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कहानी लेखक का अन्तर्द्वन्द्व और सृजनशीलता
एक सफल रचनाकार अपनी चेतना के विविध स्तरों को जीते हुए, उन्हें अनुभव करते हुए अपने भीतर के साहित्यकार के समक्ष पूरी तरह से समर्पित, अहंकार-शून्य सिर्फ़ जब उसे भीतर-भीतर गुनता है तब स्वयं से निकली हुई उसकी रचनाएँ अब उसकी स्वयं की नहीं रह जातीं बल्कि पूरी मानवता की धड़कनें बन जाती हैं ।
साहित्यिक गोष्ठियों में उठती करतल ध्वनियों की अनुगूँज से बेखबर, आज के समय में लाइक्स और शेयर की भूलभुलैया से दूर अपने ही रचना-संसार में जीने की धुरी तलाशता रचनाकार भीड़ से दूर अपनी ही कहानियों, कविताओं से निकलती आवाजों को सुन सके जो उसके ही दिल की आवाजें हैं। ऐसे रचनाकार आज के समय में अपवाद ही कहे जाएंगे।
कभी - कहानीकार अपने पूर्व निर्धारित प्लाट को लेकर आगे बढ़ता है, कहानी से मिलती - जुलती उसके अपने जीवन का भोगा हुआ यथार्थ या अपने आसपास की स्थितियों और परिस्थितियों से बिखरती संवेदनाएं उसे घेर लेती हैं। वह जो कुछ लिखना चाहता था, उससे अलग वह खुद की कहानी गढ़ने लग जाता है।
कभी-कभी कहानी भी पहेली बन जाती है जबतक कलमकार होश में आता है तबतक उसके भोगे हुए पल बहुत पीड़ादायक बन जाते हैं और विडम्बना यह कि उसकी तमाम व्यथा अपरिभाषित रहकर भी अभिव्यक्ति की तड़प, छटपटाहट से भरी हुई अपने अस्तित्व का आकार ढूढने लग जाती है। इसी अपरिभाषित पीड़ा को कहानियों में अभिव्यक्त करने वाले कलमकार जिन्होंने बिम्बों, प्रतीकों का सहारा लेने की कोशिश की है वही पूरे कथ्य के सत्य के प्रति एक कलकमकार की व्यथा, उसकी अपनी तड़प, उसकी अपनी तलाश हमारी और आपकी तड़प और तलाश बन जाती है। कलमकार वहाँ सफल हो जाता है।
जो कहानी सहज रूप से आगे बढ़ रही थी, उसमें संवेदनाओं की आँच से उबाल आने लग जाता है। कहानी में अगर संवेदना नहीं हुई और उसका चित्रण नहीं हुआ, तो कहानी मात्र एक रिपोर्ट बनकर रह जाती है।
इसीलिए कहानियाँ घटनाओं को जोड़ - तोड़कर, सिर्फ मनोरंजन के लिए न पढ़ी जानी चाहिए, न लिखी जानी चाहिए। पाठकों का ध्यान रखा जाना लेखक के मष्तिष्क में अवश्य होना चाहिए, लेकिन इससे लेखक को अगर अपनी उड़ान में बेड़ियाँ जैसा लगे, तो उसे उन बेड़ियों को तोड़ देना चाहिए। लेखक को अपने मन की करने और कहने की छूट होनी ही चाहिए। यह छूट लेखक को उनकी कल्पना के उड़ान के लिए पंख भी देते हैं और पंखों में ताकत भी। लेखक या कलमकार अगर अपने को शर्तों में आबद्ध कर लेता है, तो उसकी रचनाधर्मिता उसी समय मर जाती है। उसके सृजन का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। और जब भी कोई प्रवहमान जलराशि अवरुद्ध ही जाती है, तो उसमें सड़ांध पैदा होने लगती है, जो वैसे लेखकों की रचनाओं में दिखने लगता है।
©ब्रजेंद्रनाथ
2 comments:
सटीक और सही विश्लेषण
बहुत बढ़िया।
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