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फागुनी (नव)गीत
अलसाया तन, बौराया मन,
कल्पना का नहीं ओर छोर.
कोयल भी कूक रही मीठी - सी धुन,
बगिया में गदराया अमवां का बौर।
लाल रंग फ़ैल गया यहां - वहाँ,
लहक गया, दहक गया पलाश वन।
आँखें टिकी हुई चौखट पर,
पिऊ संग कब होगा मिलन।
फाग का राग बन आ गई होली भी,
अब तो घर आ जा मेरे सजन।
बयार भी चुभ रही काँटा बन,
मन हुआ बावरा, बिसर गया तन।
आँगन में सास मेरी खाट डाले हुए,
देहरी पर है ससुर जी का पहरा।
मन तो लांघ जाता सारी हदें,
मर्यादाएं कैसे तोडूँ, पांव ठिठक ठहरा।
आँखे थी टकटकी लगाए हुए,
पड़ती रही ढोलक पर थाप पर थाप।
चुनरी भींगो गयी कोई सहेली मेरी,
पर न मिट पाया मन का संताप।
©ब्रजेंद्रनाथ
11 comments:
मुग्ध करती रचना - - होली की शुभकामनाओं सह।
खूबसूरत वर्णन
होली की हार्दिक शुभकामनाएं, सपरिवार स्वीकारें
खूबसूरत गीत ।
आदरणीया अनिता सैनी जी, मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हॄदय तल से आभार! होली की अशेष शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय शांतनु जी, उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया प्रीति मिश्रा जी, नमस्ते👏! मेरी रचना की सराहना के3 लिए हृदय तल से आभार! होली की अशेष शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय गगन शर्मा जी, नमस्ते👏! आपको भी सपरिवार होली की ढेर सारी अशेष,असीम, अनंत शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया संगीता स्वरूप जी, नमस्ते👏! मेरी रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए हार्दिक आभार! होली की अशेष शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ
फाग का राग बन आ गई होली भी,
अब तो घर आ जा मेरे सजन।
बयार भी चुभ रही काँटा बन,
मन हुआ बावरा, बिसर गया तन।----अच्छी रचना है, खूब बधाई
आदरणीय संदीप कुमार शर्मा जी, नमस्ते👏! आपके उत्साहवर्धक उदगारों से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
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