#BnmRachnaWorld
#poem#motivational
ओ बी ओ (open books online) साहित्य मर्मज्ञों द्वारा संचालित अन्तरजाल है, जो हर महीने ऑन लाईन उत्सव आयोजित कर्ता है। इस बार यह उत्सव 12-13 जनवरी 2018 को आयोजित किया गया था।
#poem#motivational
ओ बी ओ (open books online) साहित्य मर्मज्ञों द्वारा संचालित अन्तरजाल है, जो हर महीने ऑन लाईन उत्सव आयोजित कर्ता है। इस बार यह उत्सव 12-13 जनवरी 2018 को आयोजित किया गया था।
यद्यपि उससमय मैं दिल्ली में आयोजित पुस्तक मेले में अपने "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" नाम से लिखे उपन्यास के लोकार्पण की तैयारी में ब्यस्त था, तथापि मैने प्रदत्त विषय "सुख" पर अपनी तुकान्त कविता पोस्ट की थी। मैं विवेचना में भाग नहीं ले सका, इसका मुझे अफसोस रहेगा।
ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-87
विषय - "सुख"
आयोजन की अवधि- 12 जनवरी 2018, दिन शुक्रवार से 13 जनवरी 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
वृहत सुख की हो चाह
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
वह जीवन को गति देता है।
उलझा रहता है मानव - मन
कितने झन्झावातों में।
सुलझा कभी नहीं धागा जो,
अझुराया बातों- बातों में ।
कितने झन्झावातों में।
सुलझा कभी नहीं धागा जो,
अझुराया बातों- बातों में ।
अगर चित्त हो शांत, तो ही
इश्वर उसे सुमति देता है।
इश्वर उसे सुमति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
वह जीवन को गति देता है।
सूर्य बिखेरता रश्मियाँ, तभी
कण-कण ज्योतिर्मय होता है।
जो देने में सुख पाते हैं,
उनका सुख अक्षय होता है।
कण-कण ज्योतिर्मय होता है।
जो देने में सुख पाते हैं,
उनका सुख अक्षय होता है।
अगर करो विस्तार स्वयं का
चेतन - स्तर विरक्ति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
चेतन - स्तर विरक्ति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
अपने सुख का देकर भाग
दूसरों में भी नव - संचार भरो।
उनके आंगन में उमंग हो,
सपने उनके साकार करो।
दूसरों में भी नव - संचार भरो।
उनके आंगन में उमंग हो,
सपने उनके साकार करो।
सुधियों को घोल उस समष्टि में
जीवन पावन परिणति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
जीवन पावन परिणति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
फूलों को देखो, उसमें
सुगन्ध कौन भर देता है?
मधु संचय करती है मक्खी
पर स्वाद कौन भर देता है?
सुगन्ध कौन भर देता है?
मधु संचय करती है मक्खी
पर स्वाद कौन भर देता है?
देने में जो सुख पाते हैं, उनका
जीवन विराट में विस्मृति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
जीवन विराट में विस्मृति देता है।
वृहत सुख की हो चाह, तभी
वह जीवन को गति देता है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
1 comment:
इस कविता में मानव जीवन के लिए प्रेरक बिंदुओं को रेखांकित करते हुए आध्यात्मिकता का भी मेल दर्शाया गया है।
Post a Comment