#BnmRachnaWorld
#womenempoermentpoem
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हैदराबाद में हाल में हुए रेपकांड और उसके बाद जलाए जाने की घटना से व्यथित हूँ। यह सरकार और समाज संवेदना विहीन हो गया है, तभी ऐसी घटनाओं पर विराम नहीं लग पा रहा है। अब बेटियों को ही खड़ग उठाना पड़ेगा। इसी ललकार की अभिव्यक्ति है, मेरी यह कविता, "तलवारों से खेलो बेटियों" सुनें:
तलवारों से खेलो बेटियों
नमन, वंदन, क्रंदन, विलपन, अब छोड़ो बेटियों,
खड्ग थामो, भुजा उठा, तलवारों को तोलो बेटियों!
पौरुषविहीन यह समाज, घाव तुम कबतक झेलोगी,
रणभेरी बजा, रणचंडी बन, वारों से खेलो बेटियीं।
जो नापाक हाथ बढ़े, उसको विलग करो कबंध से,
जो कुदृष्टि पड़े तुम पर, नोंच आंखों को, खेलो बेटियों।
क्रोध का मत करो शमन, ज्वाला को धधकाओ,
गर काल सामने आ जाये, संहारों से खेलो बेटियों।
बीते दिन जब कैंडिल लेकर मार्च किया करते थे,
आज के महासमर में, हथियारों से खेलो बेटियों।
ललकार रही यह कायनात, लांघो देहरी बनो प्रलय,
अत्याचारी, बलात्कारी के नरमुंडों से खेलो बेटियों।
तुम बन जा विद्युत - वज्र, गिरो उनको झुलसा दो,
व्यभिचारियों के अंगों के शतखंडों से खेलो बेटियों।
दमन, विष वमन, विभेदन, उत्पीड़न का अंत करो,
शेष नहीं अब समर, मत वारों को झेलो बेटियों।
जबतक न मिटे अनाचार अभियान नहीं रुकने देना,
जबतक जागे न जगत, ललकारों से खेलों बेटियों।
क्रंदन, विलपन, नमन, वंदन अब छोड़ो बेटियों,
भुजा उठा, खड्ग उठा, तलवारों से खेलो बेटियों!
©ब्रजेंद्रनाथ
इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नए है दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें और अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं।
Link: https://youtu.be/c9ojBIFms-s
तलवारों से खेलो बेटियों
नमन, वंदन, क्रंदन, विलपन, अब छोड़ो बेटियों,
खड्ग थामो, भुजा उठा, तलवारों को तोलो बेटियों!
पौरुषविहीन यह समाज, घाव तुम कबतक झेलोगी,
रणभेरी बजा, रणचंडी बन, वारों से खेलो बेटियीं।
जो नापाक हाथ बढ़े, उसको विलग करो कबंध से,
जो कुदृष्टि पड़े तुम पर, नोंच आंखों को, खेलो बेटियों।
क्रोध का मत करो शमन, ज्वाला को धधकाओ,
गर काल सामने आ जाये, संहारों से खेलो बेटियों।
बीते दिन जब कैंडिल लेकर मार्च किया करते थे,
आज के महासमर में, हथियारों से खेलो बेटियों।
ललकार रही यह कायनात, लांघो देहरी बनो प्रलय,
अत्याचारी, बलात्कारी के नरमुंडों से खेलो बेटियों।
तुम बन जा विद्युत - वज्र, गिरो उनको झुलसा दो,
व्यभिचारियों के अंगों के शतखंडों से खेलो बेटियों।
दमन, विष वमन, विभेदन, उत्पीड़न का अंत करो,
शेष नहीं अब समर, मत वारों को झेलो बेटियों।
जबतक न मिटे अनाचार अभियान नहीं रुकने देना,
जबतक जागे न जगत, ललकारों से खेलों बेटियों।
क्रंदन, विलपन, नमन, वंदन अब छोड़ो बेटियों,
भुजा उठा, खड्ग उठा, तलवारों से खेलो बेटियों!
©ब्रजेंद्रनाथ
इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नए है दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें और अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं।
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