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Friday, June 2, 2023

"तुम्हारे झूठ से प्यार है" कहानी संग्रह का लोकार्पण

 #BnmRachnaWorld

#Tumhare jhuth se pyar hai

#तुम्हारे #झूठ से #प्यार है









परम स्नेही सुधीजनों,

मेरी लिखी और कई स्थलों पर प्रकाशित चौदह कहानियों का संग्रह "तुम्हारे झूठ से प्यार है" का लोकार्पण साहित्य, भाषा और संस्कृति के उन्नयन के लिए समर्पित केंद्र सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन/ तुलसी भवन, जमशेदपुर (झारखण्ड) के प्रयाग कक्ष में 3 जून 23 को हो गया है. इस पुस्तक में मेरे पूर्व प्रकाशित धारावाहिकों और उपन्यासों पर प्रतिलिपि के पाठकों द्वारा व्यक्त टिप्पणियो और समीक्षाओं को भी स्थान दिया गया है. आप सबों की शुभेच्छाओं का आकांक्षी हूँ.

इस पुस्तक पर कुछ विद्वतजनों द्वारा व्यक्त विचारों को प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है.

प्रसिद्ध साहित्यविद डॉ हरेराम त्रिपाठी "चेतन" जी द्वारा व्यक्त विचार देखें और इस पर आधारित रील का वीडियो फेसबुक पर अवश्य देखें :

बेचैन वर्तमान की भिन्न - भिन्न रंगों में रंगी महत्वाकांक्षाओं, नए अंकुरित मूल्यों, सम्बंधों की सीमारेखाओं को तोड़ती आकांक्षाओं तथा स्वयं से निर्मित परिभाषाओं के भीतर अपनी खोज करती इकहरी मानसिकताओं वाली कहानियाँ इस संग्रह में हैं. आधुनिक परिवेश के अंदर के उद्वेलनों, पहचान की बेचैनी और पसीने की गंध एवं संवेदनशीलता की नई नई धुनें थिरकती नजर आती हैं. कहानीकार ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र ने इन कहानियों के माध्यम से पीढ़ियों के अंतराल की मनोवैज्ञानिक सपनों के भार, टूटन का शोर को रेखांकित किया है.

कहानीकार मिश्र ने इन कहानियों के माध्यम से जीवन जीने और जीवन काटने का अर्थ भी समझा दिया है. इस संग्रह की कहानियों के समशीतोष्ण शब्दों ने नारी चेतना के नए स्वरों को नई भंगिमाएं दी हैं तथा कथा - तंतुओं की खिड़कियों से झाँकती आँखों में नई चमक उत्पन्न की है.

यह कहानी संग्रह "तुम्हारे झूठ से प्यार है " नए युग की जीजीविषा को उभारती है और पीढ़ियों के बीच चटके दरारों को रेखांकित करती है.

मैं ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र की कहानी चेतना की मंगल कामना करता हूँ और उनकी कलम से और अधिक उपजाऊ कहानी की फसल की उम्मीद करता हूँ.

डॉ हरेराम त्रिपाठी 'चेतन'

वरिष्ठ साहित्यकार, हिंदी एवं भोजपुरी.

बदलते शहरी समाज और रुमानियत की झलक

दिव्येन्दु त्रिपाठी

श्री ब्रजेन्द्र नाथ  मिश्र द्वारा रचित कुल चौदह कहानियों का संग्रह है यह पुस्तक - "तुम्हारे झूठ से प्यार है". श्री मिश्र कथा - साहित्य में अपनी गहरी पैठ रखते हैं तथा अपनी विशिष्ट शैली, कथानक के अनूठे स्वरुप तथा प्रसंगों को रोचक ढंग से समेटने की कला में माहिर हैं. आप अपनी कहानियों में अक्सर वैसे परिवेश और परिघटनाओं को लेकर आते हैं जो वर्त्तमान दौर को रूपायित करते हुए बदलते मानव - समाज को रेखांकित करती हैं. आप मुख्यतः शहरी परिवेश को चित्रित करने वाले कथाकार हैं. साथ ही रुमानियत को भी निराले अंदाज में रखने में सिद्धहस्त हैं. शहर तथा रुमानियत आपकी कहानियों के केंद्रस्थ भाव में रहते हैं. यदि किसी कहानी में गाँव उपस्थित हो गया तो उसमें भी किसी - न - किसी प्रकार से शहरी हस्तक्षेप नजर आ ही जाता है.

भूमण्डलीकरण के बाद और विशेषकर पिछले एक - दो दशकों में दूर संचार क्रांति के पुरजोर ने वैश्विक मानवीय संवेदनाओं के तानेबाने को नया स्वरुप प्रदान किया है.  भारत भी इससे अछूता नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य देशों के मुकाबले यह नव्य परिवर्तनों को अधिक साक्षात्कृत कर रहा है. देशों तथा राष्ट्रो के बीच की दूरियां कम हो रही हैं. प्रव्रजन की सुविधाओं तथा वीजा - नियमों के लचीलेपन ने विश्व विरादरी को एक नया रूप प्रदान किया है. भारत के युवा विश्व के हर प्रमुख शहर में विद्यार्जन के क्रम में अथवा नौकरी या व्यापार में अपनी महनीय उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं. भारत हर जगह दिखाई पड़ रहा है. इस संग्रह की पहली कहानी "तुम्हारे झूठ से प्यार है " में बाला सुब्रमण्यम ऐसे ही युवाओं का प्रतिनिधि पात्र है.

नए दौर में 'प्रेम तथा परिणय' ने अपना तानाबाना बदला है. विभिन्न समुदायों, राज्यों के लोगों तथा विदेशी मित्र से प्रेम तथा विवाह अब कोई चौँकानेवाली बात नहीं रही. 'गेट वे ऑफ़ इंडिया' ऐसे ही दो परिवारों ( गुजराती तथा विहारी ) के बीच होने वाले वैवाहिक सम्बन्ध पर आधारित है.

"तुम्हारे झूठ से प्यार है" में भारतीय युवक और अमेरिकन युवती के बीच प्रणय को पनपते हुए दिखलाया गया है. छठवीं शताब्दी की पृष्ठभूमि पर लिखी ऐतिहासिक कहानी "प्रतिशोध का पुरस्कार" में तिब्बती भिक्षुक इत्सिंग तथा मगध की युवती के मध्य परिणय को दिखलाया गया है. हालांकि यह कथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य की नहीं है लेकिन इस विशेष परिप्रेक्ष्य (प्रणय - परिणय ) में आधुनिक समाज से स्पर्श करती हुई प्रतीत होती है.

इस संग्रह की कहानियों में देश तथा विश्व के कई प्रमुख नगरों की उजस्थिति दिखलाई गईं है - हैदराबाद, बैंगलोर, मुंबई, पुणे, दिल्ली, इरवाइन (कैलीफोरनिया, यू एस ए ) आदि जहाँ आज का युवा वर्ग अपनी धाक जमाते नजर आता है. मिश्र जी अपनी कथाओं पर काफी काम करते हैं. प्रेमियों के अंतरंग वार्त्तालापों को बारीकी से लिखते हैं. आधुनिक परिधान में सजी - धजी युवती के 'नख शिख वर्णन' में संस्कृतनिष्ठ शब्दों की झड़ी लगा देते हैं. इनकी कहानियों की नायिकायें इक्कीसवीं सदी की होकर भी छायावादी युग का मृदुल ह्रदय धारण करती है. उनमें छल - कपट नहीं, व्यक्तित्व में उलझाव नहीं. लेखक इनमें "कामायनी" की 'श्रद्धा' के कुछ अंश इन नायिकाओं में डालते हैं. आप नायिकाओं को आजकल के किन्हीं यथार्थ पात्रों को कल्पना शक्ति से विकसित कर उसमें 'श्रद्धा' के तत्व मिला डालते हैं. ये नायिकायें स्वभाव से लचीली होती हैं. शीघ्र कन्विंस / सहमत हो जाती हैं. उन्हें मित्र या प्रेयसी बनाने में अधिक फ़िल्मी दाव - पेंच आजमाना नहीं पड़ता है. वें शीघ्र ही प्रणय की परिधि में चली आती हैं. 'आलिंगन' की स्थिति के लिए सहज ही प्रस्तुत हो जाती हैं. वे पहल करती हैं, प्रपोज तक कर देती हैं.

   आजकल के अधिक संवेदनशील लेखक बदलते परिवेश को लेकर निराश दिखाते हैं. बहुराष्ट्रीयता तथा पूंजीवाद क्व प्रति गहन असंतोष प्रदर्शित करते हैं. भावी पीढ़ी की सफलताओं की दीवारों के नींव में पुरानी पीढ़ी की पीड़ा, मूल्यहीनता से उत्पन्न सिसकन, उपेक्षा, अंतराल आदि का दर्द आदि अधिक बेधनेवाला लगता है. इन बातों से इंकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक विकास नव कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है. लेकिन मिश्र जी की कहानियों के वरिष्ठ - नागरिक पात्र भी 'अपडेट ' हैं. वे नई पीढ़ी के बदलावों को सहर्ष स्वीकारते हैं. वे वर्जनाओं से ऊपर उठकर बच्चों के साथ - साथ नई हवा में झूमने का प्रयास करते हैं. समाज में बुजुर्ग होते लोगों की भी कई कोटियाँ हैं जो कि वैक्तिक अर्थव्यवस्था, नैतिक मानदंडों, परंपराओं के प्रति झुकाव की मात्रा आदि से प्रभावित रहती हैं. कथाकर ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र आशावादी लेखक हैं. वे आगे बढ़ते समाज, सफल होती युवापीढ़ी, वैश्विक समीप्य का सहर्ष स्वागत करते हैं.

लेकिन समाज की तल्ख़ सच्चाईयों तथा मूल्यों को आप बखूबी समझते हैं. केवल गुलाबी - गुलाबी ही नहीं बल्कि कंटाकाकीर्ण परिवेशबसे भी पाठकों को दो - चार कराते हैं. "विश्वास के दर्प" में एक बालक की ईमानदारी के प्रति निष्ठा को दर्शाया है. "वह गोली" में फ़ौजी जीवन के मार्मिक प्रसंगों को उठाया गया है. "रमजीता पीपर" कहानी में पर्यावरण के प्रति लोगों की अनिष्ठा, स्वार्थपरता तथा परंपरागत मूल्यों के क्षरण की बात उठाई गईं है. "मुस्कान को घिरने दो" में एक मेडिकल के विद्यार्थी की मानवीय संवेदना प्रकट हुई है.

उस संकलन में आई कहानी "प्रतिशोध का पुरस्कार" सबसे अलग हटकर है. उत्तरगुप्तकालीन  भारत की राजनैतिक धार्मिक वतावारण को उपवृंहित करती यह कहानी, श्वेत हूणों के अत्याचारों, उनकी नृशंस अवधारणाओं, नालंदा विश्वविद्यालय के आदर्शो, उत्तरकालीन गुप्त राजाओं की सत्तागत स्थिति को इस कहानी में अभिचित्रित किया गया है. संभवतः ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गईं यह लेखक की पहली कहानी है.

अंत में तीन हास्य व्यंग्य रचनायें इस संग्रह को अधिक रोचक बना रही हैं. गुदगुदी उत्पन्न करने वाली  ये रचनाएँ समस्याओं को व्यंजित करती हैं. "क्या मैं बैल हूँ" की व्यंजनात्मकता बेजोड़ है.

इस कृति से पूर्व भी लेखक के कई उपन्यास और कथा संग्रह प्रकाशित हैं. वे पुस्तकाकार रुप में अमेज़न पर और ई बुक के रूप अमेज़ॉन किंडल पर उयलब्ध हैं. यह संग्रह लेखक की लेखनी की प्रवाहशीलता का प्रमाण दे रहा है. यह पाठकों, विद्वानों तथा समीक्षकों द्वारा स्वीकृत और प्रशंसित होगा, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है. "तुम्हरे झूठ से प्यार है" यथार्थ की बूंदों को मस्तिष्क और मानस के पत्तों पर अपनी चमक तथा मुस्कुराहट बिखेरे, ऐसी मेरी शुभकामना है.

दिव्येन्दु त्रिपाठी

रामनवमी

संवत - 2080

28 मार्च 2023.

(श्री दिव्येन्दु त्रिपाठी वास्तु, पुरातत्व और डी एन ए से सम्बंधित कई शोध - ग्रंधों के रचयिता हैं )



2 comments:

Anita said...

सार्थक समीक्षा, पुस्तक के लिये बहुत बहुत बधाई!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया, नमस्ते 🙏❗️
उत्साहवर्धक उदगार के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें ❗️ ब्रजेन्द्र नाथ

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