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Monday, May 27, 2019

खुद ही राह बनाता है (कविता 2019 के चुनावों के बाद)

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#2019elections#patriotic#modi
YouTube link:
https://youtu.be/ddkxi0R90xY





खुद ही राह बनाता है

विवादों के बौछारों से जो बचता बचाता है।
वह राष्ट्र का ज्योतिपुंज, खुद ही राह बनाता है।

कितने तीर चलाये खास लोगों ने,
वह संभल गया हँसते - हँसते।
कितने झूठ फैलाये खास लोगों ने,
वह झेल गया हँसते - हँसते।

झूठे आरोपों से अनाहत, जनता के बीच जाता है।
वह राष्ट्र का ज्योतिपुंज, खुद ही राह बनाता है।

उसके संघर्षों की गाथा
लोगों के मन में उतर गयी।
यही है जन जन का सेवक
तस्वीर उसकी घर कर गयी।

दुर्वादों से अविचलित, जन को भी संयम सिखलाता है।
वह राष्ट्र का ज्योतिपुंज, खुद ही राह बनाता है।

दुश्मन की छाती पर चढ़कर
जो मान देश का रखता है।
सीमा के पार घुसकर भी
जो वार अरि पर करता है।

असि धार पर चलने वाला, सैन्य जोश दिखलाता है।
वह राष्ट्र का ज्योति पुंज खुद ही राह बनाता है।

एक लक्ष्य, एक लगन,
देश हमारा हो आगे।
संकल्पित हो जन मन
भाग्य देश का जागे।

आओ अभिनंदन करें उसका, जो नई किरणें बिखराता है।
वह राष्ट्र का ज्योतिपुंज खुद ही राह बनाता है।

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2014 संसदीय चुनावों के बाद मैंने ये शेर रचे थे, जैसे इस कार्यक्रम की शुरुआत मोदी जी के प्रधान मंत्री के रूप में उनके पबल "मन की बात" से हुयी थी।


मेरा ये कहना बहुतों को खल रहा है,
कि मौसम का मिजाज अब बदल रहा है।

दशकों तक हवाएँ कैद थीं कोने में कहीं,
अब बहने को उनका भी दिल मचल रहा है।

जिनके गुर्गे बाँट खाते थे सारे निवाले,
आज वही सबों के हलक से उतर रहा है।

कसमसाकर रह जाते थे कई सवाल,
वही अब सबके जेहन से निकल रहा है।

नोचकर फेंक देना है, गद्दारी के इस नासूर को,
सदियों से जो इस व्यवस्था में पल रहा है।

मन कहता है, कह दूँ, अंधेरा होगा नहीं,
देखो सूरज को हर कहीं निकल रहा है।

ये कारवाँ है सच का, जाएगा दूर तलक,
क्योंकि झूठ का पर्वत अब पिघल रहा है।

©ब्रजेंद्रनाथ


नॉट: आज 26 मई 2019 को वैशाली, एन सी आर दिल्ली के हरे भरे मनोरम सेंट्रल पार्क के नैसर्गिक वातावरण में "पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ" के 56वें संस्करण में रचना पाठ का सुअवसर प्राप्त हुआ। आपको विदित हो कि यह साहित्यिक गोष्ठी वी एस एन एल के उच्च पद से सेवानिवृत्त आदरणीय अवधेश कु सिंह जी द्वारा पिछले चार वर्षों से भी अधिक समय से हर महीने आयोजित किया जाता रहा है। आज की गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ वरुण तिवारी और संयोजन एवं संचालन श्री अवधेश जी ने किया। आज विशिष्ट आतिथि के रूप में प्रो (डॉ) अरुण कुमार भगत, प्रभारी नोएडा परिसर, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की गरिमामय उपस्थिति का लाभ हमें मिला। मैंने उन्हें पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया, जो तस्वीर में देखा जा सकता है। आगे मैंने जिस रचना का पाठ किया उसका वीडियो देखें: यूट्यूब
li ऊपर दिया गया है।

अवधेश जी के फेसबुक वॉल  से:

पेड़ों की छांव तले रचना पाठ की 56वीं साहित्यिक गोष्ठी संपन्न हुई ।

26 मई, आज, रविवार, शाम को 4.00 बजे “सेंट्रल पार्क” सेक्टर-4 वैशाली , गाज़ियाबाद में मासिक साहित्यिक गोष्ठी "पेड़ों की छांव तले रचना पाठ" के 56वें संस्करण में “मन की बात ” गीत गजल कविताओं के माध्यम से देर शाम तक अनवरत सुनी सुनाई गयी ।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में आपातकालीन साहित्य व समाज से संबन्धित एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का एक मात्र लेखन कर चर्चित हुए प्रोफेसर डॉ अरुण कुमार भगत पधारे अपने व्यक्तव्य मे डॉ भगत ने सकारात्मक लेखन की पैरवी की और मीडिया मे सकारात्मक खबरों को आने की अपील की । अध्यक्षता डॉ वरुण कुमार तिवारी और संचालन संयोजक अवधेश सिंह ने किया ।
कवियों में प्रमुख रूप से उपस्थित वरिष्ठ कवि कन्हेया लाल खरे ने वर्तमान भारत की राजनैतिक चेतना के एक मात्र केंद्र बने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर केन्द्रित कविता पढ़ी “भारत भाग्य विधाता आया, चला जगाने हिन्दुस्तान । बूढ़े हुए भारत में आई, नई जवानी नया किसान । जमशेद पुर बिहार से पधारे वरिष्ठ कवि बृजेन्द्र नाथ मिश्र ने मन की बात व्यक्त की “ विवादों के बौछारों से जो बचता बचाता है। वह राष्ट्र का ज्योतिपुंज, खुद ही राह बनाता है। एक लक्ष्य, एक लगन, देश हमारा हो आगे। वरिष्ठ अवधी कवि अवधेश सिंह ने मन की बात चिड़िया कविता माध्यम से कही “ चिड़िया , अब नहीं मरेगी शायद / जेठ की / हरहराती गर्मी में / एक बूंद पानी की / तलाश से / निराश होकर / हत्यारी प्यास से / पोखर के पास / अब पहरेदार न होंगे / नदी – तालाब और कुओं के नजदीक / विकास की नाकाबंदी न होगी । डॉ वरुण कुमार तिवारी ने नयी सुबह शीर्षक से नवजात सुबह से संबन्धित अपनी कविता पढ़ी ।

कवि ईश्वर सिंह तेवतिया ने वर्तमान राजनीति की महत्वकांक्षा पर व्यंग कसा “बात करूंगा चिथड़ों की अब, क्योंकि मुझको कोट चाहिए ,तुम्हीं बता दो कैसे दोगे, मुझे तुम्हारा वोट चाहिए । मन की बात को आगे करते हुए इन्द्रजीत सुकुमार ने गज़ल पढ़ी “यूँ भी दिल मे आना जाना कीजिए, खुद से मिलने का बहाना कीजिए। ये यकीनन जिस्म कल होगा नही, रुह से मिलना मिलाना कीजिए । और वाह वाही लूटी । गोष्ठी के शीर्षक मन की बात को कवि मृत्युंजय साधक ने यूं कहा “ मन की बातों को मन में ही रहने दो भाई... कहते हैं दुनियावाले जो, कहने दो भाई... गंगा यमुना के संगम पर रहते हैं हम तुम... दिल के अंदर भी ये संगम बहने दो भाई...पढ़ कर तालिया बटोरी ।
कवयित्रियों में पहली बार पधारी वरिष्ठ डॉ ज्योत्सना मिश्रा ने काश्मीरी हिंदुओं के पलायन पर मार्मिक चर्चित कविता “ “भूल जाओ जलावतनों” को पढ़ा ।“भूल जाओ / उन तमाम गीतों को / जो चिनारों ने साझा किये थे । आसमानों से / भूल जाओ उन सभी / कहकहों को / जो हवाओं ने डल झील के साथ / मिल के लगाये...
नवोदित कवयित्री पूनम कुमारी ने पढ़ा " बिखर जाऊँ कोमल / अहसास बनके,राहों पे तेरी / फूलों सा मुझकों चुन लेना। वहीं जानी मानी कवियत्री डॉ. अंजु सुमन साधक ने दोहे से मन की बात व्यक्त की “ बीन बजाना हो गया, अब सर्पों का काज। और सँपेरे भूमि पर रेंग रहे हैं आज।। दर्द निवारण की दवा, छोड़ रहीं निज काम । लोशन भी ज़ालिम हुए , ज़ख़्म दे रहे बाम ।। सुना कर तालिया बटोरीं ।

श्रोताओं में कहानी कार मनीष सिंह,शत्रुघन प्रसाद , सजन कुमार , डॉ मनीषा पाण्डेय, उधम सिंह ,रमाकांत प्रसाद , ब्रिज मोहन गुप्त ,राजदेव प्रसाद सिंह, शोभा ,शोभा चौधरी , करुणा कुमारी आदि रहे ।
-अवधेश सिंह संयोजक व अध्यक्ष पेड़ों की छांव तले फाउंडेशन (पंजीकृत )

पूरी खबर आफ्टर ब्रेक नामक मैगज़ीन अखबार में छपी है, जिसकी तस्वीरें मैं यहाँ दे रहा हूँ:


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