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Sunday, July 17, 2022

क्यों मचा रहे हो घमासान? (कविता)

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#poemonunmad







15 जुलाई 2022:

पिछले कुछ दिनों से घट रही घटनाओं से ह्रदय व्यथित, चेतना उद्वेलित और मन आक्रोशित है. इन्हीं भावों को समाहित करते हुए प्रस्तुत कर रहा हूँ, अपनी लिखी कविता जिसका शीर्षक है, "क्यों मचा रहे हो घमासान?"  कविता मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के नीचे दिए गए लिंक पर भी सुनें. चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है, तो सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें. सादर!

क्यों मचा रहे हो घमासान?

मैं ही सही और सभी गलत,
बेवजह  फैलाते हो  नफरत.
सब कुछ सहते ही रहते हैं वे,
मत रहना पाले ऐसी ग़फ़लत.
बेमानी परिभाषायें गढ़कर
कहते हो यही है महाज्ञान.
क्यों मचा रहे हो घमासान?

बिगड़े बोल, बोल बोल कर,
माहौल  प्रदूषित करते हो.
शब्द ब्रह्म को लज्जित कर,
विष वमन किया करते हो.
सहन नहीं अब रंच मात्र भी
देवी देवताओं का अपमान.
क्यों मचा रहे हो घमासान?

जो नहीं मानते बात तेरी
उनको काफिर तुम कहते हो,
हऱ मतभिन्नता रखने वाले को
वाजिब ए क़त्ल तुम कहते हो.
हथियारों से हल होते मसले तो
धरती बन गई  होती कब्रिस्तान.
क्यों मचा रहे हो घमासान?

चराचर जगत का सत्य एक है,
कर्मों का फल पाता है मानव.
जो दुष्कर्म में लिप्त रहते हैं,
उनको कहते हैं हम दानव.
इसलिये सुन ले ये चेतावनी
मत खोल अपनी जहरीली जुबान
क्यों मचा रहे हो घमासान?

छिन्न भिन्न किया ताने बाने को
कठिन कुठार  गर निकल गया,
शोणित का प्यासा  वाण  अगर
तरकश से बाहर निकल गया.
तो कोई क्या अंदर रख पायेगा
घर में छुपाकर असि और म्यान.
क्यों मचा रहे हो घमासान?

सही समझ नहीं है अगर तुम्हें
मिल बैठ मसलों पर संवाद करो.
उन्मादी, उपद्रवी बनकर तुम,
राष्ट्र धन को मत बर्बाद करो.
इसकी कड़ी सजा मिलेगी,
अब नहीं सहेगा हिन्दुस्तान
क्यों मचा रहे हो घमासान?

©ब्रजेन्द्र नाथ 


यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/WdvaPzJv4rI


10 comments:

विश्वमोहन said...

अत्यंत सामयिक और सार्थक सन्देश मधुर साहियिक छंद शैली में।

Marmagya - know the inner self said...

प्रिय विश्वमोहन जी, नमस्ते 🙏❗️ मेरी इस रचना पर आपके द्वारा संयत शब्दों में की गई साहित्यिक टिप्पणी से अभिभूत हूँ. ह्रदय की गहाराइयों से आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१८-०७ -२०२२ ) को 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Nitish Tiwary said...

सुंदर कविता।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया अनीता सैनी जी, सुप्रभात! नमस्ते 🙏❗️मेरी इस रचना को आज के चर्चा अंक में स्थान देने के लिए ह्रदय की गहराइयों से आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय नितीश तिवारी जी, सुप्रभात!नमस्ते 🙏❗️ आपकी सराहना से मुझे सृजन की प्रेरणा मिलती है. हार्दिक आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

मन की वीणा said...

सामायिक परिप्रेक्ष्य पर सटीक रचना।
सुंदर सृजन।

डॉ 0 विभा नायक said...

वास्तविकता का कितना सटीक चित्रण। बहुत बधाई सर🙏

दीपक कुमार भानरे said...

ही समझ नहीं है अगर तुम्हें
मिल बैठ मसलों पर संवाद करो.
उन्मादी, उपद्रवी बनकर तुम,
राष्ट्र धन को मत बर्बाद करो.
इसकी कड़ी सजा मिलेगी,
अब नहीं सहेगा हिन्दुस्तान
क्यों मचा रहे हो घमासान?
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय ।

जिज्ञासा सिंह said...


सही समझ नहीं है अगर तुम्हें
मिल बैठ मसलों पर संवाद करो.
उन्मादी, उपद्रवी बनकर तुम,
राष्ट्र धन को मत बर्बाद करो.
इसकी कड़ी सजा मिलेगी,
अब नहीं सहेगा हिन्दुस्तान
क्यों मचा रहे हो घमासान? ..चिंतनपूर्ण विषय पर बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ।

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