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देश में नए आए हो
मैं आयरलैंड पहली बार गया था। कुछ दिन होटल में बिताने के बाद मुझे अपार्टमेंट में आवास मिल गया था। यहाँ की तुलना में वहां का मौसम बहुत प्रतिकूल और क्षण क्षण परिवर्तित होने वाला था। जनवरी के महीने में मौसम की उच्छृंखलता और भी बढ़ जाती थी। तेज ठंढी हवाएं, तापमान 9 डिग्री सेंटीग्रेड से -16 डिग्री सेंटीग्रेड तक परिवर्तित होता रहता था। बाहर में निकलने के पहले हाथों में ग्लोव्स पैर में पूरा कवर करता हुआ शूज और चार - पांच तह विशेष गर्म कपड़ों को पहनकर निकलना आवश्यक होता था।
ऐसे ही एक दिन मैं पूरे कपड़ों से सुसज्जित होकर वहाँ से आधा किलोमीटर दूर मेट्रो पकड़कर एक मॉल गया था। वहाँ भारतीय खाद्य सामग्रियाँ भी मिलती थी। समान लेकर मैं मेट्रो के लिए पैदल ही निकला था। मेट्रो स्टेशन के पास पहुंचने पर पता चला कि मेट्रो बंद है। कब चलेगा इसकी कोई निश्चित सूचना नहीं थी।
दूसरा विकल्प बस थी। सुनसान सड़क पर वाक करते हुए करीब 70 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग दंपति से मैंने पूछा था कि बस स्टैंड कितनी दूर है। उन्होंने कहा कि बस स्टैंड यहाँ से 2 किलोमीटर पर होगा। थोड़ी ही देर में शाम घिरने वाली थी। शाम होते ही तेज हवाएँ चलनी शुरू हो जाती थी। हड्डियों को गला देने वाली ठंढ के बढ़ने के साथ मौसम की भयावहता बढ़ जाती थी। मुझे शीघ्र ही अपने आवास पहुंचना आवश्यक था।
मैं बस पकड़ने के लिए एक दिशा में बढ़ गया था। वहाँ पर नेट भी नहीं था, जिससे गूगल मैप की मदद ली जा सके। मुझे लगा था कि उस सुनसान सड़क पर मेरे पीछे कोई आ रहा है। मैं ने डरते - डरते पीछे मुड़कर देखा तो वे बुजुर्ग दंपति लगभग दौड़ते हुए ही आ रहे थे। मैंने समझा उन्हें किसी तरह की मदद की आवश्यकता होगी इसीलिये वे तेजी से हमारी तरफ आ रहे हैं। वे मेरे करीब आ गए, तब मैंने पूछा, "क्या आपको कोई मदद चाहिए?"
उन्होंने कहा था, "लगता है आप इस देश में नए आये हो। मदद हमें नहीं आपको चाहिए।"
मैंने कहा, "मैंने समझा नहीं।"
"आप जिस ओर जा रहे हो, बस स्टैंड उसकी विपरीत दिशा में है।"
मैं तो हतप्रभ था। वे मुझे सही दिशा निर्देश देने के लिये तेजी से मेरी ओर आ रहे थे।
उन्होंने कहा, "आप मेरे साथ आओ। मैं आपको बस स्टैंड तक छोड़ देता हूँ।"
वे आगे - आगे चलते रहे। मैं उनके पीछे- पीछे चल रहा था। जब बस स्टैंड करीब आ गया, उन्होंने मुझे उस स्थान पर छोड़ दिया। मैंने समझा था कि उन्हें भी इसी ओर आना था, इसलिए वे मुझे साथ लिए हुए आ गए।
मैंने पूछा था, "आप को किस ओर जाना है?"
वे बोले थे, "जहां से मैं आपके साथ आ रहा हूँ, उसकी दूसरी ओर मुझे जाना है। आप चिंतित नहीं हो हमलोगों को इतना चलने की आदत है। हमलोग चले जायेंगे। आप मेरे देश में नए हो। आप अगर कहीं भटक गए, खो गए, तो मेरे देश के नागरिकों के प्रति आपके मन में अमैत्री पूर्ण (अन्फ़्रेंडली) व्यवहार करने वाली छवि बैठ जाएगी।"
इतना कहकर, हंसते हुए, 'फिर मिलेंगे' कहकर उन्होंने विदा लिया था। उनकी छवि आज भी मन में बसी हुई है।
ब्रजेंद्रनाथ
12 comments:
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह बहुत बढ़िया एवं प्रेरक संस्मरण!!
बहुत सुंदर संस्मरण!
आदरणीया अनिता जी, सराहना के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरनीया अनुपमा जी, आपके उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय रवींद्र जी, मेरी रचना को चर्चा अंक में सम्मिलित करने के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
किसी भी देश के नागरिकों का कर्तव्य होता है अपने व्यवहार से अपने देश को ऐसे गर्वित होने का अवसर दें।
सुंदर संस्मरण सर ।
ऐसे मानवीय लोग कभी भी भुलाये नहीं जा सकते
।
सादर
प्रणाम।
इस प्रकार के संस्मरण यहविश्वास दिलाते हैं कि मनुष्यता अब भी जीवित है। बहुत सुकून मिला पढ़कर।
आदरणीया डॉ विभा नायक जी, नमस्ते👏! आपने रचना की सराहना कर मेरा उत्साहवर्धन किया है। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया स्वेता सिन्हा जी, नमस्ते👏! आपने मेरी इस संस्मरण पर आधारित रचना पर अत्यंत उतसाहवर्धक टिप्पणी दी है। आपका हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
मैं तीन साल गल्फ में रहा हूँ,इस तरह के कई अनुभव मेरे दिल में समाए हुए हैं
सोचता हूँ आखिर यहां ऐसा क्यों नहीं है
मानवीय संवेदनाओं की सार्थक प्रस्तुति
सादर
आदरणीय ज्योति खरे जी, आप बिल्कुल सही लिख रहे है। हमारे साथ जो अच्छे अनुभव हैं, उन्हें ही हम विस्मृत कर देते है, और बुरे अनुभवों को स्मृति में संजोए रखते है। मैंने एक अच्छे अनुभव की स्मृतियों को ताजा किया है, अपनी इस रचना में। सराहना के लिए आपका हृदय तल से आभार!
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