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Saturday, May 7, 2022

उत्सव मना ले (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#motivational poem









उत्सव मना ले

कौन बैठा है एकांत,
खंडहर के अवशेष में।
रोकता हुआ स्वयं की
छाया को इस परिवेश में।

लो उतरती बादलों के
बीच से पंखों वाली परी।
बाँट ले उससे तू अपनी
चिंताओं, अवसादों की घड़ी।

भूल जा वो क्षण जो
थे तुम्हें विच्छिन्न करते।
लासरहित, निरानंदित
श्रमित, थकित, व्यथित करते।

लेकर है आयी एक नव
उल्लास तुझमें जगाने।
तेरे मन से विषाद के
फैले हुए घेरे मिटाने।

जीवन में उमंगों के,
खुशियों के पल चुरा ले।
मिलेगी ना दुबारा जिंदगी
मस्ती भरा तू उत्सव मना ले।

©ब्रजेंद्रनाथ

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