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Friday, November 1, 2019

जगाने आ रहा हूँ (कविता)

#BnmRachnaWorld
#motivational#poemforyouth





 गत मंगलवार तारीख 29 अक्टूबर 2019 को अखिल भारतीय साहित्य परिषद, जमशेदपुर के तत्वावधान में एस टाइप आदित्यपुर स्थित सिंहभूम ब्यॉयज क्लब के काली पूजा पंडाल के प्रांगण में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शहर के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यान्वेशी शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मैने की और संचालन दीपक वर्मा जी ने किया। अन्य साहित्यकारों में आदरणीया उमा सिंह किसलय, सोनी सुगंधा, डॉ कुमारी मनिला, माधुरी मिश्रा, उमारानी पांडेय, सूरज सिंह राजपूत, बसंत कुमार, मनीष सिंह वंदन, सोनू पांडेय और जादूगोड़ा से आये बालकृष्ण आजमगढ़ी ने भी मंच की शोभा बधाई।
परिषद की संरक्षिका आदरणीया मंजू ठाकुर व संरक्षक जयंत श्रीवास्तव जी के साथ शशि प्रकाश, प्रकाश मेहता, संजीव सिंह, नीरू सिंह टुडू, संजय चाचरा और उपस्थित आयोजक मंडल के सदस्यगणऔर सुधी श्रोताओं ने कार्यक्रम को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की।
मैंने जो कविता सुनाई उसमें युवाओं को जागने का आह्वान किया गया है। कविता की कुछ पंक्तियाँ मैं दे रहा हूँ। पूरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर जाकर सुने और चैनेल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। आपके विचार बहुमूल्य है, इसलिए कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। सादर!
ब्रजेंद्रनाथ

जगाने आ रहा हूँ…

लोरियाँ सुन - सुन कर, सो चुके बहुत तुम,
रास के सपनों में, खो चुके बहुत तुम।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


मैं एक हाथ से उठाके, सूर्य को उछाल दूँ।
मैं चाँद को भींचकर, पीयूष को निकाल दूँ।
धरती की काया है प्यासी,
फैलती जा रही घोर उदासी।
अमृत - रस कण - कण में, बहाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


सावधान, मिलावटी, मुनाफाखोरों,
सावधान, बेईमानों, रिश्वतखोरों।
शोणित भरे थाल से, काल के कपाल से,
लाल - लाल रक्त – कण, बहाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


कौन टोक सकता है, सत्य - सपथ मेरा?
कौन रोक सकता है, विजय - रथ मेरा?
ले मशाल हाथ में, अग्नि - पुंज साथ में,
क्रांति का प्रयाण गीत, गाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।

अनाचार, अत्याचार देख, जो भी चुप रहता है,
उसकी रगों में रक्त नहीं, ठंढा - जल बहता है।
तेरी शिराओं में खून का,
उबाल उठाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


तेरी नसों में खून, शिवा का महान है।
सोच ले, दबोच ले, यहाँ जो भी शैतान है।
उठा खड्ग तू छेदन कर, ब्यूह का तू भेदन कर।
तेरे साथ शौर्य - गान, गाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।

तेरी   लेखनी से, सिर्फ प्रेम - रस ही झरता।
तुझे वेब जाल पर, सिर्फ पोर्न ही है दिखता।
जवानी के दिनों को, मत यूँ ही निकाल दो,
मांसपेशियों को कसो तुम, फौलाद - सा ढाल दो।
तुझे मैं सृजनधर्मा, बनाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत सुनाने आ रहा हूँ।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/x5F773eHvJ0

3 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत ही लाजवाब प्रेरक गीत....
शब्द नहीं हैं सराहना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया सुधा जी, आपके उतसाहवर्धक उदगारों और सकारात्मक टिप्पणी ने मुझे अभिभूत कर दिया है। आप मेरे इस ब्लॉग पर मेरी अन्य रचनाएँ भी पढ़ें और अपने विचार दें। आप अमेज़न किंडल के लिंक पर मेरा प्रेम कहानियों पर आधारित लघु उपन्यास "आई लव योर लाइज" डाउनलोड कर पढ़ें और कस्टमर रिव्यु में अपने विचार व्यक्त करें:
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