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Thursday, August 12, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 7 (लेख)

 #BnmRachnaWorld

#पाठकों से मन की बात

#pathakonsemankibat








पाठकों से मन की बात भाग 7:
परमस्नेही प्रबुद्ध पाठक और कलमकार मित्रों,
पिछले मन की बात में मैंने रचनाकारों की रचनाओं पर पाठकों की अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं आने पर, उनकी क्या प्रतिक्रिया हो, कैसे प्रतिक्रिया दें, इसके बारे में चर्चा की थी।
इसपर आ दामिनी जी की विस्तृत समीक्षा आयी। आपने सही लिखा है कि जब भी कोई कहानीकार कहानी लिखता है तो वह पाठकों को ध्यान में रखकर नहीं लिखता, उससमय जो विचार उठते हैं, उन्हें ही वह पन्नों पर उतारता चला जाता है। पाठक कभी - कभी कहानी के मोड़ को या अंत को बदलने का आग्रह करते हैं। यह सब सुनने को मिलता है। आ उषा जी ने सही कहा है कि अपनी सृजनशीलता पर विश्वास रखिये। यही सबसे बड़ी बात है। आ सरोज सिंह, आ समता परमेश्वर, आ प्रीतिमा भदौरिया और आ कृष्णा खड़का, आ संतोष साहू जी ने भी अपनी सराहनीय प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जो इस लेख की सार्थकता की ओर संकेत देती है।
अपने कथ्य को आगे बढ़ाता हूँ। कोई भी रचनाकार इसे कैसे भूल सकता है कि पाठक हमेशा साथ चलते हैं। यहाँ पर हिंदी - पंजाबी की  सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की वह बात उद्धृत करना चाहता हूँ, जो उन्होंने अपनी चुनींदा कहानियों के संग्रह " मेरी प्रिय कहानियाँ" की भूमिका में लिखी थी,  ‘हर कहानी का एक मुख्य पात्र होता है और जो कोई उसको मुख्य पात्र बनाने का कारण बनता है, चाहे वह उसका महबूब हो और चाहे उसका माहौल, वह उस कहानी का दूसरा पात्र होता है पर मैं सोचती हूं, हर कहानी का एक तीसरा पात्र भी होता है। कहानी का तीसरा पात्र उसका पाठक होता है जो उस कहानी को पहली बार लफ्ज़ों में से उभरते हुए देखता है और उसके वजूद की गवाही देता है।’
कहानी के इस तीसरे पात्र की अनदेखी कोई भी लेखक नहीं कर सकता। जब हम उस तीसरे पात्र को अपनी कथा यात्रा में साथ लेकर चलते हैं, तो उसकी रुचि, और उसके स्वास्थ्य दोनों का ख्याल रखना पड़ता है। उसकी रुचि का ख्याल रखते हुए भी हम उसे वही सबकुछ नहीं परोस सकते जो उसे अच्छा लगे। हमें उसे वही सामग्री देनी होगी जो उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो। अर्थात उसकी रुचि का परिष्कार करते हुए उसे मानसिक रूप में सक्षम और संवेदनशील बनाना भी लेखक का दायित्व होता है।
मैं अब अगले अंक में इसपर अपने विचार देना चाहूँगा,  पाठक को, अगर किसी रचना को पढ़ने के बाद लगे कि यह स्तरहीन है, तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए?
अपना और अपनों का ख्याल रखें, सुरक्षित रहें।
©ब्रजेन्द्रनाथ

3 comments:

आलोक सिन्हा said...

बहुत सही और सटीक लिखा है आपने | बहुत सुन्दर बहुत बहुत सराहनीय लेख |

आलोक सिन्हा said...

आज अचानक आपके पास आ गया था |कल ८० साल का होने जा रहा हूँ | घुटने अधिक चलने की अनुमति नहीं देते | पर सातवी कड़ी पढ़ कर ही सारी थकन दूर हो गई और पाँव तब तक नहीं रुके जब तक प्रथम सीढी पर नहीं पहुँच गए |आपका एक एक शब्द मूल्यवान और लेखकों का सही मार्ग दर्शन करने वाला है | सोच नहीं पा रहा हूँ कि आपको धन्यवाद दूं या आभार प्रगट करूं |बहुत बहुत शुभ कामनाएं |

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय आलोक सिन्हा जी,नमस्ते👏!
आपकी सराहना से मुझे मेरे लेखन का पुरस्कार मिल गया। आपके द्वारा व्यक्त उदगार के लिए आभार और धन्यवाद आदि शब्द बहुत छोटे हैं। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ

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