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26 दिसंबर 2021: रविवार
नर्सिगवाड़ी, कोल्हापुर से होते हुए गगनबावड़ा का भ्रमण:
सुबह नर्सिघवाडी के मंदिर दर्शन के लिए तैयार होने में सभी लगे थे। साढ़े आठ बजे का समय निर्धारित था। मैंने शेव किया, स्नान किया और परिधान परिवर्तन कर चल दिये, कृष्णा किनारे। वहाँ पहुँचकर शांत दोनों किनारों में जल परिपूरित दक्षिण की ओर प्रवाहमान कृष्णा नदी के दर्शन हुए। भारतवर्ष में नदियों ने सभ्यता और सनातन धर्म के पोषण और परिवर्द्धन में जैसी भूमिका निभाई है, वैसी कहीं और दृष्टि गत नहीं होती है। इसीलिए हमारी सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता कहा जाता है। दक्षिण की चार नदियाँ, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा और कृष्णा निरंतर सलिला हैं। जिनके तटों पर कई धार्मिक और सांस्कृतिक नगर बसे हुए हैं।
कृष्णा नदी महाबालेश्वर से निकलती है। यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
कृष्णा नदी का यह तट पंचगंगा और कृष्णा नदी का संगम स्थल है। कहा जाता है कि पञ्चगंगा में पांच नदियाँ और पंच गंगा और कृष्णा यानि सात नदियों का संगम है। हमलोग कृष्णा के तट पर भगवान दत्तात्रेय के मंदिर का दर्शन किये। पंडित जी ने संकल्प भी करवाये। एक घंटे के अंदर पूजा की सारी प्रक्रिया समाप्त हुई। बाहर निकलकर 'होल्सरे' डोसा होटल में डोसा खाये। होटल में प्रवेश के ठीक पहले वहाँ एक बुजुर्ग को निपुणता और शीघ्रता से होटल में डोसा बनाते हुए देखकर मन प्रसन्न हो गया। उनसे मैंने पूछा तो उन्होंने ही बताया कि उनकी उम्र 67 वर्ष है।
वहाँ से होटल आकर पैकिंग किया और साढ़े ग्यारह बजे गगनबावड़ा की ओर निकल पड़े। रास्ते में कोल्हापुर में अम्बाई मंदिर के भी दर्शन करने थे।
कोल्हापुर तो शीघ्र पहुँच गए। बीच में कोल्हापुर के एम आई डी सी क्षेत्र से गुजरना हुआ। उसी के चौराहे पर 'अमृत तुल्य' ब्रांड, जो महाराष्ट्र में हर जगह अपनी आधुनिक टपरी स्थापित कर चुका है, में दो कप चाय एक साथ पी। मूल्य भी सामान्य, दस रुपये कप। सचमुच चाय बहुत अच्छी थी।
"येवले अमृत तुल्य" की कहानी पुणे जिल्हा के पुरंदर तहसील के छोटे से गाँव अस्करवाड़ी के दूध बेचने वाले दसरथ येवले के उत्कर्ष की कहानी है, जिसने अमृततुल्य ब्रांड को चाय के मिश्रण के स्पेशल ब्रांड के रूप में "येवले अमृत तुल्य" को स्थापित किया। इस ब्रांड में, के एफ सी, मैकडोनाल्ड, डोमिनोज, सबवे आदि से आगे निकलने की अपार सम्भावनाएं हैं। हमलोगों ने कोल्हापुर के अम्बाई मंदिर में अम्बा माँ के दर्शन किये।
लाइन लंबी थी, फिर मैनेज कर दर्शन सुनिश्चित किया गया।
रामकृष्ण होटल में दिन का भोजन किया ।वहाँ से हमलोग गगनबावड़ा, जो करीब 4500 फीट ऊंचाई पर रत्नागिरी पहाड़ों के एक श्रृंग पर एक गुफा मंदिर है, के लिए चल पड़े। गगनबावड़ा के रास्ते में ही कोल्हापुर में रंगला लेक था। यह काफी दूर में फैला हुआ 75 फीट गहरा लेक है। आठवीं सदी में यह एक स्टोन क्वेरी था। नवीं सदी में एक भयंकर भूकंप में वह क्वेरी जल से भर गया। साथ ही जल के स्वतः निर्मित श्रोत से भी यह सुंदर लेक परिपूरित हो गया। मन तो इस झील के किनारे घूमने का हो रहा था, लेकिन गगनबावड़ा के उतुंग शिखर पर रात होने के पहले चढ़ जाना आवश्यक था। गाड़ी भी एक सीमा तक ही जा सकती थी। उसके बाद करीब डेढ़ सौ सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई थी। इस चुनौती को पार करना आवश्यक था। सीढ़ियों पर विद्युत प्रकाश की व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए लेक घूमने का लोभ संवरण करना पड़ा।
वहाँ से जंगल और घाट के घुमावदार रास्ते से होते हुए गगनबावड़ा के उस स्थान तक पहुँचे, जहाँ से सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई आरम्भ होती थी। हमलोग सूर्यास्त होते - होते ऊपर चोटी तक पहुँच चुके थे। वहाँ पहुँचते ही सारी थकान दूर हो गई। यहाँ के बापू (जो यहां के वर्तमान संचालक है) के यात्रियों के प्रति अद्भुत वात्सल्य देखकर मन आनन्दित हो गया। रात्रि भोजन शुद्ध और सात्विक, एक आश्रम जैसा। रात्रि विश्राम भी सुखानुभूति से परिपूर्ण। यहां ठंढ बिल्कुल नहीं थी, बस हवाएँ तेज चल रहीं थी। रात में थकावट के कारण गहरी नींद आयी।
8 comments:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (9-1-22) को "वो अमृता... जिसे हम अंडरएस्टीमेट करते रहे"'(चर्चा अंक-4304)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, नमस्ते👏! आपने मेरी इस रचना को चर्चा में शामिल किया है, इसके लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ
रोचक और ज्ञानवर्धक यात्रा विवरण
आदरणीया अनिता जी, नमस्ते! मेरी रचना पर समय देने के लिए और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही आकर्षक तरीके से लिखा गया यात्रा वर्णन।
सुंदर ।
आदरणीया कुसुम कोठारी जी, आपके अनुमोदन से मुझे सृजन की प्रेरणा मिलती है। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
जानकारी और उत्सुकता बढ़ाता सुंदर संस्मरण । इस सुंदर संस्मरण को साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया जिज्ञासा जी, नमस्ते👏! आपके उत्साहवर्धन के लिए हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
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