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#onset of spring season
#springseason
परम स्नेही मित्रों,
शिशिर के अवसान और बसंतागमन की आहट पर प्राकृतिक दृश्यों को शब्दों में गुम्फित करते हुए लिखी गईं मेरी कविता का शीर्षक है :
निकला नया सवेरा है।
निकला नया सवेरा है।
कोहरे की छाती चीर - चीर,
किरणों के चल रहे तीर।
तम की घाटी को बेध बेध
सूरज ने प्राची को घेरा है।
निकला नया सवेरा है।
तुहिनों ने हरियाली पर चांदी
की चादर को बिछा दिया ।
नव किसलय की कोमल सी
गंधों की मसि से लिखा दिया।
जो अनुबंध उकेरा है।
निकला नया सवेरा है।
धूप मुंडेर से उतर रही
आंगन में आकर ठिठकी।
बूढ़ी दादी के सर्द दर्द की
कौन सुने आकर सिसकी।
गौ के अमृत - दुग्ध- पान का
हक सबका तेरा मेरा है।
निकला नया सवेरा है।
नभ को छूती फुनगियों पर
किरणें आती टिक जाती हैं।
कोयल भी कुहू कुहू कहकर
नव जीवन राग सुनाती है।
बगुलों की धवल पांत का
तड़ाग तटों पर डेरा है।
निकला नया सवेरा है।
शिशिर अब विदा ले रहा,
बसंत के आने की आहट।
मन्मथ के मृदुल राग ले
मदिर समीर की अकुलाहट।
हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
निकला नया सवेरा है।
@ब्रजेंद्रनाथ
मेरी इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं! सादर!
Link : https://youtu.be/21-aEDf1Paw
24 comments:
बूढ़ी दादी के सर्द दर्द की,कौन सुने आकर सिसकी।''
क्या बात है, बहुत बढ़िया
आदरणीय गगन शर्मा जी, नमस्ते! आपके उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ। हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-2-22) को "शारदे के द्वार से ज्ञान का प्रसाद लो"(चर्चा अंक 4333)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, नमस्ते👏! मेरी इस रचना को कल, रविवार, 6 फरवरी के चर्चा अंक में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर!--ब्रजेंद्रनाथ
शिशिर अब विदा ले रहा,
बसंत के आने की आहट।
मन्मथ के मृदुल राग ले
मदिर समीर की अकुलाहट।
हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
निकला नया सवेरा है।
..बहुत सुन्दर सामयिक रचना
आदरणीया कविता रावत जी, नमस्ते👏! आपके उत्साहजनक उदगार से ऊर्जस्वित हूँ। आपका हृदय तल से आभार!
बसंत के आगमन का मनोरम वर्णन
आदरणीया, आपके सराहना के शब्दों से सृजन के लिए प्रेरणा मिलती रहती है।सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
सुन्दर चित्रण
मनोरम प्राकृतिक दृश्य आपकी लेखनी के स्पर्श से सजीव हो उठे ।
आदरणीया मीना भारद्वाज जी, आपके सराहना के शब्द मेरे लिए पारितोषिक की तरह है। आपका हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय मनोज जी, आपके सकारात्मक उदगार मुझे प्रेरित करते रहेंगे। -- ब्रजेंद्रनाथ
बूढ़ी दादी का सर दर्द ... बहुत खूब।
बहुत सुंदर रचना।
समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला
आपके उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही खूबसूरत व सराहनीय सृजन आदरणीय सर
आदरणीय मनीषा जी, आपके उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
शिशिर अब विदा ले रहा,
बसंत के आने की आहट।
मन्मथ के मृदुल राग ले
मदिर समीर की अकुलाहट।
हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
निकला नया सवेरा है।...
बसंत के आगमन पर सामयिक तथा सुंदर रचना ।
आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी, मेरी रचना पर आपके उदगार से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीया दिव्या जी, नमस्ते!👏! मेरी इस रचना को "पांच लिंको के आनंद" के कल यानि ता 21 फरवरी के चर्चा अंक के लिए चयनित करने पर हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ
धूप मुंडेर से उतर रही
आंगन में आकर ठिठकी।
बूढ़ी दादी के सर्द दर्द की
कौन सुने आकर सिसकी।
गौ के अमृत - दुग्ध- पान का
हक सबका तेरा मेरा है।
निकला नया सवेरा है।
बसन्त की आहट के बीच मानवीय संवेदनाओं से भरी ये पंक्तियां मन को छू गई। भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं आपको आदरणीय सर 🙏💐💐
आदरणीया रेणु जी, नमस्ते👏! एक अंतराल के बाद अपनी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया देखकर मन अभिभूत हो गया। आपने मेरी इस रचना के बारे में जैसी टिप्पणी दी है, कम ही सुधीजन दे पाते हैं। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
शिशिर से वसंत ऋतु में प्रवेश करते समय अपने आसपास के जनजीवन से, प्रकृति से लिए गए बिंब एवं दृश्य कविता को एक सामान्य पाठक के जीवन से जोड़ रहे हैं। शब्द एवं भाषा शैली बहुत सुंदर।
आदरणीया मीना शर्मा जी, नमस्ते👏! आपने मेरी इस रचना के बारे में बहुत ही उत्साहवर्द्धक समीक्षा की है। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मार्गदर्शन की तरह है। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
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