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Monday, June 3, 2019

तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है (प्रेम कहानी)

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तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है (एडिटेड वर्शन)

(12 मिनट)
(यु एस ए, कैलिफोर्निआ, इरवाइन से गुजरने वाली सन डिएगो क्रीक (छोटी नदी) की पृष्ठ भूमि पर जन्म लेती प्रेम कहानी!)

वह पार्क के फेंसिंग के पार गुजरती पतली सड़क को हमेशा देखा करता है। वह सामने की सड़क और इसपर से गुजरते वाकर्स और साइकिल चलाते लड़के – लड़कियों को देखा करता। लोग चलते हुए या साइकिल चलाते हुए रफ्तार में अच्छे लगते हैं। जिन्दगी रफ्तार का ही नाम है।
पार्क के फेंसिंग पर एक गेट था जो सान डिएगो क्रीक के दक्षिणी किनारे के समानांतर गुजरती पतली सड़क पर खुलता था। परंतु वह गेट हमेशा बन्द रहता था। उसमें ताला लगा रहता था। वहीं पर आकर वह उस लड़की के साइकिल से गुजरने का इन्तजार करता।
उस दिन भी वह ऐसे ही सूर्य के गोले को देख रहा था। हवा हल्की-हल्की चल रही थी। स्प्रिंकलर से फौब्बारे की शक्ल में पानी का छिड़काव जारी था। सूर्य के गोले का पश्चिम क्षितिज में डुबकी लगाने का वक्त हो रहा था। वह इंतज़ार कर ही रहा था कि साइकिल से वह तेजी से उधर से गुजरी। उसके हेलमेट से बाहर निकली पोनी टेल के शक्ल में उसके बाल हवा में लहराये। वह उसे जाते हुए देखने के लिये ढलानों की तरफ देख ही रहा था। शायद उसे दूर तक जाते हुए देखने की उसकी इच्छा रही हो। इसके बाद उसकी आंखें खुलीं तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह लड़की उसे व्हील चेयर सहित खींचकर सड़क पर ला रही थी। क्या हुआ था, उसे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
उस लड़की ने कहा था, "Why are you trying to go uphill on this wheelchair?"
उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। पीछे मुड़कर जब उसने देखा, तो पार्क का गेट खुला हुआ था। वह गेट तो अक्सर बन्द रहता था। इसीलिए वह पार्क से बाहर इस सड़क पर कभी आता ही नहीं था। आज वह इस तरफ कैसे आ गया? सूर्य को पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखना चाहता था क्या? सड़क पूरब से पश्चिम की ओर क्रीक के बहने की दिशा में ही पसरी थी। इसलिए सूर्य को पश्चिम में डूबते हुए देखने के लिये पार्क से सड़क पर आना जरूरी होता। उसके मन में सूर्य को गोते लगाते हुए देखने की इच्छा जरूर कहीं दबी थी। लेकिन वह पार्क से बाहर कैसे आ गया? शायद पार्क का गेट आज खुला हुआ था। उसमें तो ताला लगा रहता था, आज खुला क्यों था?
"मैं आज जल्दी ही साइकिल पर वापस लौट रही थी। तुम इस व्हील चेयर पर जोर-जोर से अपहिल, ऊपर की ओर आ रहे थे। मैंने वापस लौटते हुए अचानक देखा कि तुम वापस लुढ़कने लगे और सड़क के किनारे, क्रीक के किनारे बने रेलिंग के तरफ जाने लगे। मैने साइकिल फेंकी और तुम्हारे सहित व्हील चेयर को पकड़ लिया। ऐसे ऐडवेंचर करते हैं, क्या?"
वह चुपचाप ही रहा। उसने अपनी हेल्मेट उतारी।
"कहाँ रहते हो?"

"पार्क के दूसरी तरफ की सोसायटी में।"

“चलो मैं तुझे छोड़ देती हूँ।"

वह चुप ही रहा था।

उसने अपनी साइकिल वहीं सड़क पर छोड़ दी। उस लड़के को व्हील चेयर पर ठीक से बैठायी। उसे उसके घर की ओर लेकर चली।

वह नहीं चाहता था कि कोई उसकी इस तरह मदद करे। लेकिन उसके अंदर यह चाहत भी किसी कोने में अंकुरित हो रही थी कि इसी बहाने कुछ देर तो साथ रहे।

"केट नाम है मेरा।"

"मुझे बाला सुब्रमण्यम कहते हैं।"

"तुम इंडियन हो?"

"हाँ।"

कुछ देर तक खामोशी रही।

"क्या तुम रोज ही पार्क में आते हो?"

"हाँ, शाम को मैं खुद ही इस 'मूविंग आर्म चेयर' पर सवार होकर पार्क चला आता हूँ।"

उसने अपने व्हील चेयर को मूविंग आर्म चेयर (चलित आराम कुर्सी) कहा था। इस पर उसकी प्रतिक्रिया सुनना चाहता था।

"आर्म चेयर...!" सुनकर वह खूब हँसी थी।

उसका हँसना उसे अच्छा लगा। वह भी धीमे से मुस्कुराया था।

"तुम पार्क में आकर क्या देखते हो?"

"मुझे सूरज के गोले का पश्चिम क्षितिज में डुबकी लगाते देखना अच्छा लगता है। लेकिन देख नहीं पाता हूँ। पश्चिम क्षितिज सड़क की दूसरी छोर पर जो है।"

पार्क का फैलाव उत्तर-दक्षिण दिशा में था। सड़क और क्रीक दोनों ही पूरब- पश्चिम में समानांतर फैले हुए थे।

"...और आज तुम उसी सूरज को पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखने के लिए पार्क से बाहर आ गए और खुद ही क्रीक में गोते लगाने को अपनी आर्म चेयर दौड़ा दी...!"

वह खूब जोर से हँसी। उसका हँसना उसे अच्छा लगा। अब तक उसका घर आ चुका था।

"देखो मेरा घर आ गया... ।" मुझे यहीं छोड़ दो।

"..........।" उसकी चुप्पी ने उसपर क्या प्रभाव डाला? पता नहीं।

अब तक लड़की के अंदर उसे फिर देखने की इच्छा जगती हुई - सी लगी।

"कल फिर पार्क में आना। परन्तु सूरज को पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखने के लिए खुद क्रीक में गोते लगाने मत दौड़ पड़ना...!"

...और वह इस बार और भी जोर से हँसी… उसका हँसना उसे इस बार और भी अच्छा लगा।

"ओके, बाए...।" कहकर वह मुड़ी और वापस चली गयी।

*****

केट के क्रीक से गुजरने के पहले ही बाला वहाँ आ जाता। केट वहाँ आती, अपनी साईकिल धीमा करती, रोक कर पार्क के फेंस से टिकाती। फेंस के पार वह अपने व्हील चेयर पर होता। उससे वह बातें करती। वह अपने साइक्लिंग के ट्रेनिंग के बारे में बात करती। वह साइक्लिंग में चैंपियन बनना चाहती है। ओलम्पिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती है। वह अपने देश के लिए गोल्ड जीतकर लाना चाहती है। वह वर्ल्ड चैंपियन बनना चाहती है। उसके अरमान बहुत ऊँचे हैं। उसके लिए वह काफी मेहनत कर रही है। पर सबसे पहले उसे कैलिफ़ोर्निया राज्य स्तर के अंडर 19 के चैंपियनशिप में, जो लॉस एंगेल्स में होने वाला था, उसमें अपनी जगह बनानी थी और प्रथम आना था।

केट से बातें करना उसे अच्छा लगता। केट अपने बारे में सब कुछ बताती। उसे रफ़्तार वाली जिंदगी जीने वाले अच्छे लगते। उसमें वह भी एक थी।

केट से वह कहता, "तुम्हारी रफ़्तार बढ़ती रहे यही मेरी दुआ है।"

इतना कहने के बाद वह उदास हो जाता। उसकी रफ्तार जो धीमी हो गयी है। वह व्हील चेयर, नहीं-नहीं आराम कुर्सी पर जो आ गया है।

केट उसे हिम्मत देती, "तुम्हारी शारीरिक रफ्तार धीमी है, तो क्या हुआ? तुम्हारी मानसिक रफ़्तार को दुनिया जानेगी। मेरी यही दुआ है।"

वह बहुत खुश होता, यह सुनकर उसे ऊर्जा मिलती। वह बॉडी माइंड के मोटर फंक्शन्स पर शोध कर रहा था। उसमें वह नए सिद्धांतों और शोध परिणामों का प्रतिपादन करने वाला था, जो चौंकाने वाले हो सकते थे। उसे केट से बात करने पर नई ऊर्जा प्राप्त होती। उसका उत्साह दुगना होता जाता था।
गर्मियों का मौसम धीरे- धीरे समाप्त हो रहा था। तापमान में गिरावट शुरू हो गयी थी।
एक दिन वह ऐसे ही इंतज़ार कर रहा था। पार्क के उस पार सड़क पर उसकी नजरें टिकी थीं। अब केट साईकिल से हवा की तरह आएगी, अपनी साईकिल को पार्क के फेंस से टिकायेगी। उससे हाथ मिलाएगी, अपनी साईकिल की ट्रेनिंग और बारीकियों को बताएगी। अंत में उसे चेहरे पर उदासी नहीं लाने की हिदायत देकर अपनी साइकिल उठाएगी, और चली जाएगी। उसी समय उसे लगेगा कि सूरज ने पश्चिम क्षितिज में गोते लगा दिए हैं।
शाम अब जल्दी घिर आती थी। धुंधलका छा जाता था। इसीलिये वह अपनी निगाहें सड़क पर ही टिकाये था।
वह सड़क की ओर, सड़क का जितना हिस्सा नजर आ रहा था, उसपर ही अपनी नजर टिकाये था, कि किसी के हाथों का स्पर्श उसके कंधे पर हुआ था। उसने अपनी गर्दन घुमाई तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह केट थी और अपने हाथ को पीछे कर उसमें कुछ छुपाये थी।
"बताओ, मेरे हाथों में क्या है?" उसके चेहरे पर बाल - सुलभ हास्य तैर रहा था।
“कुछ तो ऐसा जरूर है जो तुम्हारी जिंदगी की रफ़्तार बढ़ाने वाला है।"
“तुम्हें कैसे मालूम?"
"मेरी प्रार्थनाओं ने असर किया है।"
"तुम बिलकुल सही हो। तुम्हारी प्रार्थनाओं ने असर किया है, इसीलिये मैं इसे तुम्हें भेंट करना चाहती हूँ।"
उसने पीछे अपनी हाथों में छुपाई ट्रॉफी सामने लाई थी।
"मैं अंडर 19 कैटेगरी में स्टेट लेवल की साइक्लिंग चैम्पियन बन गयी हूँ। और यह तुम्हारी प्रार्थनाओं के कारण हुआ है, इसलिए मैं इसे तुम्हें भेंट करना चाहती हूँ।"
बाला समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे, कैसे अपनी भावनाओं को ब्यक्त करे।
उसने ट्रॉफी उसके हाथ से ले ली। अपने एक हाथ में ट्रॉफी लिए हुए, दूसरे हाथ से उसका एक हाथ काफी देर तक थामे रहा। उसके हाथों के स्पर्श से केट के अंदर की खुशी को महसूस करता रहा।
वह अपने दैन्य भाव को छुपाना नहीं चाहता था। वह केट के सामने खुल जाना चाहता था।
"केट, इसके बदले में मैं तुम्हें क्या दूँ? मेरी तो रफ़्तार भी धीमी है।" आज पहली बार उसे अपने को व्हील चेयर पर होने का दुःख साल रहा था।
उसके होठों पर केट ने अपनी उंगली रख दी। "तुम चुप ही रहो। अगर तुम चुप नहीं रहे तो अपने होठों से तुम्हारे होठों पर ताले लगा दूंगी।

और उसने सचमुच ताले लगा दिए। बाला की आँखों में आँसू आ गए। एक धीमी रफ़्तार जिंदगी जीने वाले से इसतरह बेइंतहा प्रेम करने वाली को मैं क्या तोहफा दूँ?

"क्या मैं जो सोच रही हूँ, तुम भी वही सोच रहे हो?"

"मैं तो कुछ नहीं सोच रहा।" बाला के चेहरे पर मासूमियत थी।

"तुम झूठ बोलते हुए भी कितने अच्छे लगते हो!" वह खिलखिलाकर हंसी थी।

वह जाने को जैसे ही मुड़ी थी, बाला ने पूरी आवाज में कहा था, "तुम्हें 4 जनवरी को मैं एक गिफ्ट दूंगा और एक और सच के बारे में बताऊंगा।"

“तुम्हारे एक और झूठ के सच में बदलने का इंतज़ार रहेगा।" वह बोलती हुयी दूर चली गयी थी।

*****

केट की नजरें आज टी वी स्क्रीन पर टिकी थी। साइंटिफिक कन्वेंशन शुरू हो चुका था। इसमें बाला सुब्रमण्यम भी यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए नामित हुआ था। चीफ गेस्ट के एड्रेस के बाद शोध पत्रों के बारे में घोषणा होनी थी। कन्वेंशन के विशिष्ट अतिथि ने लिफाफा जिसपर यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए चयनित वैज्ञानिक का नाम लिखा था, खोली थी। उन्होंने घोषणा की थी, "बॉडी माइंड के मोटर फंक्शन पर चौंकाने वाले खोज करने के लिए आज के यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए मैं बुलाना चाहता हूँ, बाला सुब्रमण्यम को।"

सारा हॉल तालियों से गूँज रहा था। बाला अपनी आराम कुर्सी को खुद चलाते हुए स्टेज पर पहुंचे। उनके कॉलर में बटन माइक लगा दिया गया। उन्होंने कहना शुरू किया, "मैं आज एक झूठ से पर्दा उठाना चाहता हूँ। जहाँ भी तुम सुन रही हो, तुम्हें बतला दूँ, मैं हर शाम सूर्य के गोले को पश्चिम क्षितिज में गोता लगाते हुए देखने नहीं आता था। मैं पार्क में, हाँ, इरवाइन के सन डिएगो क्रीक के सामानांतर गुजरने वाली सड़क के बगल वाले पार्क में, केट मैं तुम्हें साइकिल चलाते हुए सामने से गुजरते हुए देखने आता था। हेलमेट से बाहर निकलकर हवा में उड़ते हुए तुम्हारे पोनी टेल को देखने आता था। जब देख लेता तो वापस लौटकर मैं रात भर शोध - ग्रंथों को पढ़ता और नए - नए प्रयोगों को प्रयोगशाला में करता। केट तुम मेरी शोध की प्रेरणा हो। मैं अपना यह अवार्ड केट को भेंट करना चाहता हूँ। केट ने अंडर 19 की साइक्लिंग चैंपियन की ट्रॉफी मुझे भेंट की थी, मैं यह अवार्ड उसे भेंट करना चाहता हूँ।"

इतने में केट की तस्वीर को वीडियो द्वारा बड़े स्क्रीन पर ला दिया।

बाला ने उसे देखते हुए फिर कहा था, "Ket, you are my inspiration. This award is a gift for you. Please accept it."

स्क्रीन पर केट की तस्वीर आ रही थी। वह रो रही थी।

उसने कहा था, "बाला तुम्हारे झूठ से मैं प्यार करती हूँ, करती रहूंगी। तुम यह झूठ बार-बार बोलो, मैं सच निकाल लूंगी। सूरज पश्चिम में गोते नहीं लगाता था। तुम्हें देखते हुए मैं भी तुम्हें देखना चाहती हूँ। आई लव यु बाला। Be the greatest scientist of the world."

स्क्रीन झिलमिलाता रहा, केट की ‘हँसती हुई मुद्रा स्क्रीन पर ठहर गयी। नीचे के टेक्स्ट में लिखा था, "तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है।"



©ब्रजेन्द्रनाथ

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कल, 02-06-2019 अपराह्न 4 बजे,  सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में  स्थानीय तुलसी भवन के प्रयाग कक्ष में आयोजित "कथा मंजरी" कार्यक्रम में मैंने भी भाग लिया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मानद सचिव आदरणीय डॉ नर्मदेश्वर पाण्डेय जी ने किया और संचालन श्री गाजीपुरी जी ने किया। सम्मेलन में  आ यमुना तिवारी व्यथित जी, श्री अजय ओझा जी, आ नीलिमा पांडेय जी, आ वीणा पांडेय भारती, आ माधुरी मिश्रा, आ अरुण भूषण, आ वीणा, आ नीता सागर, आ सुदीप्ता, आदरणीय कन्हैया अग्रवाल, आ तोमर जी, आ संजय पाठक स्नेही आदि की उपस्थिति उत्साहवर्धक रही।
मैंने कैलिफोर्निया, यू इस ए  की पृष्ठभूमि पर आधारित एक भारतीय शोधकर्ता के जीवन पर लिखी कहानी "तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है" सुनाई। 
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पूरी कहानी इस लिंक पर पढ़ें, और अपने कॉमेंट्स उसी साइट पर दें। आपके विचार मेरे लिए बगुमूल्य हैं:

"तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
https://hindi.pratilipi.com/story/kpu5koStK1Sb?utm_source=android&utm_campaign=content_share
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