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#HindiDiwas
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Link: https://youtu.be/-o0y4UoaCu0
हिंदी दिवस पर: बारह छंद
हिंदी भूषण के छन्द हैं,
सवैये हैं चंद वरदाई के।
हिंदी है तीर पृथ्वीराज का
भेदती छाती गोरी आतताई के।
हिंदी है सूर तुलसी की भक्ति,
उलटबासियाँ संत कबीर की,
हिंदी है दोहे रहीम रसखान के
और शायरी ग़ालिब मीर की।
हिंदी मीरा के गीतों में है
छंदों में भक्त रैदास के।
हिंदी रमानंद की कुटिया,
गायन में स्वामी हरिदास के।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने किया
खड़ी बोली का अनुसंधान।
हिंदी की सरिता बनी गंगा,
बह चली सर्वत्र वेगवान।
हिंदी राणा के भालों में
मेवाड़ की पावन माटी में।
हिंदी है श्यामनारायण की,
रक्त - सरोवर हल्दीघाटी में।
हिंदी है झाँसी की धरती
और लक्ष्मीबाई की तलवार।
सुभद्रा कुमारी चौहान के,
छंदों से गूंजी थी ललकार।
प्रेम के लिए प्रेम की भाषा,
अरि के लिए अंगार है, हिंदी
सियारों की हुआ हुआ का,
उत्तर सिंहनाद हुंकार है, हिंदी।
हिंदी कोमल पंत और
करुणा महादेवी की।
जयशंकर की कामायनी,
निराला की जूही की कली।
हिंदी है फक्कड़ नागार्जुन सी
और दिनकर की हुंकार भरी।
हिंदी मैथिली शरण गुप्त की,
साकेत, पंचवटी सी संस्कार भरी।
हिंदी नीरज के गीतों में,
बच्चन के रुबाइयों की मधुशाला।
माखन, अटल का देशराग,
जानकी बल्लभ की राधा बाला।
अन्य भाषाओं के मनके से
बनती है हिन्दी की माला।
भारतीयता का साकार रूप
हिंदी में लक्षित माँ वाला।
माँ आँचल की छाँव देकर
होती रही विभोर है।
भारतीय भाषाओं का विकास हो,
स्नेह का नहीं ओर छोर है।
©ब्रजेन्द्रनाथ
हिंदी भूषण के छन्द हैं,
सवैये हैं चंद वरदाई के।
हिंदी है तीर पृथ्वीराज का
भेदती छाती गोरी आतताई के।
हिंदी है सूर तुलसी की भक्ति,
उलटबासियाँ संत कबीर की,
हिंदी है दोहे रहीम रसखान के
और शायरी ग़ालिब मीर की।
हिंदी मीरा के गीतों में है
छंदों में भक्त रैदास के।
हिंदी रमानंद की कुटिया,
गायन में स्वामी हरिदास के।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने किया
खड़ी बोली का अनुसंधान।
हिंदी की सरिता बनी गंगा,
बह चली सर्वत्र वेगवान।
हिंदी राणा के भालों में
मेवाड़ की पावन माटी में।
हिंदी है श्यामनारायण की,
रक्त - सरोवर हल्दीघाटी में।
हिंदी है झाँसी की धरती
और लक्ष्मीबाई की तलवार।
सुभद्रा कुमारी चौहान के,
छंदों से गूंजी थी ललकार।
प्रेम के लिए प्रेम की भाषा,
अरि के लिए अंगार है, हिंदी
सियारों की हुआ हुआ का,
उत्तर सिंहनाद हुंकार है, हिंदी।
हिंदी कोमल पंत और
करुणा महादेवी की।
जयशंकर की कामायनी,
निराला की जूही की कली।
हिंदी है फक्कड़ नागार्जुन सी
और दिनकर की हुंकार भरी।
हिंदी मैथिली शरण गुप्त की,
साकेत, पंचवटी सी संस्कार भरी।
हिंदी नीरज के गीतों में,
बच्चन के रुबाइयों की मधुशाला।
माखन, अटल का देशराग,
जानकी बल्लभ की राधा बाला।
अन्य भाषाओं के मनके से
बनती है हिन्दी की माला।
भारतीयता का साकार रूप
हिंदी में लक्षित माँ वाला।
माँ आँचल की छाँव देकर
होती रही विभोर है।
भारतीय भाषाओं का विकास हो,
स्नेह का नहीं ओर छोर है।
©ब्रजेन्द्रनाथ
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6 comments:
हिंदी के इतिहास को दर्शाती सुंदर रचना !
आदरणीय डॉ रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" जी, आपने चर्चा अंक 3826 में चर्चा के लिए मेरी रचना का चयन किया है। आपका हृदयतल से आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
हर बंद सराहना से परे आदरणीय सर। हिंदी की व्याख्या करता बेहतरीन सृजन।मन को छूता सृजन।
लाजवाब 👌
सादर प्रणाम सर।
आदरणीया अनिता सैनी जी, आपके सराहना के शब्द नए सृजन के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सादर आभार!--ब्रजेन्द्रनाथ
आदरणीया अनीता जी, नमस्ते ! आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से मुझे सृजन की प्रेरणा मिलती रहती है। आपका सादर आभार !--ब्रजेन्द्र नाथ
सुंदर छंद
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