#BnmRachnaWorld
#hindipoetryjammukashmir
Dear and Respected readers,
Namaskaar,
Please see this video. This is recitation of a poem written by me.
Give your opinion, it is valuable for me.
Brajendra Nath
परमस्नेही आदरणीय साहित्यान्वेषी पाठक गण
नमस्कार!
पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर यात्रा के दरम्यान श्रीनगर से लौटते हुए मैंने उदास मन से यह कविता लिखी थी। शायद आज वहाँ "कई-कई चाँद उगेगा" जिसका इंतज़ार वर्षों से हो रहा था।
मेरी यह कविता यूट्यूब के नीचे दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें:
इस घाटी को किसकी
नज़र लग गयी है?
कि पहाड़ों और झीलों की खामोशी
को तोडती है
बन्दूकों की आवाजें।
,,,,और सुहावनी सुगन्ध
में धीरे-धीरे बारुदी गन्ध
घुलने लगती है।
डरा सहमा -सा चाँद
अब दरख्तों में लुका छिपी नहीं खेलता।
चिनारों के पत्तों से नहीं फिसलता,
चाँद निश्तेज है,
कहीं जाकर छिप जाता है।
छिपकर वह इन्तजार करेगा,
कब फिर खामोश संगीत,
पहाडों में गूंजेगा?
कब फिर वह उतरेगा,
और झरनों में,
कई-कई चाँद कब उगेगा?
कई-कई चाँद कब उगेगा?
-----//-----------
चाँद के इंतज़ार का अब हुआ अंत,
घाटियों में अब आकर टिकेगा बसंत।
अब नहीं घुलेगी वादियों में बारूदी गंध,
अब फूलों में रहेगी व्याप्त सुहानी सुगंध।
हिमाच्छादित शिखरों से पसरेगी धवल धार,
गर्वोन्नत, फैलेगा, झूमेगा, अगरायेगा वह चिनार!
अब वहां का युवक नहीं लेगा टट्टू और पिट्ठू,
अंत होगा जो बन रहे थे, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू।
अब होगा एक निशान, एक संविधान, एक झंडा,
अब नही होगा विकास के अतिरिक्त कोई भी एजेंडा।
आइए शामिल हों, जश्न में, नए कश्मीर के,
सहभागी बने, उसकी बदलते तकदीर के।
YouTube link: https://youtu.be/hQq9kJoPw7A
सादर आभार
ब्रजेंद्रनाथ
#hindipoetryjammukashmir
Dear and Respected readers,
Namaskaar,
Please see this video. This is recitation of a poem written by me.
Give your opinion, it is valuable for me.
Brajendra Nath
परमस्नेही आदरणीय साहित्यान्वेषी पाठक गण
नमस्कार!
पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर यात्रा के दरम्यान श्रीनगर से लौटते हुए मैंने उदास मन से यह कविता लिखी थी। शायद आज वहाँ "कई-कई चाँद उगेगा" जिसका इंतज़ार वर्षों से हो रहा था।
मेरी यह कविता यूट्यूब के नीचे दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें:
इस घाटी को किसकी
नज़र लग गयी है?
कि पहाड़ों और झीलों की खामोशी
को तोडती है
बन्दूकों की आवाजें।
,,,,और सुहावनी सुगन्ध
में धीरे-धीरे बारुदी गन्ध
घुलने लगती है।
डरा सहमा -सा चाँद
अब दरख्तों में लुका छिपी नहीं खेलता।
चिनारों के पत्तों से नहीं फिसलता,
चाँद निश्तेज है,
कहीं जाकर छिप जाता है।
छिपकर वह इन्तजार करेगा,
कब फिर खामोश संगीत,
पहाडों में गूंजेगा?
कब फिर वह उतरेगा,
और झरनों में,
कई-कई चाँद कब उगेगा?
कई-कई चाँद कब उगेगा?
-----//-----------
चाँद के इंतज़ार का अब हुआ अंत,
घाटियों में अब आकर टिकेगा बसंत।
अब नहीं घुलेगी वादियों में बारूदी गंध,
अब फूलों में रहेगी व्याप्त सुहानी सुगंध।
हिमाच्छादित शिखरों से पसरेगी धवल धार,
गर्वोन्नत, फैलेगा, झूमेगा, अगरायेगा वह चिनार!
अब वहां का युवक नहीं लेगा टट्टू और पिट्ठू,
अंत होगा जो बन रहे थे, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू।
अब होगा एक निशान, एक संविधान, एक झंडा,
अब नही होगा विकास के अतिरिक्त कोई भी एजेंडा।
आइए शामिल हों, जश्न में, नए कश्मीर के,
सहभागी बने, उसकी बदलते तकदीर के।
YouTube link: https://youtu.be/hQq9kJoPw7A
सादर आभार
ब्रजेंद्रनाथ
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