Followers

Thursday, July 17, 2014

ओस की बूँदें (कविता)

#bnmpoems
ओस  की बूँदें
ओस      की   बूँदें   मोती  -  सी लगें ,
दूबों पर टिकती हुयी सोती - सी लगें

उन्हें उँगलियों से छूना चाहूँ ,
मुठियों में बंद करना चाहूँ   

रात सितारे आते अम्बर से ,
उन्हें धरा पर बिखरा जाते ,
झोंके पवन के आते, सहलाते  ,
पसारते ,     छितरा       जाते

नहलाई हुयी उन बूंदों में ,
छल - छल करती आती भोर ,

पत्तों पर गिरती , चमकाती,
जीवन - रस से करती सराबोर। 

 
फूलों पर बूंदे ठहरी हुयी ,
छूती  , चूमती, नाचती हैं ,
टिकती, टप - टप गिरती हुयी ,
पराग चुरा ले जाती हैं।


आओ उंगली के पोरों में ,
कर लूँ कैद , ले    भागूं ,
उनके बदले थोड़ी - सी ,
मोती   गगन से मैं मांगू।  

-- --ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
    जमशेदपुर
'18/07/2014, Vaishali, Delhi NCR'
This poem is also on the site link:
http://www.poemhunter.com/brajendra-nath-mishra/poems/

No comments:

पुस्तक समीक्षा - दीवार में एक खिड़की रहती थी

  दीवार में एक खिड़की रहती थी:  पाठकीय विचार  –ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र  विनोद कुमार शुक्ल (अभी उम्र 89 वर्ष) की यह पुस्तक अभी इसलिए चर्चित हो गई...