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Saturday, April 14, 2018

पूर्वाग्रह(कविता)

#BnmRachnaWorld
#poem#social

ओपन बुक्स ऑनलाइन साहित्य मर्मज्ञों के द्वारा संचालित एक वेबसाइट है। इसी में इसके ओ बी ओ लाइव उत्सव 90 में  "पूर्वाग्रह" शब्द पर रचनाएँ आमंत्रित की गयी थीं। रचना डालने की समय सीमा थी, 13 से 14 2018 अप्रील तक। मेरी यह रचना काफी चर्चित रही और सराही भी गयी। उस साइट पर सभी रचनाओं का संकलन जारी है।
अगर आपको तुकान्त आधुनिक  के रूप में लिखी गयी यह कविता अच्छी लगती है तो इसे पढें, अपने कमेन्ट दें और शेयर करें:



पूर्वाग्रह

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बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है-

सजाये हुये घर को यूं ना बर्बाद करो।
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।

एक महल जो दे रहा चुनौती
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नीवं में पलीता लगाओ मत
कितनों की पसीने की बूंद से बना है।
उसको हवाले मत करो आग के,
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।

सम्बन्धों की सेज पर खुशबुओं को
सुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।

पेड़ की डालों को ऐसे झुकाओ मत
फलों से लदे हैं, सुस्वाद से सराबोर हैं।
लचक गयी डाल तो फल टपक जायेंगे
बांटते हैं स्नेह और ममता पोर पोर हैं।
जड़ों को सींचना कभी ना छोड़ना
सोखना आसान है, सींचना कठिन है।

वातावरण में ब्याप्त हो रहा कोलाहल है,
विष वमन हो रहा, फैल रहा हलाहल है।
क्या हो गया है, हर ओर क्यों शोर है?
कोई तो हो, जो सोचे, क्या फलाफल है?
इस यज्ञ में, दें अपनी आहुति, मिट जाएं,
अब मिटना आसान है, जीना कठिन है।

सजाये हुए घर को यूं ना बिखराओ
कि बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।

c@ब्रजेन्द्रनाथ मिश्र
ता: 12/04/2018, बैशाख कृृष्ण एकादशी
वैशाली सेक्टर 4, दिल्ली एन सी आर।



3 comments:

Jitender Singh VO said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Jitender Singh VO said...

क्या बात ह श्रीमान जी
बहुत खूब

Jitender Singh VO said...

बहुत खूबसूरत श्रीमान जी

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