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Saturday, June 30, 2018

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 25-05-2018, शुक्रवार, चौथा दिन, Day 4

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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 25-05-2018, शुक्रवार, चौथा दिन, Day 4,

पत्नी सीधे तैयार होने चली गयी। वे तैयार होकर निकली, तो मैं तैयार हो हुआ। हमलोगों की पहलगाम की यात्रा 9 बजे सुबह से शुरु हुयी। हमलोग एक तवेरा suv पर सवार होकर उधमपुर, कज़ीगुन्ड से होते हुये पहलगाम शाम 6 बजे शाम को पहुंचे।
इस यात्रा में नयी बनी सुरंग, चेननी- नसरी के पास , करीब नौ किलोमीटर लम्बी, को पार करना एक नये तरह के अनुभव से गुजरना था। इस सुरंग ने जम्मु से श्रीनगर की 300 किमी दूरी को कम करके 250 किलोमीटर कर दिया है। हिमालय पर्वत के अन्दरूनी पहाडों को बेधकर इतनी बडी दो सुरंगों का निर्माण, तकनीक और निवेश के साथ दृढ़ इच्छा शक्ति का भी परिचायक है। ये दोनों सुरंगें हर 300मीटर के बाद गुफाओ से आपस में जुडी हुयी है। शायद यह एसिया की अबतक की सबसे बड़ी सुरंग है। रामबाण जिले में यह सुरंग पटनी टॉप आदि सुन्दर परिदृश्यों वाले स्थानों को बिना प्रभावित किये बनाई गयी हैं।
इस सुरंग से करीब 44 एव्लान्च और लैन्ड स्लाईड वाले क्षेत्रों में आसन्न खतरों से भी बचाव हो सकेगा।
चेनाब नदी के किनारे-किनारे उंचे पहाडों को काटकर बने सर्पीले सडक मार्ग से गुजरना भी नये ऐडवेंचर की तरह था। अभी इस सडक को फ़ॉर लेन बनाने का कार्य जोरों पर है। इससे ड़ायवरसन की भरमार है। धूल उड़ाती हुयी तवेरा लेकर हमारे चालक तारिक भट्ठ सुकून के साथ गाड़ी आगे बढ़ाते रहे।
इसी में बनीहाल पास की जवाहर टनेल छोटी सुरंग (ढाई कीलो मीटर) को भी हमने पार किया। कहा जाता है कि सर्दियों में इस सुरंग का प्रवेश द्वार बर्फ से ढंक जाता है, जिसे हमेशा साफ करने के लिये मशीने लगी होती हैं। यह सुरंग कश्मीर घाटी का प्रवेश द्वार है। बनिहाल अब रेल लिन्क से श्रीनगर से भी जुड़ गया है। काज़िगुन्ड कश्मीर घाटी का पहला छोटा शहर है।
इसी सड़क से होते हुये आगर सीधे चलें तो अनंतनाग, 20 किलोमीटर और श्रीनगर करीब 60 किलो मीटर है। अगर दाहिने मुड़ जाएँ, तो 40 किलो मीटर पर पहलगाम है।
हमलोग कटरा से 8 घन्टे की यात्रा के बाद शाम में पहलगाम पहुँचे। यह अनंतनाग जिले का एक तहसील है। इसकी समुद्र तल से उंचाई करीब 7200 फीट है। लिद्देर नदी का स्फटिक की तरह साफ जल ने हमलोगों का स्वागत किया।
वहां हमलोग लिद्देर नदी से सटे हुये एक रेसोर्ट में ठहरे। वहां मैं जिस कमरे में ठहरा था उसके ठीक पूर्व में उंचा पहाड़ था। सामने कल कल, छल छल करते हुये लिद्देर नदी बह रही है।
वैसे यह मंजर बहुत सुन्दर है, लेकिन एक चिन्ता की बात है। इस नदी के स्फटिक जैसे स्वच्छ जल में जब इन रेसोर्ट से निकले कचरे के अवशेष नदी में घुलेन्गें तो क्या नदी की स्वच्छता शाश्वत रह पायेगी?
पहलगाम के पड़ाव पर भ्रमण का वृतान्त अगले पोस्ट में अवश्य पढें।
क्रमश:





1 comment:

Lalita Mishra said...

माता वैष्णो देवी के दर्शन के बाद बड़ी छोटी सुरंगों को पार कराटे हुए पहलगाम तक पहुंचना वैसे थकाने वाला था, लेकिन लिद्दर नदी की कल कल धार ने मानों सारी थकान का हरण काट लिया। पहलगाम के प्राकृतिक सौन्दर्य का मनोहारी चित्रण!

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