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Friday, March 4, 2022

तुम आ गए मीता (कहानी) #मारे गए गुलफाम

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तुम आ गए मीता

 04  मार्च को जब हम फणीश्वर नाथ रेणु को उनके 101 वें जन्मदिन पर याद करते हैं, तब उनकी कहानी "मारे गए गुलफाम" का अंतिम दृश्य अभी तक मर्मान्तक पीड़ा से अश्रुविगलित कर जाता है। क्या है वह दृश्य, एक बार उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा हूँ। सादर!

हीराबाई वापस जा रही है। स्टेशन पर जनाना मोसाफिरखाने के फाटक पर हाथ - मुँह ढँककर उसी का इंतजार कर रही थी। लालमोहर से हिरामन को खबर मिलती है, वह अपने तेज धड़कते दिल को थामे हुए मुसाफिर खाने की ओर जाता है कि फाटक पर ही उसे हीराबाई मिल जाती है। हीराबाई तमाम दर्द की तड़प को  अपनी ओढ़नी से जज्ब किये हुए कहने का प्रयत्न करती है, " लो! हे भगवान, तुम आ गए मीता! मैं तो उम्मीद छोड़ चुकी थी। तुमसे भेंट हो गई। अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ, गुरुजी!"

उसने उसके रुपयों की थैली अपने कुर्ते के अंदर से निकाल कर उसकी ओर बढ़ाते हुए यही कहा था। "उसकी थैली चिड़िया के  देह की तरह गर्म है। "  यही लिखा है रेणु जी ने। इसमें कई संकेत छिपे है। हीराबाई ने अपने चिरई के जैसी धड़कन को उसमें अनुस्यूत कर दिया है। दूसरा संकेत उसकी बेबसी की ओर है। चिड़िया की क्या बिसात,  पिंजरे में बंद, उन्मुक्तता को तरसता , कमजोर -  पंख  में उड़ान की ताकत भी कहाँ होती है। 

हिरामन थैली की गर्माहट से हीराबाई के दिल के  करीब पहुंचने की कल्पना में खो जाता है। बक्सा ढोने वाला आज कोट पैंट पहनकर बाबू बना हुआ सबों को आदेश दे रहा है।  

'गाड़ी आ रही है'

हीराबाई की  चंचलता बढ़ गयी है। 

वह हिरामन को अंदर बुलाती है, "हिरामन इधर आओ, मैं फिर जा रही हूँ, अपने देश की कंपनी मथुरा मोहन में...बनैली मेला  आओगे न!"

इसबार हीराबाई ने हिरामन के  दाहिने कंधे पर  हाथ रखा, और अपनी थैली से पैसा निकलते हुए बोली, "ये लो गरम चादर खरीद लेना।"

अब हिरामन के सब्र का बांध टूट गया, "इस्स! हमेशा रुपये पैसे के बात!  रखिये रुपया, क्या करेंगे चादर?"

हिरामन के पूरे अस्तित्व पर छा गए क्षोभ , संताप, वेदना, यंत्रणा, को हीराबाई ने अपने अंतर में उतरते हुए  और उबलते हुए , चुभते हुए महसूस किया था, "तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया, क्या मीता?  महुआ घटवारिन को सौदागर ने  जो खरीद लिया है, गुरुजी!"

हीराबाई का गला रुँध गया, गाड़ी आ गयी थी, हिरामन बाहर आ गया, गाड़ी ने सीटी दी और उसी के साथ उसके अंदर की कोई आवाज उसी के साथ ऊपर की ओर चली गयी... कु - ऊ - ऊ - ऊ...

रेणु जी की ध्वन्यात्मक अभिव्यक्ति ने इस कहानी को चारमोत्कर्ष की ओर ले जाने की घोषणा कर दी है। 

"महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद लिया है, गुरु जी!" 

कितनी बेबसी है, इस वक्तव्य में। बाजार सजा है, खरीददार जिगर भी खरीद रहे है और जिगर के अंदर की भावनाओं को भी इंजन से भाप के साथ निकलती सीटी की तरह उड़ा  दे रहे हैं। किसका क्या चिथड़े - चिथड़े बिखर रहा है, किसकी चिन्दियाँ कहां उड़ रही हैं, किसके तीर किसके जिगर के पार हो रहे हैं, किसका वार किसको लहुलुहान कर रहा है, इससे उसे क्या मतलब? 

शायद प्रेम की परिणति यही है कि वह अधूरा रह जाय, उसका अधूरापन ही उसकी पूर्णता है, उसके अधूरेपन से उत्पन्न दर्द की छटपटाहट ही  इसकी गहराई है।  लहरों का उठना, तरंगों में तब्दील होना और किनारे जाकर टूटकर लौट जाना ही उसकी पूर्णता है। 

ब्रजेंद्रनाथ





7 comments:

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय रवींद्र सिंह जी,नमस्ते👏! आपने मेरी रचना को कल रविवार 06 मार्च के चर्चा अंक में शामिल किया है। इसके लिए आपका हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ!--ब्रजेंद्रनाथ

रेणु said...

आदरनीय सर,आज आपकी पोस्ट ने मेरी आत्मा के बहुत करीब पात्रों से फिर से भेंट करा दी।सच कहूँ, अपनी किशोरावस्था में ही हीरामन और हीराबाई से परिचय से मुझे गहन संवेदनाओं की अनुभूति हुई।इस अधूरी प्रणय-गाथा ने अनेकों प्रश्नों से मेरे अन्तस को विरह विगविगलित कर ,दोनों सरल पात्रों से सदा के लिये जोड़ दिया।हीरामन के अनन्य निस्वार्थ अनुराग को रेणु जी, गरिमा की जिस चादर से ढक-लपेट कर पाठकों के समक्ष ला पाये,वह कालातीत है।इस कालजयी कथा का अन्तिम छोर पाठक को अप्राप्य अनुराग के अनचीन्हे रूप से अवगत कराता हुआ,इन दोनों पात्रों के अदृश्य प्रेम की विवशता के अनुभव के साथ छोड़ देता है। रेणु जी की इस अमर प्रेम कथा 'मारे गये गुलफाम ' पर आधारित हिन्दी फिल्म 'तीसरी कसम ' अपनी कहानी से पूरा न्याय करती है।साथ में कहानी के अधूर भावों को दर्शकों के सामने लाती है।आपने कथा के अन्तिम भाग को जिस लेखकीय कौशल से दर्शाया है,वह बहुत ही सराहनीय है।इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए ढेरों आभार और शुभकामनाएं।

रेणु said...

बहुत पहले मैने इस कहानी पर नहीं बल्कि फिल्म 'तीसरी कसम 'पर एक समीक्षात्मक आलेख लिखना शुरु किया था पर समयाभाव के कारण पूरा ना कर पाई।आपकी पोस्ट मुझे भी प्रेरित कर रही अधूरा लेख पूरा करने के लिए सादर आभार और प्रणाम 🙏🙏

Anita said...

रेणु की इस कालजयी कहानी का हर अंश श्रेष्ठ है, अंतिम भाग भी उसी कड़ी का एक अंश है, दिल को छूने वाले इस दृश्य की संवेदनशीलता को आपने बखूबी दर्शाया है, सुंदर सृजन!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया अनिता जी, आपके प्रोत्साहन ने मुझे अपने सृजन के लिए प्रेरित किया है। आपका हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया रेणु जी, मेरी इस रचना पर व्यक्त आपके उदगारों से मुझे मेरे लेखन का पुरस्कार मिल गया। मैंने "प्रतिलिपि" पर, जहाँ आपकी भी उपस्थिति रहती है, रेणु जी की आंचलिकता पर अपने "पाठकों से मञ की बात" धारावाहिक के भाग 56 से लेकर अभी तक यानी भाग 78 तक सारे भागों में आंचलिकता के बारे में चर्चा के दौरान "मारे गए गुलफाम" कहानी को पुनः कहने और समीक्षात्मक टिप्पणी करने का प्रयास किया गया है। कृपया आप इसे पढ़ें और मुझे मार्गदर्शन दें।
आपकी यह समीक्षा हृदय में अंकित हो गई है। इससे मुझे मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। आपका हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

जिज्ञासा सिंह said...

वाह ! क्या बात है पूरी कहानी छायाचित्र की तरह आंखों में परिलक्षित हो गई । एक एक शब्द मोती की तरह सज रहे ।
इस कहानी की मधुर याद में पहुंचाने के लिए आपका शुक्रिया आदरणीय । बहुत बधाई आपको💐💐👏👏

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