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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 26-05-2018, शनिवार ,पांचवा दिन (Day 5) पहलगाम
पहलगाम मेरी कश्मीर घाटी की यात्रा का पहला पड़ाव था। पता नहीं पहला पड़ाव था इसलिये या कुछ खास है इसकी निशब्द वादियों में, यह मेरा पहला प्यार भी बन गया। मैं बाद में सोनमर्ग, गुलमर्ग और श्रीनगर भी गया, लेकिन हर जगह प्रकृति के खुलापन में कुछ-न-कुछ बनावटीपन घुला हुआ लगा। यहाँ की प्रकृति अभी तक बिल्कुल अपने वास्तविक स्वरुप में है।
मैं जहाँ ठहरा हूँ, वह लिद्दर नदी के किनारे का एक रेसोर्ट है। मुझे संयोगवश वह कमरा मिला हुआ है, जहाँ से लिद्देर नदी का कल-कल स्वर सुनाई देता है। स्फटिक-सा साफ जल पत्थरों पर लगातार बहते-बहते उन्हें गोल बना देता है। उन्हीं पर फिसलती हुई नदी, एक रूहानी संगीत को स्वर देती हुयी बही जा रही है। यह घाटी, जो उँचे-उँचे पहाड़ों से घिरी है, उनके शिखरों पर इस मौसम में (मई के उत्तरार्ध) भी बर्फ की चादर देखी जा सकती है। यही बर्फ पिघलती है और झरनों की शक्ल में पहाड़ों से नीचे उतरती है और एक साथ मिलकर नदी का आकार ले लेती है। इस स्थान पर यह नदी बिल्कुल स्वच्छ और अप्रदूषित है, इसीलिये इसका सौन्दर्य अभी भी शास्व्त है, रूहानी है, आत्मिक है। मुझे रात में नदी के किनारे-किनारे जल को निहारते हुए कुछ दूर चलने का मन हुआ, परन्तु रात में पहाडों से होकर बहने वाली बर्फीली हवा के जोर के कारण तापमान 5 डिग्री के करीब गिर गया। मेरे पास जैकेट और मफलर रहने के बाव्हूद भी नदी के किनारे रात्रि भ्रमण का लोभ संवरण करना पड़ा।
सुबह नाश्ते के बाद, पहलगाम से सटे हुये कुछ स्थानों पर भ्रमण का कार्यक्रम निर्धारित था। इसलिये हमलोग नाश्ता करने के बाद होटल रिसेप्सनिस्ट की मदद से तीन स्थानों अरु घाटी, बेताब घाटी और चन्दन बाड़ी का भ्रमण के लिये तवेरा गाड़ी ठीक किया गया। हमारी यात्रा 9 बजकर 30 मिनट पर आरम्भ हुयी। हमलोग लिद्दर नदी के किनारे - किनारे सड़क मार्ग से होते हुये आगे बढने लगे। ठंढी हवा और पहाडियों से घिरी वादियों से गुजरते हुये नजारों के एक - एक पन्ने खुलते चले गये। पहाडों के शिखर बादलों को छूने के लिये एक दूसरे से होड़ में लगे हुये से दिखे। हमारी गाड़ी अरु घाटी की ओर बढ़ रही थी। रास्ते में कही - कहीं भेडों-बकरियों के झुण्ड की वजह से गाड़ी को धीमा रखते हुये सड़क के किनारे से गुजरना होता है। शायद आज भी भेड़ों के मालिक उन्हें चराते हुये दूर पहाडों के तरफ निकल जाते हैं। इसी के वे किसान हैं, और यही इनकी किसानी हैं। इनकी पूरी खेती चलायमान रहती है यानि भेड़ बकरियों की खेत और ये इसके किसान। सुना है ऐसे ही एक किसान ने अमरनाथ गुफा में स्थित बर्फ से बने शिवलिंग की खोज की थी।
अरु घाटी जो करीब 7500 फीट उंची है, एक सुरक्षित वन क्षेत्र है। इस वन क्षेत्र में हिरण, शेर और भालू बहुतायत में पाये जाते हैं। यहाँ के जंगलों में हाथी नहीं पाये जाते हैं। यहाँ पर दूर गिरि श्रिंगों पर सफेद बर्फ की चादर सूर्य की रोशनी में चमकती चांदी की तरह दिखाई देती है। हर ओर से बहते झरनों का संगीत, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से होकर झांकती सूर्य की किरणें पहाडों की खामोशी को संगीत से भर दे रहे थे। मुझे कुछ पक्तियों को रचने का मन करने लगा, जो इसतरह बाहर आ गया:
गिरि श्रिंगों पर बर्फ की चादर
देवदार के पेड़ो की हरियाली
बहते झरनों का शोर छल छल
बुला रही है, थोडी बैठ तो आली।
उँचे- उँचे शिखरों से
खिंची है बर्फ की रेखा
रुई के फाहों से सनी
हवाओं में समय देखा।
ये कौन भर रहा कल कल उमंग है।
ये पत्थरों में उकेरता तरंग है।
ये कौन मचा रही नित धमाल है।
खुशियाँ दूँ सबको ये मेरे लाल हैं।
कैसे धरा को बुहार दूँ।
कैसे धरा को संवार दूँ।
अरु वैली के बाद हमलोग चन्दन बाड़ी गये। यह स्थान अमरनाथ यात्रा का पावर व्हीकल द्वारा तय किये जाने वाला अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद की यात्रा पैदल या घोड़े पर तय की जाती है। यह समुद्र से 9500 फीट पर है। वहां बर्फ की मटमैली चादर बिछी थी। रुई के फाहों जैसी बर्फ एक-पर-एक जमा होकर बर्फ का लिहाफ बन गयी है। हमलोग उसपर कुछ दो कदम चले भी। कहीं-कहीं बर्फ पांव तले पड़ कर कीच बन गयी । प्रकृति को मानव जब पैरों तले रौंदने लगता है, तो वह मैली हो जाती है। उसे वैसे ही रहने देना चाहिये, जैसी वह है। कहीं कहीं बर्फ के छाते जैसे जमाव के नीचे से पानी का झरना नि:सृत हो रहा है। झरना ढलान पर वेगवान हो जाता है।
यही सारे झरने एक साथ मिलकर नदी का जल श्रोत बन जाते हैं। इतना कुछ प्रकृति ने जीवन को पोषित करने के लिये दिया हुआ है, फिर मानव ही और अधिक पाने के लिये, वह भी कम समय में, उसका बेपरवाह, बेहिसाब दोहन करने लगता है।
वहां से लौटते हुये बेताब वैली का विहन्गम दृष्टि से अवलोकन किया। नीचे जाकर देखने का समयाभाव था। सन्नी देवल, अमृता सिंह अभिनीत फिल्म "बेताब" का फिल्मांकन यहीं पर हुआ था।
इसे अब ब्यवसायिक रेसोर्त में बदल दिया गया है, जहां अन्दर जाने के लिये प्रति ब्यक्ति 100रु के टिकट लगते हैं। यह ब्यवसाय सरकार चला रही है या सरकार ने पट्टे पर किसी को दे दिया है, यह पता नहीं चल सका।
शाम तक हमलोग होटल आ गये।
क्रमश:
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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 26-05-2018, शनिवार ,पांचवा दिन (Day 5) पहलगाम
पहलगाम मेरी कश्मीर घाटी की यात्रा का पहला पड़ाव था। पता नहीं पहला पड़ाव था इसलिये या कुछ खास है इसकी निशब्द वादियों में, यह मेरा पहला प्यार भी बन गया। मैं बाद में सोनमर्ग, गुलमर्ग और श्रीनगर भी गया, लेकिन हर जगह प्रकृति के खुलापन में कुछ-न-कुछ बनावटीपन घुला हुआ लगा। यहाँ की प्रकृति अभी तक बिल्कुल अपने वास्तविक स्वरुप में है।
मैं जहाँ ठहरा हूँ, वह लिद्दर नदी के किनारे का एक रेसोर्ट है। मुझे संयोगवश वह कमरा मिला हुआ है, जहाँ से लिद्देर नदी का कल-कल स्वर सुनाई देता है। स्फटिक-सा साफ जल पत्थरों पर लगातार बहते-बहते उन्हें गोल बना देता है। उन्हीं पर फिसलती हुई नदी, एक रूहानी संगीत को स्वर देती हुयी बही जा रही है। यह घाटी, जो उँचे-उँचे पहाड़ों से घिरी है, उनके शिखरों पर इस मौसम में (मई के उत्तरार्ध) भी बर्फ की चादर देखी जा सकती है। यही बर्फ पिघलती है और झरनों की शक्ल में पहाड़ों से नीचे उतरती है और एक साथ मिलकर नदी का आकार ले लेती है। इस स्थान पर यह नदी बिल्कुल स्वच्छ और अप्रदूषित है, इसीलिये इसका सौन्दर्य अभी भी शास्व्त है, रूहानी है, आत्मिक है। मुझे रात में नदी के किनारे-किनारे जल को निहारते हुए कुछ दूर चलने का मन हुआ, परन्तु रात में पहाडों से होकर बहने वाली बर्फीली हवा के जोर के कारण तापमान 5 डिग्री के करीब गिर गया। मेरे पास जैकेट और मफलर रहने के बाव्हूद भी नदी के किनारे रात्रि भ्रमण का लोभ संवरण करना पड़ा।
सुबह नाश्ते के बाद, पहलगाम से सटे हुये कुछ स्थानों पर भ्रमण का कार्यक्रम निर्धारित था। इसलिये हमलोग नाश्ता करने के बाद होटल रिसेप्सनिस्ट की मदद से तीन स्थानों अरु घाटी, बेताब घाटी और चन्दन बाड़ी का भ्रमण के लिये तवेरा गाड़ी ठीक किया गया। हमारी यात्रा 9 बजकर 30 मिनट पर आरम्भ हुयी। हमलोग लिद्दर नदी के किनारे - किनारे सड़क मार्ग से होते हुये आगे बढने लगे। ठंढी हवा और पहाडियों से घिरी वादियों से गुजरते हुये नजारों के एक - एक पन्ने खुलते चले गये। पहाडों के शिखर बादलों को छूने के लिये एक दूसरे से होड़ में लगे हुये से दिखे। हमारी गाड़ी अरु घाटी की ओर बढ़ रही थी। रास्ते में कही - कहीं भेडों-बकरियों के झुण्ड की वजह से गाड़ी को धीमा रखते हुये सड़क के किनारे से गुजरना होता है। शायद आज भी भेड़ों के मालिक उन्हें चराते हुये दूर पहाडों के तरफ निकल जाते हैं। इसी के वे किसान हैं, और यही इनकी किसानी हैं। इनकी पूरी खेती चलायमान रहती है यानि भेड़ बकरियों की खेत और ये इसके किसान। सुना है ऐसे ही एक किसान ने अमरनाथ गुफा में स्थित बर्फ से बने शिवलिंग की खोज की थी।
अरु घाटी जो करीब 7500 फीट उंची है, एक सुरक्षित वन क्षेत्र है। इस वन क्षेत्र में हिरण, शेर और भालू बहुतायत में पाये जाते हैं। यहाँ के जंगलों में हाथी नहीं पाये जाते हैं। यहाँ पर दूर गिरि श्रिंगों पर सफेद बर्फ की चादर सूर्य की रोशनी में चमकती चांदी की तरह दिखाई देती है। हर ओर से बहते झरनों का संगीत, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से होकर झांकती सूर्य की किरणें पहाडों की खामोशी को संगीत से भर दे रहे थे। मुझे कुछ पक्तियों को रचने का मन करने लगा, जो इसतरह बाहर आ गया:
गिरि श्रिंगों पर बर्फ की चादर
देवदार के पेड़ो की हरियाली
बहते झरनों का शोर छल छल
बुला रही है, थोडी बैठ तो आली।
उँचे- उँचे शिखरों से
खिंची है बर्फ की रेखा
रुई के फाहों से सनी
हवाओं में समय देखा।
ये कौन भर रहा कल कल उमंग है।
ये पत्थरों में उकेरता तरंग है।
ये कौन मचा रही नित धमाल है।
खुशियाँ दूँ सबको ये मेरे लाल हैं।
कैसे धरा को बुहार दूँ।
कैसे धरा को संवार दूँ।
अरु वैली के बाद हमलोग चन्दन बाड़ी गये। यह स्थान अमरनाथ यात्रा का पावर व्हीकल द्वारा तय किये जाने वाला अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद की यात्रा पैदल या घोड़े पर तय की जाती है। यह समुद्र से 9500 फीट पर है। वहां बर्फ की मटमैली चादर बिछी थी। रुई के फाहों जैसी बर्फ एक-पर-एक जमा होकर बर्फ का लिहाफ बन गयी है। हमलोग उसपर कुछ दो कदम चले भी। कहीं-कहीं बर्फ पांव तले पड़ कर कीच बन गयी । प्रकृति को मानव जब पैरों तले रौंदने लगता है, तो वह मैली हो जाती है। उसे वैसे ही रहने देना चाहिये, जैसी वह है। कहीं कहीं बर्फ के छाते जैसे जमाव के नीचे से पानी का झरना नि:सृत हो रहा है। झरना ढलान पर वेगवान हो जाता है।
यही सारे झरने एक साथ मिलकर नदी का जल श्रोत बन जाते हैं। इतना कुछ प्रकृति ने जीवन को पोषित करने के लिये दिया हुआ है, फिर मानव ही और अधिक पाने के लिये, वह भी कम समय में, उसका बेपरवाह, बेहिसाब दोहन करने लगता है।
वहां से लौटते हुये बेताब वैली का विहन्गम दृष्टि से अवलोकन किया। नीचे जाकर देखने का समयाभाव था। सन्नी देवल, अमृता सिंह अभिनीत फिल्म "बेताब" का फिल्मांकन यहीं पर हुआ था।
इसे अब ब्यवसायिक रेसोर्त में बदल दिया गया है, जहां अन्दर जाने के लिये प्रति ब्यक्ति 100रु के टिकट लगते हैं। यह ब्यवसाय सरकार चला रही है या सरकार ने पट्टे पर किसी को दे दिया है, यह पता नहीं चल सका।
शाम तक हमलोग होटल आ गये।
क्रमश:
1 comment:
पहाड़ो और झरनों में, हरियाली से सजी वादियो में और बर्फ की चोटियों में विराट चित्रकार के स्वरुप का दर्शन, लेखक की यायावरी को नए क्षितिज पर स्थापित करता है।
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