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Wednesday, January 25, 2023

इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल (कविता)

 #BnmRachnaWorld

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परम स्नेही आदरणीय मित्रों,
कृपया यह संदेश अवश्य पढ़ें :
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमें कुछ विषयों पर सोचना चाहिए. वैसे देश ने कोरोना संक्रमण के काल को पार कर विकास की राह पकड़ ली है, यह संतोष की बात है.
लेकिन अभी भी कुछ सवाल हैं, जो हमारी गति के त्वरण को प्रतिगामी बना रहे हैं.
हमें अग्रगामी बनने के लिए, 5 ट्रिलियन आर्थिक शक्ति बनने के लिए, आम जन को व्यथित करते इन कतिपय प्रश्नों या इनके जैसे अन्य प्रश्नों का हल ढूढना पड़ेगा... इन्हीं भावों को गुम्फित करती मेरी यह रचना मेरी आवाज़ में यूट्यूब लिंक पर भी सुनें ...

इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल

स्वतंत्र देश में हो आमूल परिवर्तन
इंग्लिश कानूनों को बदलना होगा.
देश की परिस्थितियों के अनुसार
अपने शासन तंत्र को चलना होगा.
कोई भी,  क़ानून से नहीं है विशाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

जनसंख्या वृद्धि में क्यों होना आगे?
क़ानून हो सख्त, लागू हो नियंत्रण.
श्रोतों पर दबाव  कम करने होंगे
जनता का इसमें है पूर्ण समर्थन.
इससे किसी को क्यों हो मलाल?
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

कन्हैया और कोले के कातिल
इसी तरह जुर्म को देंगे अंजाम?
क़ानून के रक्षक कर्तव्य निभाएंगे
जब हो जायेंगे सारे काम तमाम?
भ्रष्ट तंत्र का कब टूटेगा मकड़ जाल?
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

आफ़ताबों की हिम्मत ऐसी बढ़ेगी कि
दिग्भ्रमित श्रद्धा के टुकड़े किए जायेंगे?
न्याय प्रक्रिया इतनी पंगु हो जाएगी
जुल्म साबित करने में वर्षों लग जायेंगे?
विलंबित न्याय का कब सुधरेगा चाल?
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

धर्म परिवर्तन पर लागू हो क़ानून
किसी को न लालच, न हो दबाव
कोई भी झूठे झांसे में न लाये जाएँ.
किसी से कभी ना हो दुराव छिपाव.
कोई भी कमल कामत ना बने कमाल.
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

सरकारी जमीन और संपत्तियों पर
अनाधिकार कब्जे का हो अधिग्रहण.
सड़कों, गलियों पर दबंगों के कब्जे से
मुक्त हो गलियाँ, खत्म हो अतिक्रमण.
दिलों में बस जाएँ लोकसेवक, टूटे भ्रम जाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

विकास की गति में भी हो विचार
पहाड़ों के अस्तित्व का हो संरक्षण,
नदियाँ ना बदल जाएँ गंदे नालों में,
स्वच्छ जल और हवा से ही है पर्यावरण
संतुलित विकास को पुनः करें बहाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

इस बार कोई भी सेनानियों के
शौर्य का नहीं मांगे कोई प्रमाण.
इस बार कोई भी उठाये न ऊँगली
दे सके तो दें उन्हें प्रेम और सम्मान.
वीरत्व और पराक्रम के साक्षात् मिशाल.
फिर किसी गणतंत्र ना कोई उठे सवाल.
फिर कोई क्यों करे  सवाल...?
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.
©ब्रजेन्द्र नाथ
यूट्यूब लिंक :

https://youtu.be/0TNmAfOjwqg







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