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अथक उड़ान हो
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अथक उड़ान हो
परिंदे, तू क्यों गुमशुम है ,
किन ख्यालों  में
गुम है?
गगन पुकारता, धरा निहारती
,
 भरो पंखों  में
असीम शक्ति।  
नभ में तेरा
अथक  उड़ान  हो,
तेरा प्रण    महान  हो
। 
 तेरा प्रण     महान
हो।  
भूल जा वो   घटना,
घटाओं का  
 घिरना,
हवाओं का तूफ़ान
में बदलना,
तिनको से बने
घोसले   का
,
झूलना ,
डोलना , टूटना,
अन्डो का गिरना
, बिखरना,
ये तो आपदा
है , विपत्ति है
,
तेरी नियति तुझसे छल
करती है। 
तू उन्हें पुकार  ले,
झुकाओ ललकार   ले,
पथ में काँटों
पर सेज बना
,
फिर उठ जिंदगी
संवार ले। 
तू रुकना मत , थकना
मत। 
आशाओं से 
भरा वितान हो ,
तू  चल,
अथक उड़ान हो
,
तेरा   प्रण
महान हो,
तेरा   प्रण
महान हो।  
घटायें हो काली,
मतवाली ,
हवाएँ रोकती  हो       बाहें  ,
तिमिर -
घन में, तड़ित
- प्रभा 
से   खोजों   अपनी    राहें
। 
जाना वहां,  पार
क्षितिज है ,
हो न जहाँ
नफरत की कोई
आँच,
प्यार ही प्यार
बसा हो दिलों
में,
प्रेम धुन पर
हो मधुर - मधुर
नाच। 
ऐसा ही नया
जहाँ बसाना है,
ऐसा ही नया
पैगाम सुनाना है।
तू चल वहां
पर , भले अथक
उड़ान हो ,
तेरा प्रण महान
हो, तेरा प्रण
महान हो।
---ब्रजेंद्र
नाथ मिश्र
    जमशेदपुरThis poem is also published on the site link:
 
 
 
 
