चीन के साथ गलवान में गतिरोध 

बर्फीली घाटी को तुमने स्याह किया
बहती शांत नदी को तुमने दाह दिया।
मेरे अंदर जगा दिया भीषण तूफानों को,
बदला लूंगा जितना तुमने आह दिया।

लद्दाख सीमा पर दुस्साहस दिखलाया
निशा-प्रहर में घुसने का साहस दिखलाया।
चौकस था मैं, भाँप रहा तेरी चालों को,
सिंह - गुफा में जाकर अनायास जगाया।

अब तू देखेगा हिंदी तोप - दहानों को,
तू देखेगा पवि से घहराते उड़ानों को।
बीस सैनिकों को तुमने है शहीद किया,
अब मारूंगा तेरे अगनित जवानों को।

युद्ध के बादल घन मंडल में मंडरायेंगे,
नक्षत्र, गगन भी लाल, दिशाएं टूटेंगी।
भीषण आयुध का होगा वर्षण तुम पर,
तेरी हठधर्मी से तकदीर धरा की फूटेगी।

चोटी का सूरज दिखेगा लाल वहां
नीले अम्बर में टूटेंगे तारे अनगिन।
तब महाविनाश का नाचेगा काल वहां,
तू बैठ बिताएगा रण में लाशें गिन गिन।

मैं अपनी कलम से श्रृंगार नहीं लिखूँगा,
मैं अपनी कलम का आचार बदल दूँगा।
आज से प्रेम का व्यापार नहीं लिखूंगा,
मैं अपनी कलम का व्यवहार बदल दूँगा।

रचनाओं में कलम को अंगार बनाऊंगा।
सेनानी के लिये इसे हथियार बनाऊंगा।
बून्द लहू की गिरी वहां जिस चोटी पर
गाड़ तिरंगा जीत का त्यौहार मनाऊंगा।

शोणित की स्याही में चलकर
सृजन का आकाश बदलता है।
जब आग कलम को लगती है,
तब ही इतिहास बदलता है।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
पवि-वज्र, thunder bolt 

मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर जाकर पूरी कविता मेरी आवाज में सुनें। चैनल को सब्सक्राइब करें, यह निःशुल्क है। कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें, आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं। सादर!
Link: https://youtu.be/L8l0nCNcqNg

Saturday, June 13, 2020

शृंगार के छः छंद हाइकू के (कविता)

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#hikuchhand













शृंगार के छः छन्द: हाइकु

हाइकु सृजन:

भींगा बदन
सुलगाये अगन
तपता मन ।

छनती धूप
खिला इंद्रधनुष
जैसा आनन ।

कर शृंगार
निहारती दर्पण
चंचल मन ।

लतिका गात
अरुणिम प्रभात
भटका मन ।

नवीन पल
उड़ रहा आँचल
बहका मन ।

तेज रफ्तार
घड़ी की टिक टिक
छोटा मिलन ।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
(तस्वीर गूगल से साभार)


Thursday, June 11, 2020

युद्ध बड़ा भीषण होगा (कविता) #mahabharat

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#mahabharatpoem
#mahabharatkekrishn













युद्ध बड़ा भीषण होगा

(अद्भुत रस)

कृष्ण सभा में खड़े हुए,
कौरव सभी थे अड़े हुए।
कृष्ण ने एक सलाह बतायी,
रण रोकने की राह दिखायी।

दे दो पांडवों को गाँव पांच,
तेरे राज्य पर आए न आंच।
दुर्योधन था मद में चूर,
कृष्ण को देख रहा घूर।

प्रस्ताव नहीं उसको भाया,
दुर्योधन अपने पर आया।
पकड़ो भागे नहीं ग्वाल,
चल ना दे ये कोई चाल।

बांध इसे कारा में डालो,
इसकी सारी युक्ति निकालो।
जानता है यह इंद्रजाल,
कर दो इसका बुरा हाल।

कृष्ण का क्रोधानल दीप्त हुआ,
उठी भुजाएं मुख प्रदीप्त हुआ।
उनका प्रकट हुआ विराट रूप,
सभा तपने लगी ज्यों तेज धूप।

सारे सभासद हुए अचम्भित,
भीष्म, द्रोण, भी थे विस्मित।
भुजा उठा, किया उदबोधन,
आ मुझे बांध, तू दुर्योधन।

मैं दिखलाता हूँ परिणाम,
जब युद्ध चलेगा अविराम।
जब लाशें बिछी होंगी सर्वत्र,
ढूढेंगे अपनों को यत्र तत्र।

तुम कहाँ गिरे हो पहचानो
तुम कहाँ पड़े हो अब जानो।
मैं उद्घोष किये जाता हूँ,
गति काल की बतलाता हूँ।

महाविनाश जब छायेगा,
तब तू कैसे बच पायेगा?
रणचंडी थाल सजायेगी,
आहुति तेरी पड़ जाएगी। 


कौरवों में कोई नहीं होगा,
जो नहीं हुआ, यहीं होगा।
संधि नहीं अब रण होगा,
युद्ध बड़ा भीषण होगा।

आसुरी शक्तियाँ भूलुंठित होंगी,
सद वृत्तियाँ संगठित होंगी।
सत्य सनातन धर्म ही रह जायेगा,
विश्व में शांति पर्व मनाया जाएगा।
शांति पर्व मनाया जायेग।
(महाभारत युद्ध के बात इसकी कल्पना की गई होगी)

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

इस कविता को मैंने मारुति सत्संग, पुणे के वेबिनार में 8 दिसंबर को सुनाया। इसका यूट्यूब वीडियो/ ऑडीयो लिंक मैं दे रहा हूँ:
https://youtu.be/sIgZSmh79ao


Monday, June 8, 2020

चीर नापने नभ को(कविता) #patriotic

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#patriotichindipoem
#womenpilot













चीर नापने नभ को

(भारतीय वायुसेना में तीन महिलाओं, अवनि चतुर्वेदी, मोहना सिंह जितवाल, भावना कंठ  को 2016 में पहली बार पायलट बनने पर।)

चल पड़ी वह लाँघ देहरी,
चीर नापने नभ को,
अग्नि-दाह से भस्म करने
अरि-समूह-शलभ को।

पहन वेश सेनानी का 
वह बनी देश की शान है।
धूल चटाने दुश्मन को
छिड़ा समर - अभियान है।

देखो वह नीले पथ पर,
गगन में भर रहा उडान।
घहरात पवि - सा विराट
स्वर ध्वनित गुंजायमान।

वह वायु-युद्ध की सेनानी,
बरसाएगी अग्निवाण। 
भयाक्रांत विवर्ण शत्रु का
मर्दन करेगी मिथ्या मान। 

अम्बर में गरजा विमान,
घिर गया गिद्धों का झुंड।
ध्वस्त हुए आतंक - शिविर
बिखर गये उनके नर मुंड ।

शत्रु की छाती का शोणित
रण चंडी बन पान करेगी।
भारत माँ की बिन्दी को
पुत्रियाँ प्रभावान करेगी।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

Sunday, June 7, 2020

तू बाँटता चल अपनी मुस्कराहटें (कविता)

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#poemmotivational










तू बाँटता चल अपनी मुस्कराहटें

जो ना मिला तुझे उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल।

तू बांटता चल सबों से अपनी मुस्कराहटें,
हो सके तो आंसुओं को छुपाता चला चल।

जो लेता दूसरों से याद रख उम्र भर,   
जो देता है तू उसे भुलाता चला चल।

तू कुछ दे सका है, ये उसकी नेमत है,
शकून बांटता चल, सौगातें लुटाता चल।

जिंदगी कि परतें कुछ गीत लिख गयीं,
तू राही  है उसे गुनगुनाता चला चल।

एक राग - सी फाग  में उभर के उठी है,
एक उत्सव है जिंदगी मनाता चला चल।

मिलना बिछड़ना,  बिछड़ना  फिर मिलना,
सफर का सिलसिला है, भुलाता चला चल।

धुंध छँटी, उग रहा सूरज क्षितिज पर
तमस के कुहे को मिटाता  चला चल।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/c3wMNDRYiyE

Friday, June 5, 2020

जल से जीवन परिपूरित कर (कविता)#enviroment

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#environmentpoem
#savewater













जल से जीवन परिपूरित कर 
(जल की यात्रा पर आधारित)

उष्ण ताप वाष्पित होता है,
जलवाष्प बादल बनता है।
अल्हड शोख जवानी जैसी,
झूमता, दौड़ता छा जाता है।

पर्वतों पर आच्छादित हो
नाचता गाता,  शोर मचाता।
तरु - शाखों को नहलाता,
शिला छोड़, है राह बनाता।

उतरता है नीचे मैदानों में,
जीवन - जल बन जाता है
अमृत - पावन - संचित घट,
उड़ेलता, सरस बनाता है।

जल यौवन - राग सुनाता,
गाता, मृदंग, बजाता है।
शहनाई की टेर सुनाता,
यमुना- तट पर लहराता है।

कदम्ब की छाओं में सुस्ताता,
कृष्ण की वंशी सुनने आता। 
दुकूलों को आप्लावित करता,
कृषक - कार्य में हमें लगाता।

धरा अन्न से परिपूर्ण हो,
धानी हो माता का आँचल।
मानव - जीवन पोषित हो,
पर्व मने जीवन में अविरल।

हृषिकेश में गंगा - जल बन,
हर की पौड़ी को है धोता,
प्रयाग - राज में बनी त्रिवेणी,
बनारस के घाटों पर सोता।  

आगे बढ़ता पाटलिपुत्र हो,
सुल्तानगंज में उत्तरायण ।
बढ़ता जाता, मस्त चाल में,
सगर-पुत्रों का उद्धारक बन।

यह जल क्यों दूषित हो चला,
मानव तूने क्या कर डाला?
अमृत का घट तेरे पास था,
तूने उसमें विष भर डाला?

अपना कचरा न सका संभाल,
डाल दिया इस पावन तट पर।
सूखती जा रही धार अमृतमयी,
कंकड़ - कीचड़ घाटों में भर । 

सूख गयी  जो  धार नदी की,
पसर गयी कचरे में फँस कर,
कैसे विहंग की चोंच चखेगी?
तृषित  
रहेगा हर उर अंतर।

धार बूँद बन पसर जाएंगी
क्या चोंच में समां पाएंगी ?
क्या प्यास बुझा पाएंगी ?
जीवन सरस बना पाएंगी?

क्या अम्बु-अस्तित्व धरा पर,
अतीत के पन्नो में ही दिखेगा?
यह पातक मानव तू सहेगा,
तुझ पर भीषण वज्र गिरेगा। 

अब भी बचा ले इस अमृत को,
अग्रिम जीवन को सिंचित कर।
पीयूष आपूरित अभ्यंतर हो,
जल से जीवन परिपूरित कर।
जल से जीवन परिपूरित कर।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

नोट: तस्वीर मेरे बड़े लडकें शुभेंदु (सर एच एन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल, मुम्बई में कार्यरत) द्वारा बनायी गयी है।

Monday, June 1, 2020

लॉक डाउन खुला (कविता)

#BnmRachnaWorld
#coronaunlockdown












लॉक डाउन खुला

लॉक डाउन खुला
तो हुए नहीं स्वच्छंद,
बस थोड़े ढीले हुए हैं,
नियमों के प्रतिबंध ।

अभी भी छोड़े नहीं,
दूरी और सजगता।
मास्क लगाकर घूमें
निभाये आत्मीयता।

महामारियों के काल में
कोरोना काल है विकट
याद करेगी सदी इसे
मानव करता छटपट।

जाएँ कहाँ, निभाएं कैसे,
उन रिश्तों के अनुबंध।
जिनसे हमारे अस्तिव
का जुड़ा हुआ संबंध।

नदी दुकूल निर्मल हुआ,
नीर हुआ उज्ज्वल।
गगन वितान निरभ्र हुआ,
चाँद हुआ चंचल।

आनंद पर्व मनाने का
नहीं मुहूर्त विशेष।
कोरोना विषाणु तैर रहा
कब कर जाए प्रवेश?

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/2JwtPUy4u_M 

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...