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प्यार ऐसे क्यों आता है जिंदगी में?
प्रणव अनु का पड़ोसी था। वह गणित, पी जी का विद्यार्थी था। अनु कभी - कभी उससे अर्थशास्त्र में सांख्यिकी (स्टेटिस्टिक्स) के सवालों को हल करने में मदद लिया करती थी। प्रणव उसे इसतरह समझाता था कि अनु को सांख्यिकी से सम्बंधित सवाल बिलकुल आसान लगने लगे थे। शायद प्रणव की सांख्यिकी की समझ और समझाने के ढंग दोनों ही अनु को प्रभावित कर रहे थे। कभी - कभी अनु अपने मन की सीमा रेखा के पार कोई अनकही, अपरिभाषित आकर्षण भी महसूस करने लगी थी। परन्तु प्रणव ने अनु के सफ़ेद लिबाश की असलियत जाने बिना अपने मन को किसी उलझन में नहीं डालने का मन बना लिया था।
एक दिन उसने अनु से पूछ दिया, "तुम सफ़ेद सलवार सूट में अच्छी तो लगती हो, लेकिन क्या रंगीन शेड के कपड़े तुझे पसंद नहीं?"
अनु ने हंसकर जवाब दिया था,
"मैं चाहती तो नहीं कि कोई आग सुलग जाए,
गर सादगी मेरी जलाये, तो मैं क्या करूँ?"
और यह चर्चा इसी तरह टल गई थी या टाल दी गई थी।
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अनु के पिताजी का स्थानांतरण दूसरे दूर के शहर में हो गया था। अनु भी कॉलेज में अर्थशास्त्र आनर्स के फाइनल के परीक्षाफल में अब्बल रही थी। अब उसके आगे की पढ़ाई दूर के ही शहर में होगी। आज अनु आख़िरी बार प्रणव से मिलने आई थी। उसी ने प्रणव का हाथ पकड़कर कहा था, "प्रणव, मेरी शादी छह महीने पहले ही हो गई थी जब मैं हैदराबाद में थी। मेरे पति आई पी एस अफसर थे। उन्हें एक दिन कमिश्नर से फोन आया, 'आप नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जवानों की एक टुकड़ी लेकर रेड करें। वहाँ खूखार जोनल कमांडर के होने की पक्की सूचना मिली है। वे रात में ही निकल गए। जब वे एक दिन के बाद लौटे तो तिरंगा में लिपटे हुए थे। यही है मेरी सफ़ेद लिबाश का राज, प्रणव।"
वह प्रणव का हाथ अपने हाथ में लिए आंसुओं से तर करती रही, और प्रणव सोचता रहा, "क्या प्यार ऐसे आता है, जिंदगी में? अगर प्यार ऐसे आता है, तो प्यार क्यों आता है जिंदगी में?"
©ब्रजेन्द्रनाथ मिश्र
14 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-10-2020) को "कुछ तो बात जरूरी होगी" (चर्चा अंक-3861) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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भाव-विभोर करती रचना
आदरणीय डॉ रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" सर, नमस्ते👏! मेरी इस रचना को चर्चा, कल 21 अक्टूबर दिन बुधवार को चर्चा अंक-3861 में शामिल करने के लिए हृदय तल से बधाई। आपका स्नेह बना रहे यही मेरी कामना है। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
आदरणीय गगन शर्मा जी, रचना की सराहना के लिए हृदय तल से आभार! आपसे अनुमोदन मिल जाने पर सृजन के लिए नव उत्साह छा जाता है। सादर आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
सुन्दर लेखन
बहुत सुन्दर
आदरणीय ओंकार जी,नमस्ते 👏! आपके सहृदय उदगार के लिए हार्दिक आभार! -- ब्रजेन्द्रनाथ
आदरणीया विभा रानी जी, नमस्ते👏! आपके सराहना के शब्द सृजन के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
सुंदर लघुकथा। लेकिन यदि प्यार किया है तो विधवा से शादी करने में क्या हर्ज है?
आदरणीया ज्योति जी, नमस्ते 🙏! आपको मेरी लिखी यह लघुकथा अच्छी लगी, मुझे मेरे सृजन का पारितोषिक मिल गया।
आपकी प्रतिक्रिया से मुझे लगा कि इस लघुकथा ने आपको कुछ सोचने पर भी विवश किया। इसीलिए आपने लिखा है कि विधवा से शादी करने में हर्ज क्या है? इसतरह लघुकथा का उद्देश्य पूरा हो गया। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
सुंदर कहानी
आदरणीया अनिता जी, नमस्ते 🙏! आपके उत्साहवर्धक उदगार से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
बहुत मार्मिक सुन्दर कहानी |
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