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Tuesday, June 10, 2014

न हो उदास बचपन (कविता)

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न हो उदास बचपन

ओढ़कर ये टोकरी ,
ढूढती  हूँ     सपन,
खुले  आसमान  में,
खोया  कहीं  है  मन,
उदास बचपन ,
उदास  बचपन।

होश संभाला जबसे, मेरे
सूखे होंठ   पपड़ियाते ,
क्योंकि  माँ  तो रहती ,
काम  का बोझ उठाते.

न  कोई    खिलौना,
न  कोई     बिछौना ,
न  कोई         लोरी ,
खाली कोना - कोना।
न   कोई      प्रीत,
न   कोई      मीत,
न   कोई मुस्कान ,
न   कोई     गीत।
न कोई  उपासना,
न कोई    प्रार्थना,
न कोई      फुहार,
न कोई   मनुहार।
बचपन रीता ही रहा ,
क्रंदन   ही    क्रंदन ,
खोया कहीं है  मन ,
उदास बचपन,
उदास बचपन।

मन     है     निराश ,
तन     है     हताश ,
बिखरा पांत - पांत,
न कोई विश्वास।
मेरी गली   आया
न सूरज    कभी ,
अँधेरा ही अँधेरा
पसरा हुआ यहीं।
कौन जोत लेकर
आएगा      यहाँ,
दूध की   नदिया
बहायेगा    यहाँ?
आशा की नयी पौध,
कौन      लगाएगा ,
कौन          करेगा
भविष्य में सिंचन ,
खोया कहीं है मन,
उदास      बचपन
उदास      बचपन।

न हो अत्याचार ,
न हो बलात्कार ,
मेरा  भी है वजूद,
करो तुम स्वीकार।
न खौफ हो मन में
न लगे कहीं ग्रहण।
खिला - खिला हो मन ,
खिला - खिला बचपन।
न हो   उदास   मन ,

न हो उदास बचपन,
न हो उदास बचपन।


This poem is also published on the site link:
"न हो उदास बचपन", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%AA%E0%A4%A8-zd199msohf9j?utm_source=android&utm_campaign=content_share
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2 comments:

Marmagya - know the inner self said...

बहुत अच्छी कविता।

Marmagya - know the inner self said...

बहुत अच्छी कविता।

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