Followers

Friday, December 22, 2017

कोहरा (कविता)

#poem#nature
#BnmRachnaWorld


कोहरा 


कोहरे का नहीं ओर - छोर।

सुबह कर रही साँय - साँय,
सूरज  कहीं छुपा लगता है।
सारा दृश्य, अदृश्य  हो रहा,
अँधेरा अभी पसरा लगता है।

अरुनचूड़ भी चुप बैठा है,
अलसाई - सी लगती भोर।
कोहरे का नहीं ओर- छोर।

सात घोड़ों पर सवार सूर्य भी,
कहाँ भटक गया गगन में?
हरी दूब पर पड़े तुषार हैं,
फूल झूम नहीं रहे चमन में।

नमी  फैला रही, सर्द हवाएँ,
पगडंडी भींग,  हुई सराबोर।
कोहरे का नहीं ओर- छोर।


थी स्याह रात उतरी धरा पर,
कँपकँपाती बदन बेध रही।
रजाई भी ठंढ से हार रही थी,
ठंडी हवाएँ हड्डियां छेद रहीं।

फूस का छप्पर भींग गया ओस से,
टीस भर गई पोर- पोर।
कोहरे का नहीं ओर- छोर।

आसमान, ज्यों तनी  है चादर,
धरती जिनकी बनी बिछौना।
कौन करे है उनकी चिंता,
फूटपाथ पर जिन्हें है सोना।

भाग्य का सूरज अस्त हो रहा,
अँधेरे छा रहे घनघोर।
कोहरे का नहीं ओर - छोर।


ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर 

2 comments:

Anonymous said...


कुहरे का सुन्दर चित्रण किया गया है ...बहुत खूब!

Marmagya - know the inner self said...

प्रिय पाठक, आपके उत्साहवर्धन से मैं अभिभूत हूं। आप मेरे सारे पोस्ट पर अपने विचार अक़श्य दें। हमे प्रतीक्षा रहेगी। सादर आभार!

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...