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भीषण बाढ़ में एक किसान के धान की फसल के बर्बाद होने के बाद उस आपदा को अवसर में बदलने की कहानी है "पूरण की फसल".
पूरण की फसल
बाँध का पानी पिछली रात को छोड़ दिया गया है। पूरण धान की रोपणी के बाद अच्छी फसल के सपने संजोए रात में सोया था। आज सुबह अपने खेत के ऊपर मटमैले पानी के फैलाव को वह देख रहा है और देख रहा है, अपने सपनों को ढहते हुए, देख रहा है, पानी में हाल में रोपे गए धान के पौधे को धार में बहते हुए...
देख रहा है अपने बैलों के चारे के अभाव में दम तोड़ते हुए ...देख रहा है अपनी मां की खाँसी के इलाज के अभाव में छटपटाते हुए ... देख रहा है बिटिया की शादी के लिए पैसे नहीं जुटाने की स्थिति में जमीन को गिरवी रखते हुए ... देख रहा है बैंक के कर्जे की किश्त नहीं जमा करने पर खुद को फंदे से...
नहीं, नहीं वह अपने सपने को पानी की धार में ऐसे बिलाते हुए नहीं देख सकता। उसने बैंक के ऋण से ही उत्तम कोटि के अच्छे बीज और खाद का इंतजाम कर फसल लगाई थी। खाद अभी बचा ही हुआ था, जिसका इस्तेमाल वह पौधों को खड़ा हो जाने बाद भादो के महीने में करने वाला था।
उसका घर ऊँचे टीले पर बना था, इसलिए घर में पानी नहीं घुसा था। वहीं से छत पर खड़ा हुआ वह चारो ओर फैले समंदर की मानिंद जलजमाव को अपने कातर नयनों से निहार रहा था।
अपने घर के ऊंचे छत पर, बैठ गगन की भींगीं छाँह,
पूरण अपने भींगे नयनों से देख रहा है प्रलय प्रवाह।
इतने में वह देखता है कि एक बड़े से काठ के कुंदे के एक छोर पर बड़ा सा अजगर और दूसरे छोर पर भींगे पँख लिए मैना बैठी है और कुंदा तेजी से बहा जा रहा है। वह सोचता है अगर सामान्य स्थिति होती तो अजगर मैना को झपटकर निगल जाता। पर आज उसे अपनी जान बचाने की फिक्र अधिक है, बनिस्वत कि जान लेने की। जब खुद की जान पर बन आती है तो हर जीव में जीजिविषा प्रबल होती है और भयंकर जीव भी अहिंसक हो जाता है। जीजिविषा ने ही दोनों को सहयात्री बना दिया है।
पूरण भी अपनी जीजिविषा को जगा हुआ महसूस करता है। वह जीयेगा और अपने सपने पूरे करेगा... वह अपने सपने को मरने नहीं देगा।
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अब पानी धीरे धीरे उतरने लगा है। खेत में रोपा हुआ धान का एक भी पौधा नहीं बचा है। पर खेत की मिट्टी के ऊपर भूरे मटमैले मिट्टी की एक और परत पसर गयी है। पूरण ने मन में ठान लिया है खेती को फिर शुरू करेगा। वह पारंपरिक खेती के ढंग को ही बदल देगा।
वह बैंक के ऋण के बचे पैसे से सब्जियों जैसे भिंडी, टमाटर, बैगन, लौकी, नेनुआ, करेला आदि का बीज ले आता है। अपनी डेढ़ एकड़ की जमीन के आधे भाग में वह इन सारे बीज को रोप देता है। आधे भाग को वह छोड़ देता है, जिसमें अगहन में वह गेहूँ लगा देगा। तीन महीने के भीतर ही सब्जियाँ लहलहा उठती हैं। बाढ़ में बह आई मटमैली मिट्टी की उर्वर गोद में इतनी अच्छी सब्जियों की फसल की संभावना को पहले किसी ने देखा ही नही था। वह किसी तरह के रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करता है।
इसलिए सब्जियाँ ऑर्गेनिक के नाम दूगने दाम पर बिकने लगती हैं। शहर के मॉल वाले और बड़े-बड़े होटल वाले सीधे पूरण की ऑर्गेनिक सब्जियाँ उसके खेत के पास से ट्रकों में भर-भरकर ले जाते हैं। उसे नकद पैसे मिलते हैं। पूरण अपने सपने को सच होते हुए देखता है।
उसका नैराश्य भाव दूर हो जाता है। उसके जीवन में आशा की कोंपलें बढ़ने लगती है।
©ब्रजेंद्रनाथ
इसे दृश्यों के संयोजन के साथ मेरी आवाज़ में यूट्यूब के इस लिंक पर जाकर सुनें और कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य लिखें. सादर!
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/igH7WVr3w5g
7 comments:
आदरणीया अनिता सैनी जी,नमस्ते 🙏❗️ मेरी इस रचना को आज 6 अगस्त के चर्चा अंक में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार ❗️
आशा और विश्वास जगाती बहुत ही चिंतनपूर्ण विषय पर सकारात्मक कहानी।
आदरणीया जिज्ञासा जी, नमस्ते 🙏❗️आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी ने मुझे सृजन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दीं है. आप इस कहानी को मेरी आवाज़ में मेरी यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर अवश्य सुने और देखें :
https://youtu.be/igH7WVr3w5g
प्रेरक कहानी!
आदरणीया अनिता जी,
नमस्ते 🙏❗️आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी ने मुझे सृजन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दीं है. आप इस कहानी को मेरी आवाज़ में मेरी यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर अवश्य सुने और देखें :
https://youtu.be/igH7WVr3w5g
आदरनीय सर,मैं स्वयं एक किसान परिवार की बेटी हुँ।शुक्र है,हमारे यहाँ मैने कभी बाढ़ की विभिषीका नहीं देखी पर फसल पर दूसरे मौसमों की मार की ढेरों कहानियाँ देखी सुनी है।सच तो यह कि किसान उम्मीदों का दूसरा नाम है।यदि इतने जीवट किसान संसार में ना हों तोदुनिया को पेटभराई अन्न कभी भी नसीब न हो।एक जीवट और प्रेरक कथानक के लिए आभार आपका 🙏
आदरणीया रेणु जी, नमस्ते 🙏❗️
आपने कहानी क़े मर्म को समझते हुए जैसी समीक्षा की है, वैसे कम लोग ही कर पाते हैं. आपका ह्रदय तल से आभार ❗️--ब्रजेन्द्र नाथ
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