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Friday, March 11, 2022

दिल से बजाना (कहानी) # लघुकथा

 #BnmRachnaWorld

#laghukatha #दिलसेबजाना











दिल से बजाना
ऋषभ अब आठवीं में आ चुका था। वह बहुत अच्छा वायलिन बजाता था। इसी उम्र में वह इतनी प्रवीणता प्राप्त कर चुका था, जिसे कई वर्षों तक अभ्यास करने के बाद भी लोग नहीं प्राप्त कर पाए थे। वह हर दिन अपने  गुरु जी से  वायलिन सीखने जाता था। घर में वह सीखे हुए पाठ का दो घंटे अभ्यास करता। उसके बाद ही वह अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों को पढ़ने बैठता। यही क्रम कई वर्षों से चल रहा था।
आखिर वह दिन आ ही गया जिसका उसे इंतज़ार था। एक दिन बाद शहर के सबसे बड़े हॉल में उसका वादन आयोजित किया गया था। देश के प्रसिद्ध वायलिन वादक इस बालक की प्रतिभा के साक्षी बनने वाले थे। वह अपने गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करने गया। गुरु जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा था कि दिल से वायलिन बजाना। उसके हाथों में एक कागज का टुकड़ा थमाते हुए कहा कि इसे वायलिन बजाने के पहले खोलना और अपने सामने रख लेना।
वह बहुत असमंजस में था। वह तो हाथों और उँगलियों की मदद से वायलिन बजाना जानता था। दिल से कैसे बजा सकता था। दिल को तो निकालना मुश्किल था। अगर दिल निकाल भी लिया जाय, तो उसके हाथ और उंगलियाँ तो होती नहीं। उससे कैसे वायलिन बजेगा। उसकी समझ में  नहीं आ रहा था, वह क्या करे? इसी उधेड़बुन में आज उसने अभ्यास भी नहीं किया था।
पूरा हॉल दर्शकों से भर चुका था। बड़े से मंच के बीच में एक और छोटा मंच बनाया हुआ था। प्रसिद्ध वायलिन वादक हॉल के आगे की प्रथम पंक्ति में बैठे थे। उसका नाम पुकारा गया था। वह उदास और थके कदमों से छोटे से मंच की ओर बढ़ रहा था। उसे गुरु जी याद आ रहे  थे। उनकी बात  "दिल से बजाना।" उसके कानों में गूंज रहे थे। वह मंच पर चढ़कर निर्धारित स्थान पर बैठ गया। वह गुरु जी के दिये हुए कागज के टुकड़े को सामने खोलकर बैठ गया। कागज के टुकड़े में एक तितली की तस्वीर बनाई हुई थी।
उसके हाथ कांप रहे थे। उसकी उंगलियाँ सुन्न हो रही थी। उसने वायलिन को अपनी ठुड्डी के नीचे टिकाया ही था कि एक तितली उड़ती हुई आयी और उसके कंधे पर आकर बैठ गयी। उसके हाथों और उँगलियों में ऊर्जा आ गयी। उसने बो को  हाथ में लिया उसकी उंगलियाँ तारों पर चलने लगी थी। तितली धुन गुनगुना रही थी। उसके संकेत गुरुजी के दिये हुए कागज पर उभर रहे थे। तितली की धुन पर वायलिन से निःसृत  संगीत लहरियों से हॉल गूंज रहा था। लोग स्तब्ध थे। पूरे सभागार में वायलिन के तारों से निकले स्वर थे और श्रोताओं की सांसें थी। एक घंटे से अधिक तक  स्वरों और सुरों की गंगा बहती रही और लोग उसमें  अवगाहन करते रहे, डूबते-उतराते रहे। उसने वायलिन वादन को विराम दिया। सभागार में स्तब्धता छायी थी। लग रहा था कि वायलिन की ध्वनि अभी भी गूंज रही हो।
जब आमंत्रित प्रासिद्ध वायलिन वादक मंच पर आ गए तब ऋषभ ने उनके  चरणों में झुककर प्रणाम किया। उन्होंने उसे हृदय से लगा लिया। अपने घुटनों पर बैठे हुए और उसको हॄदय से लगाये हुए ही उन्होंने माइक पर कुछ कहा  था। लेकिन उसे तीन ही शब्द याद रहे। "आज ऋषभ ने 'दिल से बजाया' है।" हॉल में तालियाँ बजती रहीं। अब उसे गुरुजी के सूत्र - वाक्य "दिल से बजाना" का अर्थ समझ में आ गया था।
©ब्रजेन्द्रनाथ

7 comments:

रेणु said...

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति आदरनीय सर।सच में सुर और संगीत वही सार्थक है जो दिल से निकले और दिल तक पहुँचे।ऋषभने गुरु जी के संदेश को बखूबी समझा और अपनी कला को नयी उँचाई दी।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया रेणु जी, नमस्ते👏! मैंने यह लघुकथा इंग्लिश के किसी ऑथर के द्वारा रचित कहानी से प्रेरित होकर लिखी है। आपने मेरी इस रचना पट अपने बहुमूल्य विचारों को प्रकट कर जो मान दिया है, उससे अभिभूत हूँ। आपको हृदय की गहराइयों से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी, नमस्ते👏! कल, 15 मार्च के 'पांच लिंको के आनंद' के चर्चा मंच में मेरी इस रचना को चयनित करने के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Anita said...

सुंदर कहानी !

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय अनिता जी, सराहना के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Meena Bhardwaj said...

बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी कहानी ।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया मीना भारद्वाज जी, आपके सराहना के शब्दों से मुझे सृजन की प्रेरणा मिलती रहेगी। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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