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जम्मु कश्मिर यात्रा वृतान्त, 24-05-2018, बृहस्पतिवार, तीसरा दिन, Day 3
आज सुबह पांच बजे ही मैं और ललन जी वहां पहुँचे जहां पर्ची कटती थी, पुराने बस स्टैंड के पास। वहाँ हमारे समूह से कुछ और लोग भी लाईन में थे। हमलोग उनके साथ जुड़ गये। करीब साढे 9 बजे यह घोषणा हुई कि अभी तक यात्रा शुरु होने की कोई समय सीमा नहीं दी गयी है, इसलिये आप लोग लाईन में नहीं में अनावश्यक नहीं खड़े रहे।
वहां पर मेरे साथ पिछले 21-22 अप्रील को मेरे साथ जम्मु कश्मीर अध्ययन केन्द्र के workshop में भाग ले रहे, गोरखपुर के महेश कुमार सिंह जी से मुलाकात हुई। वे पेशे से शिक्षक हैं। वे अपने पूरे परिवार यानी पत्नी, बच्चों और माता पिता के साथ आये हुये थे। आग लगने के कारण और यात्रा के रुक जाने के कारण कई लोग जो दूर दराज जगहों से आये हुये थे, बच्चों और बुजुर्गों के साथ काफी कष्ट में पड़ गये हैं। वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड अनजान दिख रहा है या अनजान बने रहने में अपनी पीठ की थपथपाई कर रहा है। श्राईन बोर्ड के तरफ से ना कोई घोषणा, ना कोई अह्तियात बरतने का सुझाव लोकल न्यूज़ पेपर में या स्टेशन पर ही कोई घोषणा, कुछ नहीं देखा गया। हालाँकि यह उनके लिये हमेशा होते रहने वाली छोटी सी घटना हो सकती है, लेकिन आम आदमी जो एक-एक पैसे धर्मार्थ के लिये बचाकर या कहीं से उधार लेकर ही अपने पूरे परिवार के साथ माता रानी के दर्शन के लिये यहाँ आते है, उनकी बढी हुई परेशानियों से बेखबर सरकार और श्राईन बोर्ड उन यात्रियों के प्रति अपनी जिम्मेवरियों से किनारा कैसे कर सकती हैं?
हमलोग वहां से वापस अपने ठहरने के स्थान पर आ गये। वहां नाश्ता किये। नाश्ते के बाद सोचे कि चलें थोड़ा देख आयें कि क्या स्थिति है। वहाँ पहुँचते ही पता चला कि पर्ची मिलनी शुरु हो गयी है। काफी भीड़ इकट्ठी होनी शुरु हो गयी। वहाँ काऊंटर तक पहुंचने के काफी पहले से सिर्फ एक ही लाईन में घुसना था। उस जगह से लेकर पीछे एक किलो मीटर तक पहले दो लाईन, फिर चार - चार पन्क्तियाँ बन गयीं। उपर सूरज लग रहा था कि आज आग बरसाने में कोई कमी नहीं रखनी है। बच्चे, बूढे सबों की फिजिकल उपस्थिति जरूरी थी, इसलिये सारे पक्तिबद्ध थे। इतने में देखा गया कि एक बच्चा बेहोश हो गया। जो पुलिस सबों को डण्डे दिखाकर पन्क्तिबद्ध करने में अपने ड्यूटी का मुश्तैदीपना दिखा रही थी, उसे उस बच्चे का बेहोश हो जाना दिख नहीं रहा था। हमारे प्रधान मन्त्री देश को स्वच्छता से लेकर देशभक्ति का मन्त्र पूरे देश को दे रहे हैं लेकिन तन्त्र अपने पुराने अंदाज में ही काम कर रहा है। मेरा सुझाव है कि देश की सारी पुलिस को कुछ दिन मिलिट्री कैम्प में ट्रेनिंग दी जानी चाहिये और उनकी बॉर्डर पर पोस्टिंग भी दी जानी चाहिये, तभी शायद उनमें देश भावना की समझ आ जाये। अन्यथा वे आम जन को वैसे ही समझते रहेन्गें जैसे अंग्रेजों के जमाने की ब्रिटिश पुलिस फोर्स आम भरतीय को समझते रहे थे।
हमलोग अखिकार दो घन्टे लाईन में खड़े रहने के बाद करीब बारह बजे अपनी - अपनी पर्चियां लेकर डेरे पर आ गये। तय हुआ कि हमलोग तुरत नहा- धोकर यहीं से तैयार होकर तुरत वैष्णो देवी भवन की यात्रा शुरु करेंगें। मैने अपनी पत्नी और ग्रुप के साथ बाण गंगा प्रवेश द्वार तक पहुंचकर अपनी यात्रा करीब एक बजे अपराह्न शुरु कर दिये।
यात्रा की चढ़ाई मेरे जैसे 65 वर्ष के थोडे कमजोर घुटने वाले ब्यक्ति के लिये कठिन थी। मेरी पत्नी ने अन्य लोगों के साथ पैदल ही यात्रा करने की ठानी। मैं भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर करीब दो घन्टे चला होगा। इतने में मेरे घुटने जवाब देने लगे। मैने पत्नी को कहा, "क्या किया जाय?"
उन्होने कहा, "आप घोड़ा ले लीजिये।"
मैने पूछा, "आप क्या पैदल जायेंगीं? "
उन्होने कहा, "जब तक चल सकूं, पैदल चलून्गी। नहीं, तो घोड़ा ले लूंगी।"
शायद वे समूह के अन्य लोगों के साथ देने की अहमियत से भी बंधी हुयी साथ चलने के निर्णय पर चल रही हों। या धर्मार्थ कार्यों में कष्ट सहन करने के सन्स्कारगत मान्यताओं से बन्धे हुये भी उन्होने माता रानी के चरणों तक चरणों से ही जाने की कठिन व्रत पालन करने के प्रति प्दतिबद्धता का निरर्वहण कर रही हो। अर्धकुमारी से चढाई सीधी थी। उसमें थकावट ज्यादा महसूस होती है।
इसतरह हम सभी लोगों को भवन के करीब 7 बजकर 30 मिनट शाम में पहुँच गये होन्गे। समान जिसमें मोबाइल आदि रखने जरूरत के लिये लॉकर रुम के लिये कोशिश में लगे तो पता चला कि उसके लिये लम्बी लाईन लगी है। और शायद यह भी खबर आयी कि लॉकरों की संख्या भी खत्म हो गयी है। श्राईन बोर्ड की अब्यवस्था या ऐसी स्थिति को सम्भाल सकने की अक्षमता साफ - साफ दिख गयी। अब हमलोगों को अपनी योजना बदलने की जरूरत आ पड़ी।
निर्णय यह हुआ कि मैं और ललन जी सामान के साथ इन्तजार करेंगें और बाकी लोग पक्तिबद्ध हो गेट न 3 से प्रवेश करेंगें। इसी में मेरी पत्नी भी थी। इतने में देवी जी की आरती का समय हो गया। पूरी की पूरी पंक्ति का मूवमेंट भी रुक गया। पीछे के तरफ भीड भी बढ़ती जा रही थी। यह भीड अब्यवस्थित हो रही थी। पुलिस बल भी तैनात थी। लेकिन उससे ऐसी अब्यवस्था से निबटने के लिये पुलिस बल और श्राईन बोर्ड की किसी कार्य योजना का नहीं होना हमलोगों बहुत खला।
जब हमलोग इन्तजार कर रहे थे, उससमय कुछ लोग अपनी परेशानी का बयान कर रहे थे, वहीं पर बैठे हुये एक बुजुर्ग जैसे सज्जन ने कहा, " भैया, जबतक आप यहां हैं, परेशानियों के बावजूद भी दर्शन किये, वह यहीं तक याद रहेगा। जब यहां से निकल जाओगे, यहां की सारी परेशानियाँ भूल जाओगे और सिर्फ याद रह जायेगा की माता रानी के दर्शन हमने कर लिया है।" मुझे उनका यह वक्तब्य काफी सकारात्मक लागा।
हमलोगों के कफ़ी इन्तजार के बाद रात के 11 बजे वे लोग दर्शन के बाद वापस आये। आते ही पहली खबर मिली कि पत्नी के कान के एक तरफ का कर्णफूल किसी ने खींच लिया। इसके बाद करीब 45 मिनट में घुमावदार मार्ग से होते हुये देवी जी की पुरानी गुफा से होते हुये टनेल मार्ग पर जा पहुंचे। वहां दर्शन का लाभ लेकर हमलोग अपने समूह से आकर मिल गये।
अब डेरे लौटने की जल्दी थी। हमलोगों को सुबह सात बजे ही पहलगाम के लिये प्रस्थान करना था। मैने तो घोडा लेने का निर्णय ले लिया। पत्नी ने पुन: अपने धर्मार्थ कष्ट सहन में पुण्य अर्जन करने में प्रतिबद्ध दिखी। वे भी समूह के साथ पैदल उतरने का निर्णय लिया। मैं 4 सुबह बजे तक बाण गंगा के पास पहुंचा। वहां से औटो लेकर मैं अपने ठहरने के स्थान तक आ पहुंचा।
आते ही मैं थोड़ी नीन्द ले लेनी चाहिये, सोचकर मैं सो गया। पत्नी करीब 6 बजे पहुंची। फिर उनका निर्णय मुझे कुछ अविवेक पूर्ण लगा था। आखिर उनलोगों को अर्धकुमारी यानी आधी उतरायी के बाद घोडा लेना ही पड़ा, अन्यथा सवेरे प्रस्थान में उनके कारण विलम्ब हो सकता था।
क्रमशः
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जम्मु कश्मिर यात्रा वृतान्त, 24-05-2018, बृहस्पतिवार, तीसरा दिन, Day 3
आज सुबह पांच बजे ही मैं और ललन जी वहां पहुँचे जहां पर्ची कटती थी, पुराने बस स्टैंड के पास। वहाँ हमारे समूह से कुछ और लोग भी लाईन में थे। हमलोग उनके साथ जुड़ गये। करीब साढे 9 बजे यह घोषणा हुई कि अभी तक यात्रा शुरु होने की कोई समय सीमा नहीं दी गयी है, इसलिये आप लोग लाईन में नहीं में अनावश्यक नहीं खड़े रहे।
वहां पर मेरे साथ पिछले 21-22 अप्रील को मेरे साथ जम्मु कश्मीर अध्ययन केन्द्र के workshop में भाग ले रहे, गोरखपुर के महेश कुमार सिंह जी से मुलाकात हुई। वे पेशे से शिक्षक हैं। वे अपने पूरे परिवार यानी पत्नी, बच्चों और माता पिता के साथ आये हुये थे। आग लगने के कारण और यात्रा के रुक जाने के कारण कई लोग जो दूर दराज जगहों से आये हुये थे, बच्चों और बुजुर्गों के साथ काफी कष्ट में पड़ गये हैं। वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड अनजान दिख रहा है या अनजान बने रहने में अपनी पीठ की थपथपाई कर रहा है। श्राईन बोर्ड के तरफ से ना कोई घोषणा, ना कोई अह्तियात बरतने का सुझाव लोकल न्यूज़ पेपर में या स्टेशन पर ही कोई घोषणा, कुछ नहीं देखा गया। हालाँकि यह उनके लिये हमेशा होते रहने वाली छोटी सी घटना हो सकती है, लेकिन आम आदमी जो एक-एक पैसे धर्मार्थ के लिये बचाकर या कहीं से उधार लेकर ही अपने पूरे परिवार के साथ माता रानी के दर्शन के लिये यहाँ आते है, उनकी बढी हुई परेशानियों से बेखबर सरकार और श्राईन बोर्ड उन यात्रियों के प्रति अपनी जिम्मेवरियों से किनारा कैसे कर सकती हैं?
हमलोग वहां से वापस अपने ठहरने के स्थान पर आ गये। वहां नाश्ता किये। नाश्ते के बाद सोचे कि चलें थोड़ा देख आयें कि क्या स्थिति है। वहाँ पहुँचते ही पता चला कि पर्ची मिलनी शुरु हो गयी है। काफी भीड़ इकट्ठी होनी शुरु हो गयी। वहाँ काऊंटर तक पहुंचने के काफी पहले से सिर्फ एक ही लाईन में घुसना था। उस जगह से लेकर पीछे एक किलो मीटर तक पहले दो लाईन, फिर चार - चार पन्क्तियाँ बन गयीं। उपर सूरज लग रहा था कि आज आग बरसाने में कोई कमी नहीं रखनी है। बच्चे, बूढे सबों की फिजिकल उपस्थिति जरूरी थी, इसलिये सारे पक्तिबद्ध थे। इतने में देखा गया कि एक बच्चा बेहोश हो गया। जो पुलिस सबों को डण्डे दिखाकर पन्क्तिबद्ध करने में अपने ड्यूटी का मुश्तैदीपना दिखा रही थी, उसे उस बच्चे का बेहोश हो जाना दिख नहीं रहा था। हमारे प्रधान मन्त्री देश को स्वच्छता से लेकर देशभक्ति का मन्त्र पूरे देश को दे रहे हैं लेकिन तन्त्र अपने पुराने अंदाज में ही काम कर रहा है। मेरा सुझाव है कि देश की सारी पुलिस को कुछ दिन मिलिट्री कैम्प में ट्रेनिंग दी जानी चाहिये और उनकी बॉर्डर पर पोस्टिंग भी दी जानी चाहिये, तभी शायद उनमें देश भावना की समझ आ जाये। अन्यथा वे आम जन को वैसे ही समझते रहेन्गें जैसे अंग्रेजों के जमाने की ब्रिटिश पुलिस फोर्स आम भरतीय को समझते रहे थे।
हमलोग अखिकार दो घन्टे लाईन में खड़े रहने के बाद करीब बारह बजे अपनी - अपनी पर्चियां लेकर डेरे पर आ गये। तय हुआ कि हमलोग तुरत नहा- धोकर यहीं से तैयार होकर तुरत वैष्णो देवी भवन की यात्रा शुरु करेंगें। मैने अपनी पत्नी और ग्रुप के साथ बाण गंगा प्रवेश द्वार तक पहुंचकर अपनी यात्रा करीब एक बजे अपराह्न शुरु कर दिये।
यात्रा की चढ़ाई मेरे जैसे 65 वर्ष के थोडे कमजोर घुटने वाले ब्यक्ति के लिये कठिन थी। मेरी पत्नी ने अन्य लोगों के साथ पैदल ही यात्रा करने की ठानी। मैं भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर करीब दो घन्टे चला होगा। इतने में मेरे घुटने जवाब देने लगे। मैने पत्नी को कहा, "क्या किया जाय?"
उन्होने कहा, "आप घोड़ा ले लीजिये।"
मैने पूछा, "आप क्या पैदल जायेंगीं? "
उन्होने कहा, "जब तक चल सकूं, पैदल चलून्गी। नहीं, तो घोड़ा ले लूंगी।"
शायद वे समूह के अन्य लोगों के साथ देने की अहमियत से भी बंधी हुयी साथ चलने के निर्णय पर चल रही हों। या धर्मार्थ कार्यों में कष्ट सहन करने के सन्स्कारगत मान्यताओं से बन्धे हुये भी उन्होने माता रानी के चरणों तक चरणों से ही जाने की कठिन व्रत पालन करने के प्रति प्दतिबद्धता का निरर्वहण कर रही हो। अर्धकुमारी से चढाई सीधी थी। उसमें थकावट ज्यादा महसूस होती है।
इसतरह हम सभी लोगों को भवन के करीब 7 बजकर 30 मिनट शाम में पहुँच गये होन्गे। समान जिसमें मोबाइल आदि रखने जरूरत के लिये लॉकर रुम के लिये कोशिश में लगे तो पता चला कि उसके लिये लम्बी लाईन लगी है। और शायद यह भी खबर आयी कि लॉकरों की संख्या भी खत्म हो गयी है। श्राईन बोर्ड की अब्यवस्था या ऐसी स्थिति को सम्भाल सकने की अक्षमता साफ - साफ दिख गयी। अब हमलोगों को अपनी योजना बदलने की जरूरत आ पड़ी।
निर्णय यह हुआ कि मैं और ललन जी सामान के साथ इन्तजार करेंगें और बाकी लोग पक्तिबद्ध हो गेट न 3 से प्रवेश करेंगें। इसी में मेरी पत्नी भी थी। इतने में देवी जी की आरती का समय हो गया। पूरी की पूरी पंक्ति का मूवमेंट भी रुक गया। पीछे के तरफ भीड भी बढ़ती जा रही थी। यह भीड अब्यवस्थित हो रही थी। पुलिस बल भी तैनात थी। लेकिन उससे ऐसी अब्यवस्था से निबटने के लिये पुलिस बल और श्राईन बोर्ड की किसी कार्य योजना का नहीं होना हमलोगों बहुत खला।
जब हमलोग इन्तजार कर रहे थे, उससमय कुछ लोग अपनी परेशानी का बयान कर रहे थे, वहीं पर बैठे हुये एक बुजुर्ग जैसे सज्जन ने कहा, " भैया, जबतक आप यहां हैं, परेशानियों के बावजूद भी दर्शन किये, वह यहीं तक याद रहेगा। जब यहां से निकल जाओगे, यहां की सारी परेशानियाँ भूल जाओगे और सिर्फ याद रह जायेगा की माता रानी के दर्शन हमने कर लिया है।" मुझे उनका यह वक्तब्य काफी सकारात्मक लागा।
हमलोगों के कफ़ी इन्तजार के बाद रात के 11 बजे वे लोग दर्शन के बाद वापस आये। आते ही पहली खबर मिली कि पत्नी के कान के एक तरफ का कर्णफूल किसी ने खींच लिया। इसके बाद करीब 45 मिनट में घुमावदार मार्ग से होते हुये देवी जी की पुरानी गुफा से होते हुये टनेल मार्ग पर जा पहुंचे। वहां दर्शन का लाभ लेकर हमलोग अपने समूह से आकर मिल गये।
अब डेरे लौटने की जल्दी थी। हमलोगों को सुबह सात बजे ही पहलगाम के लिये प्रस्थान करना था। मैने तो घोडा लेने का निर्णय ले लिया। पत्नी ने पुन: अपने धर्मार्थ कष्ट सहन में पुण्य अर्जन करने में प्रतिबद्ध दिखी। वे भी समूह के साथ पैदल उतरने का निर्णय लिया। मैं 4 सुबह बजे तक बाण गंगा के पास पहुंचा। वहां से औटो लेकर मैं अपने ठहरने के स्थान तक आ पहुंचा।
आते ही मैं थोड़ी नीन्द ले लेनी चाहिये, सोचकर मैं सो गया। पत्नी करीब 6 बजे पहुंची। फिर उनका निर्णय मुझे कुछ अविवेक पूर्ण लगा था। आखिर उनलोगों को अर्धकुमारी यानी आधी उतरायी के बाद घोडा लेना ही पड़ा, अन्यथा सवेरे प्रस्थान में उनके कारण विलम्ब हो सकता था।
क्रमशः
1 comment:
यात्रा पथ में अग्नि संचार के कारण यात्रा रुक गयी थी। इसके बावजूद भी यात्रा शुरू होने पर कैसे माता के दर्शन किये और फिर बिना विश्राम किये अन्य लोगों के साथ समूह के द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के लिए पुन: शामिल हो लिये, इसका विवरण बहुत अच्छा बन पड़ा है।
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