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Monday, January 20, 2014

महकाएँगे जग को देकर नव सन्देश (कविता)

 महकाएँगे जग को देकर नव सन्देश


हम बच्चे हैं फूल उपवन मेरा देश,
हम महकाएँगे जग को देकर नव सन्देश।

भेदभाव सब मिट जायेंगें,
आपस में हिलमिल गायेंगे ,
एक हमारा नारा है,
सारा विश्व हमारा है ।

एक सांस है एक हृदय है , भिन्न - भिन्न हैं वेश ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।

झगड़े आपस में निपटाएं,
प्रेम - लता के बीज उगाएं,
दुश्मन को भी दोस्त बनाएँ,
सारे जग को बंधू बताएं ।

होगा हरदम स्नेह से मेरे ममता का उन्मेष ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।

उदास कहीं न हो बचपन,
किसी गली में न हो क्रंदन,
बहनें कहीं न अपमानित हों,
आशाओं को न लगे  ग्रहण ।

भारत में फिर स्थापित हो माओं का सम्मान विशेष।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।

बुद्ध ने जग को मार्ग दिखाया,
गांधी ने विश्वास जगाया,
हिंसा का छोड़ो अवलम्बन,
सत्य प्रेम के ढृढ कर बंधन ।

अब न धरा पर रह पायेगा दुःख,द्वेष और क्लेश ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।

आज मचा जो हाहाकार,
नहीं दुःख का पारावार,
जग बंधु का नाता जोड़ो,
शांति - धार के रास्ते मोड़ो ।

प्रेम और बँधुत्व ही हो अब जीवन का उद्देश्य ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।

--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
    जमशेदपुर  

इस कविता को इस साइट के लिंक पर भी पढ़ सकतेहैं:
http://www.poemhunter.com/brajendra-nath-mishra/poems/
 

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