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Saturday, July 10, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 3 (लेख)

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पाठकों से मन की बात भाग 3:
व्यूज और लाइक्स के मकड़जाल में फंसा सद्साहित्य
गायक आदित्य सिंह उर्फ बादशाह की स्वीकृति ने कि उसने सोशल मीडिया पर अपने गाने "पागल है" के व्यूज बढ़ाने के लिए 72 लाख दिए, सोशल मीडिया के फेक व्यूज और लाइक्स के बनावटीपन को उजागर कर दिया है। फेक व्यूज बनाने वाली कंपनियां कितना पैसा बनाती है, आप सोच सकते है।
अब सामान्य पाठकों और लेखकों के सामने पढ़ने के लिए कुछ भी चयनित करने के पहले उसके कंटेंट को जाँचना परखना जरूरी है। क्या सामान्य पाठक के पास इतना समय होता है कि वह हर कहानी के कंटेंट को पढ़ने के बाद परखे? शायद नहीं। तो उसके पास क्या विकल्प राह जाता है। बस वह व्यूज और लाइक्स देखकर पढ़ना या देखना आरंभ कर देता है। जो भी थोड़ा - सा वक्त उसके पास होता है, उसमें वह अरुचिकर कहानियाँ पढ़ता रहता है। ये कहानियाँ न उसकी रुचि का परिष्कार करती हैं, न उसकी कल्पनाशीलता को विस्तार देती हैं।
इस बाजार और विज्ञापन के जमाने में सही कंटेंट अपने सही पाठकों की तलाश में कहीं खो जा रहा है। मैंने प्रतिलिपि पर ही कई लेखकों की कहानियाँ और कविताएँ पढ़ी हैं, जिनका स्तर बहुत ऊंचा है, लेकिन व्यूज और लाइक्स की संख्या दौड़ में कहीं पीछे रह गए हैं। यह वैसा ही है जैसे कोई लेखक अपनी प्रकाशित पुस्तक का विज्ञापन सबसे अधिक सर्कुलेशन वाले अखबार के मुख्य पृष्ठ पर पूरे पेज का देता है। उसे ही हम बेस्टसेलर समझकर अपने बुक शेल्फ में सजाने में शान समझते हैं।
क्या यह सोच बदलनी नहीं चाहिए?
प्रेमचंद और जैनेंद्र के समय में भी चलताऊ लेखक थे लेकिन पाठकों के हर वर्ग ने उन्हें पढ़ना बंद नहीं किया था।
ऐसी ही एक विचारोत्तेजक मुद्दे पर चर्चा के साथ जुड़ते हैं, अगले शुक्रवार को।
©ब्रजेन्द्रनाथ

3 comments:

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल said...

चाहे साहित्य हो या कला का क्षेत्र हर जगह बिकाऊपन स्पष्ट झलकता है, और यही वजह है कि लोग रातों रात मशहूर हो भी जाते हैं लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि ऐसे लोग शीर्ष पर बने रहें वक़्त के साथ कलई का उतरना तो निश्चित होता है, नमन सह।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय शांतनु जी, मेरे विचारों से सहमति जताने के लिए हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

आलोक सिन्हा said...

मैं शांतनु जी की बातों से पूरी पूरी तरह सहमत हूँ |यह आज का बहुत कडवा सच है |

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