Followers

Saturday, February 19, 2022

मधु - सिंचन (कविता) शृंगार के छंद

 #BnmRachnaWorld

#romanticverses

#शृंगारकेछंद






इमेज गूगल से साभार

मधु - रस सिंचन

(शृंगार के छंद)

अरुणाभ क्षितिज हो रहा निमग्न 
कालिमा से ढँक रहा  हो  व्योम।
सोम की बिखर रही धवल रश्मियाँ
नेह - निमंत्रण पा पुलक उठा रोम।

मलय समीर सुरभित प्रवाहित
लता - द्रुमों में झूमते पुष्पाहार।
ह्रदय गति चल रही पवमान, 
बाहों में सिमटता जा रहा संसार।

प्राणों को निमंत्रण दे रहे थे प्राण।
कहाँ से आ गई,  यह विकलता।
समीप आ गया तेरे आकर्षण में,
मन किंचित जा रहा पिघलता।

लताएँ लिपटती जब वृक्षों की डालों से
ताल तलैया का भी हो रहा संगम है।
नदियां घहराती, उफनती, जा रही मिलने 
सागर में विलीन होना ही लक्ष्य अंतिम है।

तब  नाव तट से खोलने से पूर्व ही
अर्थ ढूँढने में क्यों  भटक  जाता है?
क्यों उत्ताल तरंगों पर बढ़ने से पूर्व ही,
अविचारित से प्रश्न में उलझ जाता है?

यौवन से जीवन, या जीवन ही यौवन है,
प्रश्न पर प्रश्नों का लगा प्रश्न - चिन्ह है।
उत्तर ढूंढते  हुए, बुद्धि, ढूढती समत्व है,
वैसे ही जैसे नहीं हिम से जल भिन्न है।

मधु का ही दीपक है, मधु की ही बाती है,
मधु ही प्रकाशित है, मधु का ही ईंधन है।
मधु - यामिनी में मधु - रस बिखर रहा,
मधु - रस का हो रहा, नित्य नव - सिंचन है।

©ब्रजेंद्रनाथ





13 comments:

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय रवींद्र जी, मेरी रचना को कल 20 फरवरी दिन रविवार को चर्चा अंक में सम्मिलित करने के हृदय तल से आभार! सादर!--ब्रजेंद्रनाथ

Arun sathi said...

बसंती रस में डूबी कविता

गोपेश मोहन जैसवाल said...

बहुत सुन्दर !
चंद पंक्तियों में समस्त जीवन-दर्शन समेट आपने बृजेन्द्रनाथ जी.

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय गोपेश मोहन जी, नमस्ते!👏! आपकी सहृदय और स्नेहिल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय अरुण साथी जी, नमस्ते👏! आपकी सराहना के शब्द मेरे लिए पुरस्कार की तरह हैं। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

जिज्ञासा सिंह said...

बहुत सुंदर भाव जीवन संदर्भ के । उत्कृष्ट सीजन ।बहुत बहुत बधाई आदरणीय ।

अनीता सैनी said...

वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
मधु का ही दीपक है, मधु की ही बाती है,
मधु ही प्रकाशित है, मधु का ही ईंधन है।
मधु - यामिनी में मधु - रस बिखर रहा,
मधु - रस का हो रहा, नित्य नव - सिंचन है... वाह!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया अनिता सैनी जी, आपके सराहना के शब्दों से अभिभूत हूँ। हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी, आपके उत्साहवर्धक शब्द मुझे नाव सृजन के प्रेरित करते रहेंगे। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Jyoti khare said...

सुंदर सृजन

Madhulika Patel said...

बहुत सुंदर सृजन ।

रेणु said...

मधु का ही दीपक है, मधु की ही बाती है,
मधु ही प्रकाशित है, मधु का ही ईंधन है।
मधु - यामिनी में मधु - रस बिखर रहा,
मधु - रस का हो रहा, नित्य नव - सिंचन ///
छायावादी कवियों सी4निपुण शैली में सुकोमल और भावपूर्ण प्रस्तुति आदरनीय सर 🙏🙏

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया रेणु जी, आपके उत्साहवर्धन से ऊर्जस्वित हूँ। मैं छायावादी कवियों की परंपरा के पास भी नहीं हूँ।आपने मुझे मान देकर मेरे सृजन के लिए पुरस्कृत कर दिया है। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...