#bnmpoems
ओस की बूँदें
ओस की बूँदें मोती - सी लगें
,
दूबों पर टिकती
हुयी सोती - सी
लगें ।
उन्हें उँगलियों से छूना
चाहूँ ,
मुठियों
में बंद करना
चाहूँ ।
रात सितारे आते अम्बर
से ,
उन्हें धरा पर
बिखरा जाते ,
झोंके पवन के
आते, सहलाते ,
पसारते
, छितरा जाते
।
नहलाई हुयी उन
बूंदों में ,
छल - छल करती
आती भोर ,
पत्तों पर गिरती
, चमकाती,
जीवन - रस से
करती सराबोर।
फूलों पर बूंदे
ठहरी हुयी ,
छूती , चूमती,
नाचती हैं ,
टिकती, टप - टप
गिरती हुयी ,
पराग चुरा ले
जाती हैं।
आओ उंगली के पोरों
में ,
कर लूँ कैद
, ले भागूं
,
उनके बदले थोड़ी
- सी ,
मोती गगन
से मैं मांगू।
-- --ब्रजेंद्र
नाथ मिश्र
जमशेदपुर'18/07/2014, Vaishali, Delhi NCR'
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