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Wednesday, July 24, 2019

एक सपने का अंत (कहानी)

#BnmRachnaWorld
#love #revenge #hindistory

एक सपने का अंत


प्रिय नीलेन्दु
पता नहीं तुम कहाँ हो? जिन्दगी के इस मुकाम पर जब मेरे पास एक बड़े ऑफिस के एक बड़े केबिन में, एक मल्टीनेशनल कंपनी के एक बड़े एक्सिक्युटिव की नौकरी है, अपने सिरहाने आज तक सम्हाले हुए, आज से बीस साल पहले की डायरी में लिखे गये संस्मरण को मैं फिर पढ़ने बैठी हूँ। वे सारी घटनाएं, सारे परिदृश्य जो हमने एक साथ बैडमिन्टन के लिये ट्रेनिंग लेते हुये क्लब में गुजारे थे, जीवन्त हो गये।
तुम अंडर सिक्स्टीन बॉयस और मैं गर्ल्स के लिये स्टेट लेवेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाले थे। इसीलिये हम दोनों उस क्लब - कम- ट्रेनिंग सेन्टर में विशेष प्रशिक्षण के लिये दाखिला लिये थे। वहां हम दोनों ही साइकिल से ट्रेनिंग के लिये जाते थे। तुम्हें मेरा शॉटस में साइकिल चलाकर आना पसन्द नहीं था। शायद उन दिनों कोई लड़की इतनी बोल्ड नहीं थी कि घर से शॉटस में साइकिल चलाकर क्लब आये। सभी लड़कियाँ क्लब में आकर ही अपना वस्त्र परिवर्तन करती थी।
मैने तुम्हें कितनी बार कहा था, "विद्यालय से घर आकर पहले लड़कियों द्वारा साइकिल चलाने वाला वस्त्र, सलवार - कुर्ता पहनो। फिर साइकिल चलाकर क्लब पहुंचो। वहाँ फिर वस्त्र परिवर्तन करो। इसमें पूरे 20 से 25 मिनट निकल जायेंगे। यानि मेरी प्रैक्टिस सेशन के उतने समय निकल जायेंगें। मैच में एक - एक सेकेन्ड हर गेम में कितना कीमती होता है? यह जानते हुए भी तुम मुझे 20-25 मिनट बर्बाद करने का परामर्श देते हो। कैसे दोस्त हो तुम?"
इसके आगे तुम्हारे सारे तर्क निरस्त हो गये थे। मैं जानती थी, तुम मेरे लिये इतने सुरक्षा कवच क्यों खड़ा कर देना चाहते थे? क्योंकि तुम मुझे बेइन्तहा चाहते थे। लेकिन यह तुमने तबतक जाहिर नहीं होने दिया जबतक कि मैंने खुद उस दिन की घटना के बारे में तुमसे जानने की कोशिश नहीं की थी।
उस दिन की शाम को जेहन से मिटाने की कई बार नाकाम कोशिशें कर चुकी हूँ। फिर भी वह सारा परिदृश्य दैत्य की तरह सामने आकर खड़ा हो जाता है।
मैं बैडमिन्टन की प्रैक्टिस तुम्हारे साथ कर रही थी। तुम्हारे साथ प्रैक्टिस करने में बड़ा मज़ा आता था। मैं अगर पहला गेम जीतती, तो दूसरा गेम तुम जीतते। मुकाबला हमेशा कड़ा और कांटे का होता था। तुम भी अंडर 16 बॉयस के उभरते हुए सितारे थे। तुम्हारे साथ खेलने में मज़ा आता था। मैच में बाकी सारी लड़कियाँ तो मुझसे दूसरा सेट समाप्त होते - होते बुरी तरह हार जाती थी।
कभी -कभी मैं सोचती हूँ कि पहला गेम क्या तुम जानबूझ कर हार जाते थे या मैं सचमुच हरा देती थी? तुमसे मैं यह सब कभी नहीं पूछ सकी। क्योंकि तुम हमेशा गम्भीर, एकान्त प्रिय और रिसर्व टाइप के लगते थे। परन्तु मुझे ऐसे ही प्राणी पसन्द थे।
उस दिन की प्रैक्टिस ज्यादा ही थकाने वाली थी। एक तो कोर्ट के सारे क्षेत्र को कवर करते हुए तुम्हारे हर ऐंगल के शॉटस का सही रिटर्न देना, दूसरे खेल के बाद पूरे मैदान (यह फुटबॉल का मैदान था) का चार चक्कर दौड़ कर लगाना, थोड़ा अधिक ही हो गया था। लेकिन तुम्हारे साथ खेलने का समय बहुत कम दिया जाता था, खासकर लड़कियों को। इसलिये मैं भी जी जान से खेली। मैदान में दौड़ लगाते - लगाते मैंने महसूस किया कि मेरी जांघों के बीच कुछ द्रव जैसे स्राव से मेरी अंडरगार्मेन्ट गीली हो रही है। मैं समझ गयी कि यह मेरे पहले मेन्स (रितुश्राव) की आहट है। मैंने अपना बैक्पैक लिया और भागी लेडिज वाश रुम की तरफ!
लेडिज वाश रुम इस क्लब कम ट्रेनिंग सेंटर के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक के उस तरफ है जिधर इन्स्ट्रक्टर और ऑफिसर का केबिन है। शायद लडकियों को अधिक सुरक्षा और सुकून देने के लिये उनका वाश रुम स्टाफ ब्लॉक की ओर ही रखा गया है, जबकि लड़कों के लिये इस बिल्डिंग की दूसरी ओर, जहां इनडोर खेलों और स्क्वैश के लिये ट्रेनिंग सेन्टर है।
उसतरफ आज अन्धेरा जैसा था। स्टाफ सारे जा चुके थे। किसी-किसी केबिन में थोड़ी धुंधली-सी रोशनी पसरी थी। मैं वाश रुम की ओर आगे बढ़ भी रही थी और पीछे मुड़कर देखती भी जा रही थी कि कोई पीछे -पीछे आ तो नहीं रहा है। हम सभी लड़कियाँ वाश रुम भी जाती थी तो कम-से-कम दो तो अवश्य साथ में रहती थी। मैं ही कभी-कभार, खासकर दिन में अकेले ही वॉश रुम चली जाती तो बाकी सारी लड़कियाँ मुझे घूरती रहती, जैसे मैं दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अनाधिकार प्रवेश कर गई हो। हमलोगों का ही वाश रुम है, फिर हमें जाने में क्या डरना?
क्यों असुरक्षित या अरक्षित महसूस करती रहती हैं, ये लड़कियाँ? उन्हें बचपन से ही डरना सिखाया जाता है। वे खुलकर उड़ान भी नहीं भर पाती कि उनके पंख कुतर दिये जाते हैं। मुझे तो किसी ने डरने को नहीं कहा। मेरी माँ ने भी नहीं। हाँ, सतर्क रहने के लिये अवश्य आगाह किया है। मैं वाश रुम में घुसी। कोई नहीं था वहाँ। मैंने चारो तरफ जाकर चेक कर लिया। अन्दर से छिटकीनी बंद की। मैने अपनी अंडरगार्मेन्ट उतारी, बैक पैक से पैड निकाला, अंडरवीयर पर फिक्स किया, उसमें दोनों पैर डाले और उसे उपर सरका कर अपनी कमर तक चढ़ा लिया। उसी हालत में मैंने अपनी पीठ को पीछे की तरफ करके बेसिन के पास के शीशे में देखा कि पैड सही जगह स्थिर हो गयी है। श्राव के रिसने से कोई लाल रंग का दाग तो पीछे नहीं उभर आया है। यह सैनिटरी पैड पहनने का मेरा पहला प्रयास था, और पहला अनुभव भी, इसीलिये मुझे अभी भी यह सब याद है। उसके उपर मैंने अपनी शॉटस पहन ली।
मैंने बैक पैक टाँगे, वॉश रुम की छिटकीनी खोली, इधर - उधर झाँककर निश्चित किया कि कोई आसपास तो नहीं है, तेज़ कदमों से तीर की तरह निकलकर साइकिल स्टैंड के तरफ बढ़ ही रही थी। घोषाल दा, मेरे बैडमिंटन कोच भी शायद घर जाने के लिये अपनी केबिन से बाहर निकल रहे होंगे। उसी समय लगता है उन्होंने मुझे वॉश रुम से बाहर निकलते हुए देख लिया होगा।
"अरे, माला मुझे तुम्हारा ही ख्याल आ रहा था। आओ, आओ एक स्पोर्ट्स मैगजीन में वर्ल्ड वीमेन बैडमिंटन चैम्पिऑन का इंटरव्यू छपा है, जिसमें उसने कुछ टिप्स की चर्चा की है। मैं तुमसे शेयर करना चाहता हूँ। आओ, आओ।"
"पता नहीं, मैं किस अदृश्य शक्ति के इशारे पर उनकी केबिन के तरफ बढ़ गयी। कभी-कभी कुछ होना रहता है तो अनचाहे भी उस ओर कदम बढ़ जाते है, जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया है।
"माला, बैठो, बैठो, तुम बहुत थकी लग रही हो।"
मैं उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी। उन्होंने अपनी केबिन के फ्रिज से एक टेट्रापैक में कोई ड्रिंक निकाला और एक स्ट्रॉ के साथ मेरी ओर बढ़ा दिया।
"मैं पिछली बार बैडमिन्टन टूर्नामेंट में कोच के रूप में सिंगापुर गया था, वहीं से लाया हूँ। यह बहुत ही प्रभावशाली एनर्जी ड्रिंक है। तुम थोड़ा सहज हो लो। तबतक मैं मैगजीन खोजता हूँ। मैं स्ट्रॉ से ड्रिंक सिप करने लगी। मैंने घोषाल दा को मैगजीन खोजते हुए चोर नजरों से अपनी तरफ झाँकते हुये भी देखा। मेरा सर हल्का - हल्का घूमने लगा। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं। मैने अपने को सायकिल स्टैंड के पास खुले हुए नल से तुम्हें मेरे चेहरे पर पानी के छींटे डालते हुये देखा। मेरा सिर तब भी चक्कर दे रहा था। तुमको कहते सुना, "आर यू ओके?"
"मैं ठीक ही हूँ, मुझे क्या हुआ है?" वहाँ से मैं उठी, तुम्हारे हाथ से मैंने अपना बैक पैक लिया, अपनी साइकिल उठायी और घर के तरफ धीरे धीरे सायकिल चलाते हुए बढ़ती चली गयी।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं घोषाल दा के केबिन से सायकिल स्टैंड के नल के पास कैसे आई या कैसे लायी गयी?
घर पहुंचकर मैने साइकिल पोरटिको में ही लगा दी। माँ नीचे के ड्रॉइंग रुम से लगे अपने कमरे में कुछ लिख रही थी। मैं दबे पाँव धीरे-धीरे कमरे में दाखिल हो ही रही थी कि माँ ने आवाज लगाई, "बेटा, सब ठीक तो है?" माँ मुझे बेटा ही कहती थी। माँ के घर में नीचे रहने से मैं बिना उनसे मिले ऊपर अपने कमरे में नहीं जाती थी। माँयें अपनी सन्तानों के हाव भाव देखकर और सूंघकर ही समझ जाती हैं कि कितना ठीक है और कितना नहीं। बहुत अधिक सम्वेदनशील होती हैं वे।
ठीक तो नहीं ही था। "मॉम, कमिंग डाउन आफ्टर बाथ!"
माँ चुप हो गयी। मैने बाथ तो नहीं लिया। हां, मैने अपने शॉटस उतारे, पूरे बदन को भींगे हुए टॉवेल से अच्छी तरह पोंछा, अन्डरगार्मेन्ट के अन्दर पैड को चेक किया, सही जगह तो है। फिर आईने के तरफ पीठ करके देखा कि कहीं स्राव निकलकर बाहर तो नहीं आ गया है। मुझे क्या मालूम कि पैड काफी तकनीकी शोध के बाद और कई बार टेस्ट कर लेने के बाद ही बाज़ार में बिक्री के लिए लायी जाती है। मुझे मॉम ने बताया था कि एक पैड 5-6 घन्टे के बाद ही बदला जाता है। ऐसा पांच दिनों तक करना होता है। इसलिये मेरे बैक पैक में पैड का पूरा पैकेट रखा हुआ था। पहली मेन्स थी ना, उत्सुकता, डर और कौतूहल के मिलेजुले अहसास से मैं गुजर रही थी।
तौलिया से बदन पोंछ लेने के बाद मैंने डियो से पूरे शरीर को खुशबू से नहला दिया ताकि अगर रितु श्राव की कोई गन्ध या महक जैसी हो तो वह डियो की मादक गन्ध के अन्दर छुप जाय।
मैंने नाइट ड्रेस पहनी और नीचे खाने की मेज पर जाकर बैठ गयी। माँ भी अपने कमरे से निकलकर आ गयी।
"तुम इतनी चुप - सी क्यों हो? सो काम?"
मैं उठकर माँ की छाती से लग गयी और उसे जोर से हग किया।
"सो यू हैव यौर फ़र्स्ट मेंस टुडे?"
"मॉम, यू आर अ बिग डिटेक्टीव। तुम तो बड़ी जासूस हो।"
"जो अपने बच्चे के क्रियाकलाप से नहीं समझ जाय कि उसके साथ क्या हुआ है, वह माँ कैसी?"
"सब ठीक है, तुम्हारी ट्रेनिंग मेरे काम आयी। मैने पैड ठीक से चेंज कर लिया।" मैं चहक कर बोली थी। मेरी उसी चहक में मैंने अपने अन्दर के दाह को दबा लिया था। माँ आश्वस्त हो गयी थी।
हमलोगों ने ठीक से डिनर लिया।
माँ ने कहा था, "तुम आज मेरे साथ ही सोयेगी। पहला मेन्स के दिन बेटी अकेली नहीं सोती।"
"मॉम, आई एम नॉट अ चाइल्ड।"
"यह मेरा आदेश है। और आदेश का सिर्फ पालन किया जाता है।नो इफ, नो बट्स।"
मेरे लिये कोई विकल्प नहीं था। मैं नीचे आकर माँ के गले में बाहें डाल दी। सोने की कोशिश करने लगी। माँ मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फेरती रहीं। मेरा मन तो आज की घटना या दुर्घटना को याद करने का प्रयत्न कर रहा था। मैं याद करने के लिये विचारों की रील को थोड़ा पीछे ले गयी, तो अपने को घोषाल दा के केबिन में उनके सामने पायी।
कुछ - कुछ धुंधली - सी याद स्मृति के गहन क्षितिज को चीरकर झांकने की कोशिश कर रही थी, 'हाँ, उसके बाद घोषाल दा ने एक पैक में ड्रिंक दिया। मैने उसे पिया था...उसके बाद कुछ याद नहीं। उसके बाद मैं और तुम साइकिल स्टैंड के पास। मुझे होश आया तो तुम मेरे चेहरे पर पानी के छींटे मारते हुए दिखे। इसका मतलब कि मुझे घोषाल दा के केबिन में बेहोश होने के बाद की घटनाएँ तुम ही बता सकते हो।'
इसलिये कल भी मेरा क्लब जाना जरूरी है। इस निश्चय के साथ मैं नींद के वश में विवश होती चली गयी।
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दूसरे दिन भी मैं बिल्कुल सामान्य ढंग से क्लब गयी थी। मेरी नजरें घोषाल दा को और तुमको ढूढ रही थी। मैं अपने नेट प्रैक्टीस पर अपनी एक मित्र के साथ खेल रही थी। इतने में तुम दिखाई दिये थे। तुम तो रोज ही दिखते थे। आज तुमको मेरी नजरें ढूढ रही थी और तुम दिख गये। कोई भी लड़का या लड़की जिसे आप रोज देखते हैं, वो रोज मिलता रहता है, तो कोई नयापन नहीं लगता। परन्तु अगर आप उसे ही ढूढ रहे हों, और नजर नहीं आ रहा हो, तो बेचैनी बढ़ जाती है। और काफी देर बाद अगर नज़र आ जाय तो खुशी दुगनी हो जाती है।
"ये, नील, व्हेयर वेयर यू? आ एम वेहेमेन्टली सर्चिंग फ़ॉर यू।"
मुझे लगा कि तुम जान बूझकर मुझसे नजरें चुराते हुए निकल जाना चाह रहा हो और अचानक मेरी स्कैन रेंज में आ जाने से तुम घबरा गये हो।
"तुम इतने घबराये हुए क्यों लग रहे हो, सो पज़्ज़्ल्ड?
"नो, आई एम क्वाईट काम ऐण्ड कूल।" तुमने अपने भावों को छिपाते हुये कहा था।
मुझे लगा कि यही मौका है, तुम्हें विश्वास में लेने का। "विल यू वॉक विद मी टुवार्द्स द अशोक ट्री?" अशोक वृक्ष फूटबाल मैदान के दूसरे छोर पर स्टाफ ऑफिस से दूर था।
किशोरावस्था अर्थात जवानी की दहलीज़ पर खड़े वयस्कोन्मुख लड़के को कोई चिकनी, रोमरहित सुगठित टांगों वाली शॉटस और स्लिम फिट टॉप में समुन्नत वक्ष और सुपुष्ट नितम्बों वाली हम उम्र लड़की, अकेले में, अकेले - अकेले शाम के फैलते-घिरते धुन्धलके में दूर स्थित पेड़ों की ओर चलने को कहे, तो इसका अर्थ बेवकूफ से बेवकूफ लड़के को समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। लेकिन तुम परेशान हो गये थे। शायद तुम मेरे अजीब, उटपटांग ब्यवहार और उन्मुक्त हावभाव से डरे रहते थे। तुम्हारे असमंजस की स्थिति को समझते मुझे देर नहीं लगी।
"तुम डरे हुए से लग रहे हो क्यों? मैं तुम्हे ऐस्सोर करती हूँ कि मैं तुम्हारा सेक्सुअल हैरासमेन्ट, यौन शोषण नहीं करूंगी।" मैं वातावरण को हल्का करने के लिये जोर से हँसी थी। परन्तु तुम उतने ही गम्भीर बने हुये थे।
तुम आश्वस्त से लग रहे थे। तभी तुमने कहा था, "ठीक है, चलो।"
तुम और मैं दोनों उस फूटबाल मैदान के ऑफ़िस बिल्डिंग से दूर वाले छोर पर अशोक पेड़ के नीचे बने सीमेन्ट के बैंच पर बैठ गये।
मैंने तुमको सहज करते हुए कहा था, "नील, बी कम्फोर्टेबल।" मैंने तुमसे दूरी रखते हुए ही कहा।
अब उस दिन का राज जानने के लिये, या निकलवाने के लिए तुम्हारी प्रशंसा करनी जरूरी थी।
"नील, तुम बहुत अच्छा खेलते हो। लगता ही नहीं कि आम तौर पर सीधा- साधा, साधारण-सा दिखने वाला लड़का बैडमिंटन कोर्ट में बिजली की तेजी से शटल पर टूट पड़ता है और विरोधी पर तुरत हावी हो जाता है।" मैंने एक तरह से तुम्हारी अतिशय प्रशंसा करते हुए ही कहा था।
"तुम भी बहुत अच्छा खेलती हो।" तुमने छोटा - सा जवाब दिया था। तुम कुछ सहमे - सहमे - से लग रहे थे।
तुम्हें और भी सहज करने के लिए मैं तुम्हारे और करीब खिसक गयी थी।
"नील, देखो तो अशोक के पेड़ के चिकने पत्ते हवा में कैसे सरसरा रहे हैं। उसपर सूर्य की रश्मियाँ कैसी झिलमिला रही हैं।"
मैंने तुम्हें थोड़ा और सहज करने के लिये कहा था।
"तुम मुझे यहाँ तक किसलिए ले कर आयी हो?" तुमने सपाट-सा सवाल उठा दिया था।
अब सहमने की बारी मेरी थी। तुम्हें सहज करके सच कहलवाने की मेरी सारी चेष्टाओं पर तुषारापात हो गया था। मैंने तय कर लिया कि अब मुझे स्ट्रेट फॉरवर्ड होकर अपना सीधा सवाल दाग ही देना चाहिये।
"नील, उस दिन मैं तो घोषाल दा के केबिन में थी, फिर तुम्हारे साथ सायकिल स्टैंड तक कैसे आई? और तुम मेरे चेहरे पर पानी के छींटे क्यों मार रहे थे? क्या मैं बेहोश थी?"
"तुम कुछ और पूछो। इसके बारे में मैं तुझे कुछ नहीं बताऊंगा।"
मेरी सारी योजना पर तुम्हारे इस जवाब ने एक टैंकर पानी डाल दिया था।
अब क्या किया जाय? हम तीनों के अलवा कोई था भी नहीं, जो बता सके। सदियों से रंभा, उर्वशी या तिलोत्तमा जैसी स्त्रियां या समुद्र - मंथन के समय स्वयं विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर, शारीरिक सानिध्य बढ़ाकर पुरुषों को लुभाने का जो कार्य करती आ रही हैं, मुझे भी वही सब करने को विवश होना पड़ा था।
याद है, उसी अशोक वृक्ष के पास वाली बैंच पर जब आसपास कोई नहीं था, मैने तुम्हारा हाथ पकड़ा था, पहली बार मैंने किसी लड़के का हाथ पकड़ा था। तुम्हारे गर्म हाथों का अहसास अपनी हथेलियों पर अंकित हो गया था। उसी छुवन को आजतक मैं अपनी हथेलियों के ऊपरी आवरण के नीचे कैद किये हूँ। मैं अन्तिम अस्त्र फेंककर निशस्त्र हो गयी थी, "तुम्हें, मेरी कसम, तुम कुछ मत छुपाना, नील!"
जो काम मेरी कांपती आवाजों ने नहीं किया, उससे अधिक मेरे गालों पर ढुलक आये आँसुओं ने किया था।
तुमने अपनी उंगली मेरे होठों पर रखी थी, "तुमने मुझे मजबूर कर अच्छा नहीं किया । बहुत भयावह यादें हैं। मैं उन्हें फिर से याद नहीं करना चाहता हूँ।"
मेरे आंखों की बहती नमी को देखकर तुमने कहना शुरु किया,
"उस दिन दौड़ लगाते-लगाते जैसे ही तुम ऑफ़िस के तरफ भागी, मुझे समझ नहीं आया आखिर तुम्हें हुआ क्या? मैं वहीं रुक गया। तुम्हारा इन्तजार करने लगा। काफी देर तक जब तुम्हें वापस आते हुए मैने नहीं देखा, तो मेरे मन में जिज्ञासा और आशंका दोनो घिरने लगी। इतने में मुझे घोषाल दा के केबिन में हल्की - हल्की रोशनी दिखी। सारे अधिकारी जा चुके थे। मैं उत्सुकता वश उसी तरफ बढ़ा। उनके बंद दरवाजे के की होल से देखने के कोशिश की, तो लगा कि तुम उसी केबिन में हो। मैंने उसके दरवाजे पर नॉक करने लगा। सोचा अगर तुम ना भी हुई, तो दादा से ठंढा पानी माँगूगा। उन्हें जब खोलने में देरी हुई तो मैं और भी जोर-जोर से पीटने लगा। जब दरवाजा खुला, तो मैंने तुझे सामने सोफे पर निश्चेष्ट लेटे हुए पाया। घोषाल दा लगता है, अन्दर के बाथरूम में घुसकर स्वयं को बंद कर लिये थे। मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था। तुम्हारा बैक पैक लिया, तुम्हें कन्धे पर उठाया, साइकिल स्टैंड के पास लाकर पानी के छींटे डाले, तब तुम्हें होश आया।"
इतना कहते - कहते तुम हाँफने लगे थे, जैसे मुझे उठाने के बोझ से अभी भी दबे हो।
मैंने तुमसे सिर्फ एक सवाल पूछा था "क्या मैं नेकेड थी?"
तुमने इसका कोई जवाब नहीं दिया था। सिर्फ सर हिलाकर "ना"का इशारा किया था। मेरी भौहें तन गयी थी। मैं वहां से सीधा उठी।।शाम का धुंधलका फैल चुका था। मैं तेजी से भागी।
तुम मेरे पीछे - पीछे दौड़ते भागते आ रहे थे।
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मैने क्लब जाना बंद कर दिया था। एक सप्ताह के बाद मेरे स्कूल में ही पढ़ने वाली लड़की मिली।
"तूने क्लब आना बन्द क्यों कर दिया? अरे जानती हो। एक दिन बैडमिन्टन कोच घोषाल दा को किसी ने पीछे से सिर पर इतनी जोर से मारा कि वह बहुत दिनों तक अस्पताल में पड़े रहे। उनके अंग का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया है।"
"तूने नील को देखा था क्या?"
उसने भी आना बंद कर दिया है। वह भी कभी नहीं दिखाई दिया।"
मैं मुस्कराती हुई साइकिल चढ़ी और घर के तरफ चल दी।
अपने बैडमिन्टन चैम्प बनने के सपने को मैंने वहीं दफन कर दिया।
तुम्हारी खोज में,
मेरी 15 साल पहले की डायरी
-------
--ब्रजेन्द्रनाथ
ता: 25-03-2018,

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