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न हो उदास बचपन
ओढ़कर ये टोकरी ,
ढूढती हूँ सपन,
खुले आसमान में,
खोया कहीं है मन,
उदास बचपन ,
उदास बचपन।
होश संभाला जबसे, मेरे
सूखे होंठ पपड़ियाते ,
क्योंकि माँ तो रहती ,
काम का बोझ उठाते.
न कोई खिलौना,
न कोई बिछौना ,
न कोई लोरी ,
खाली कोना - कोना।
न कोई प्रीत,
न कोई मीत,
न कोई मुस्कान ,
न कोई गीत।
न कोई उपासना,
न कोई प्रार्थना,
न कोई फुहार,
न कोई मनुहार।
बचपन रीता ही रहा ,
क्रंदन ही क्रंदन ,
खोया कहीं है मन ,
उदास बचपन,
उदास बचपन।
मन है निराश ,
तन है हताश ,
बिखरा पांत - पांत,
न कोई विश्वास।
मेरी गली आया
न सूरज कभी ,
अँधेरा ही अँधेरा
पसरा हुआ यहीं।
कौन जोत लेकर
आएगा यहाँ,
दूध की नदिया
बहायेगा यहाँ?
आशा की नयी पौध,
कौन लगाएगा ,
कौन करेगा
भविष्य में सिंचन ,
खोया कहीं है मन,
उदास बचपन
उदास बचपन।
न हो अत्याचार ,
न हो बलात्कार ,
मेरा भी है वजूद,
करो तुम स्वीकार।
न खौफ हो मन में
न लगे कहीं ग्रहण।
खिला - खिला हो मन ,
खिला - खिला बचपन।
न हो उदास मन ,
न हो उदास बचपन,
न हो उदास बचपन।
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"न हो उदास बचपन", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%AA%E0%A4%A8-zd199msohf9j?utm_source=android&utm_campaign=content_share
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2 comments:
बहुत अच्छी कविता।
बहुत अच्छी कविता।
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