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Saturday, January 11, 2014

जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल (कविता)

जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल


जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल ।

तू बांटता चल अपनी मुस्कराहटें,
हो सके तो आंसुओं को छुपाता चला चल ।


जो लेता है दूसरों से याद रख उम्र भर,
जो देता है तू उसे भुलाता चला चल ।

तू कुछ दे सका है,  ये उसकी नेमत है,
शकून बांटता चल, सौगातें लुटाता चल ।

जिंदगी कि परतें कुछ गीत लिख गयीं,
तू राही  है उसे गुनगुनाता चला चल ।

एक राग - सी फाग  में उभर के उठी है,
एक उत्सव है जिंदगी मनाता चला चल ।

मिलना बिछड़ना ,  बिछड़ना  फिर मिलना,
ये सफर का सिलसिला है, भुलाता चला चल

धुंध छँटी, क्षितिज पे पौ फट रही,
तमस के कुहे को मिटाता  चला चल ।

जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल ।


--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
    जमशेदपुर । 



इस कविता को इस साइट के लिंक पर भी पढ़ सकतेहैं:
http://www.poemhunter.com/brajendra-nath-mishra/poems/



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