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Friday, October 20, 2023

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#Durgamakavita

#दुर्गामाँकविता










माता हमको वर दे 

माता हमको वर दे
नयी ऊर्जा से भर दे ।  

हम हैं बालक शरण तुम्हारे,
हम अबोध हैं, प्यारे - प्यारे
आत्मशुद्धि पर हो ध्यान हमारा,
बुद्धि मेरी प्रक्षालित कर दे । 
माता हमको वर दे

शक्ति दो कि हम हों बलवान,
भक्ति दो कि हम हैं नादान
अंतरतम के गह्वर में
साधना - बल प्रखर दे
माता हमको वर दे ।

माँ, तुझमें ब्रह्माण्ड लय है,
तेरे भ्रूभंग में विकट प्रलय है
जीवन में सतत प्रगति का,
भाव सदा तू भर दे
माता हमको वर दे ।

मेरी त्रुटियों को दूर करो,
मेरी कमियों को दूर करो
मैं अपने देश का मस्तक,
उन्नत करूँ, बल भर दे
माता हमको वर दे ।


राष्ट्रप्रेम की उत्कट इच्छा,
अग्नि पथ पर प्रबल परीक्षा
कोई विपदा आ जाये तो
रण नाद का वारिद स्वर दे
माता हमको वर दे

©ब्रजेन्द्र नाथ 

Thursday, August 31, 2023

हम भारत वाले हैं (कविता) #चंद्रयान 3

 #BnmRachnaWorld

#Chandrayan3 #pragyan rover








हम भारत वाले हैं 

चंद्र धरा पर हमने अपने प्रतीक डाले है.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.


मेघ कहाँ रोक पाया, हमारी उड़ान की गति को.
अंतरिक्ष में बढ़कर हमने अंकित किया प्रगति को.

चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर हमने विक्रम उतारा है.
अज्ञात क्षेत्र में सफल अकेला प्रयास हमारा है.

प्रज्ञान रोवर खोज रहा वहाँ जीवन की सम्भावना,
फलित हुआ हमारा संकल्प, शोध और साधना.

आकाश गंगा के तारे हमारी जद में आने वाले है.
हम भारत...

आज चंद्र यान, कल मंगल यान,  परसो  सूर्ययान.
आंतरिक्ष के ग्रह तारों का भ्रमण करेगा हमारा यान.

चाँद पर बनायेंगें हम अपना अंतरिक्ष पड़ाव स्थल.
वहाँ से आगे अभियान शुरू शुक्र, शनि और मंगल.

हमारे भी चाँद पर होंगे शहर, कस्बे और बस्तियाँ पर्यटन के लिए जाया करेंगे खूब करेंगे मस्तियाँ.

चंदा मामा महल सजालो आनेवाले हैं.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.

जहाँ चंद्रयान 2 का लैंडर उतरा  नाम तिरंगा रखा है.
चन्दयान 3 का लैंडर उतरा नाम शिव शक्ति रखा है.

चाँद के दक्षिणी भाग पर हमारे रखे  नाम है.
चाँद के ये क्षेत्र हमारी खोज  के परिणाम हैं.

जल, खनिज औ जीवन की खोज जारी है.
यह सदी भारत की है, यह सदी हमारी है.

दुनिया वालो रस्क मत करो हम सबके रखवाले हैं
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.

23 अगस्त को हम अंतरिक्ष दिवस मनाएंगे.
लैंडर विक्रम उतरा जहाँ वहाँ तिरंगा फहराएँगे.

सूरज के अंदर की खोज में आदित्य यान भेजेंगे.
प्रतिक्रियाओं के महत्वपूर्ण ज्ञान क्रिया का लेंगे.

मंगल पर हम सतत गुलजार बस्तियाँ बसाएंगे.
फिर कृष्ण विवर (ब्लैक होल) की खोज में जायेंगे.

विश्व को अंतरिक्ष में नेतृत्व देने वाले हैं.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.

प्रज्ञान रोवर तेरा विक्रम लैंडर से संवाद रत होना
अनुशासन पालन कर विक्रम से आदेश प्राप्त करना

धीरे से, मंद गति से संयम से बाहर तेरा आना,
चंदा मामा की सतह पर पद चिह्न उकेरा जाना.

सूरज की रोशनी में शैर को निकलना
विक्रम से हमेशा संवाद रत रहना
गड्ढे को देखते ही दिशा बदल लेना.
मेधावी पूत हो तुम तेरा ठुमक - ठुमक चलना

विलक्षण शोध भी तुमसे संभव होने वाले हैं.
हम भारत वाले हैं, हम भारत वाले हैं.

©ब्रजेन्द्र नाथ




Tuesday, August 22, 2023

जीते हमने कई आकाश (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#chandrayan3poem

#चंद्रयान 3 कविता






 मैं जो कविता लिखी है, वह हमारे वैज्ञानिकों की कामयाबी पर आधारित है। चंद्रयान - ३ अपने पथ पर गतिशील है। आप विभिन्न फ्रेमों से ली गई तस्वीरों के साथ मेरी कविता मेरी आवाज में  यूट्यूब के नीचे दिए गए लिंक पर भी सुनें । यही कविता मैंने सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मलेन तुलसी भवन द्वारा पिछले १९ अगस्त को आयोजित मैथिलीशरण गुप्त साहित्यकार सम्मान के उपलक्ष्य में भी सुनाई थी। आइये वैज्ञानिकों के द्वारा देश के लिए अर्जित उन गौरव के पलों को शब्द देने का प्रयास करता हूँ :


 जीते हमने कई आकाश

ज्ञान और विज्ञान ज्योति का

निरंतर व्याप्त हो रहा प्रकाश

कोविड वैक्सीन से यान अभियान

से जीते हमने कई आकाश.


विज्ञान के जटिल समीकरण

हमने प्रतिभा से किए है हल.

भारत सरकार, इसरो विभाग

का प्रयास हो रहा सतत सफल.



नमन उन ज्ञान वीरों को

जिनकी मेधा का है प्रमाण.

यह प्रक्षेपित हुआ, वह उड़ा,

बादलों के पार हमारा यान.


गगन भेद, रचने इतिहास

चंद्र कक्षा में घूम रहा है चंद्र यान

बस कुछ पलों की है देर

होगा रोवर चंद्र सतह पर गतिमान.


चंद्रयान घूम रहा सतह से मिनिमम दूरी की कक्षा

यही पर हमारे वैज्ञानिकों की है कठिन परीक्षा.


23 अगस्त का इन्तजार जब होंगे हम कामयाब

विश्व का पहला देश बनेगा, पूरे होंगे हमारे ख्वाब.


जय जय किसान, जय जय जवान ❗

जय जय विज्ञान, जय भारत महान ❗


हमने ली है आज शपथ

चलेगा सतत यह अभियान.

आज चंद्रयान, कल मंगल यान

परसो प्रक्षेपित होगा सूर्य यान.

©ब्रजेन्द्रनाथ




वीडियो लिंक :

https://youtu.be/QgeWWJdGGQw 

Friday, June 2, 2023

"तुम्हारे झूठ से प्यार है" कहानी संग्रह का लोकार्पण

 #BnmRachnaWorld

#Tumhare jhuth se pyar hai

#तुम्हारे #झूठ से #प्यार है









परम स्नेही सुधीजनों,

मेरी लिखी और कई स्थलों पर प्रकाशित चौदह कहानियों का संग्रह "तुम्हारे झूठ से प्यार है" का लोकार्पण साहित्य, भाषा और संस्कृति के उन्नयन के लिए समर्पित केंद्र सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन/ तुलसी भवन, जमशेदपुर (झारखण्ड) के प्रयाग कक्ष में 3 जून 23 को हो गया है. इस पुस्तक में मेरे पूर्व प्रकाशित धारावाहिकों और उपन्यासों पर प्रतिलिपि के पाठकों द्वारा व्यक्त टिप्पणियो और समीक्षाओं को भी स्थान दिया गया है. आप सबों की शुभेच्छाओं का आकांक्षी हूँ.

इस पुस्तक पर कुछ विद्वतजनों द्वारा व्यक्त विचारों को प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है.

प्रसिद्ध साहित्यविद डॉ हरेराम त्रिपाठी "चेतन" जी द्वारा व्यक्त विचार देखें और इस पर आधारित रील का वीडियो फेसबुक पर अवश्य देखें :

बेचैन वर्तमान की भिन्न - भिन्न रंगों में रंगी महत्वाकांक्षाओं, नए अंकुरित मूल्यों, सम्बंधों की सीमारेखाओं को तोड़ती आकांक्षाओं तथा स्वयं से निर्मित परिभाषाओं के भीतर अपनी खोज करती इकहरी मानसिकताओं वाली कहानियाँ इस संग्रह में हैं. आधुनिक परिवेश के अंदर के उद्वेलनों, पहचान की बेचैनी और पसीने की गंध एवं संवेदनशीलता की नई नई धुनें थिरकती नजर आती हैं. कहानीकार ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र ने इन कहानियों के माध्यम से पीढ़ियों के अंतराल की मनोवैज्ञानिक सपनों के भार, टूटन का शोर को रेखांकित किया है.

कहानीकार मिश्र ने इन कहानियों के माध्यम से जीवन जीने और जीवन काटने का अर्थ भी समझा दिया है. इस संग्रह की कहानियों के समशीतोष्ण शब्दों ने नारी चेतना के नए स्वरों को नई भंगिमाएं दी हैं तथा कथा - तंतुओं की खिड़कियों से झाँकती आँखों में नई चमक उत्पन्न की है.

यह कहानी संग्रह "तुम्हारे झूठ से प्यार है " नए युग की जीजीविषा को उभारती है और पीढ़ियों के बीच चटके दरारों को रेखांकित करती है.

मैं ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र की कहानी चेतना की मंगल कामना करता हूँ और उनकी कलम से और अधिक उपजाऊ कहानी की फसल की उम्मीद करता हूँ.

डॉ हरेराम त्रिपाठी 'चेतन'

वरिष्ठ साहित्यकार, हिंदी एवं भोजपुरी.

बदलते शहरी समाज और रुमानियत की झलक

दिव्येन्दु त्रिपाठी

श्री ब्रजेन्द्र नाथ  मिश्र द्वारा रचित कुल चौदह कहानियों का संग्रह है यह पुस्तक - "तुम्हारे झूठ से प्यार है". श्री मिश्र कथा - साहित्य में अपनी गहरी पैठ रखते हैं तथा अपनी विशिष्ट शैली, कथानक के अनूठे स्वरुप तथा प्रसंगों को रोचक ढंग से समेटने की कला में माहिर हैं. आप अपनी कहानियों में अक्सर वैसे परिवेश और परिघटनाओं को लेकर आते हैं जो वर्त्तमान दौर को रूपायित करते हुए बदलते मानव - समाज को रेखांकित करती हैं. आप मुख्यतः शहरी परिवेश को चित्रित करने वाले कथाकार हैं. साथ ही रुमानियत को भी निराले अंदाज में रखने में सिद्धहस्त हैं. शहर तथा रुमानियत आपकी कहानियों के केंद्रस्थ भाव में रहते हैं. यदि किसी कहानी में गाँव उपस्थित हो गया तो उसमें भी किसी - न - किसी प्रकार से शहरी हस्तक्षेप नजर आ ही जाता है.

भूमण्डलीकरण के बाद और विशेषकर पिछले एक - दो दशकों में दूर संचार क्रांति के पुरजोर ने वैश्विक मानवीय संवेदनाओं के तानेबाने को नया स्वरुप प्रदान किया है.  भारत भी इससे अछूता नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य देशों के मुकाबले यह नव्य परिवर्तनों को अधिक साक्षात्कृत कर रहा है. देशों तथा राष्ट्रो के बीच की दूरियां कम हो रही हैं. प्रव्रजन की सुविधाओं तथा वीजा - नियमों के लचीलेपन ने विश्व विरादरी को एक नया रूप प्रदान किया है. भारत के युवा विश्व के हर प्रमुख शहर में विद्यार्जन के क्रम में अथवा नौकरी या व्यापार में अपनी महनीय उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं. भारत हर जगह दिखाई पड़ रहा है. इस संग्रह की पहली कहानी "तुम्हारे झूठ से प्यार है " में बाला सुब्रमण्यम ऐसे ही युवाओं का प्रतिनिधि पात्र है.

नए दौर में 'प्रेम तथा परिणय' ने अपना तानाबाना बदला है. विभिन्न समुदायों, राज्यों के लोगों तथा विदेशी मित्र से प्रेम तथा विवाह अब कोई चौँकानेवाली बात नहीं रही. 'गेट वे ऑफ़ इंडिया' ऐसे ही दो परिवारों ( गुजराती तथा विहारी ) के बीच होने वाले वैवाहिक सम्बन्ध पर आधारित है.

"तुम्हारे झूठ से प्यार है" में भारतीय युवक और अमेरिकन युवती के बीच प्रणय को पनपते हुए दिखलाया गया है. छठवीं शताब्दी की पृष्ठभूमि पर लिखी ऐतिहासिक कहानी "प्रतिशोध का पुरस्कार" में तिब्बती भिक्षुक इत्सिंग तथा मगध की युवती के मध्य परिणय को दिखलाया गया है. हालांकि यह कथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य की नहीं है लेकिन इस विशेष परिप्रेक्ष्य (प्रणय - परिणय ) में आधुनिक समाज से स्पर्श करती हुई प्रतीत होती है.

इस संग्रह की कहानियों में देश तथा विश्व के कई प्रमुख नगरों की उजस्थिति दिखलाई गईं है - हैदराबाद, बैंगलोर, मुंबई, पुणे, दिल्ली, इरवाइन (कैलीफोरनिया, यू एस ए ) आदि जहाँ आज का युवा वर्ग अपनी धाक जमाते नजर आता है. मिश्र जी अपनी कथाओं पर काफी काम करते हैं. प्रेमियों के अंतरंग वार्त्तालापों को बारीकी से लिखते हैं. आधुनिक परिधान में सजी - धजी युवती के 'नख शिख वर्णन' में संस्कृतनिष्ठ शब्दों की झड़ी लगा देते हैं. इनकी कहानियों की नायिकायें इक्कीसवीं सदी की होकर भी छायावादी युग का मृदुल ह्रदय धारण करती है. उनमें छल - कपट नहीं, व्यक्तित्व में उलझाव नहीं. लेखक इनमें "कामायनी" की 'श्रद्धा' के कुछ अंश इन नायिकाओं में डालते हैं. आप नायिकाओं को आजकल के किन्हीं यथार्थ पात्रों को कल्पना शक्ति से विकसित कर उसमें 'श्रद्धा' के तत्व मिला डालते हैं. ये नायिकायें स्वभाव से लचीली होती हैं. शीघ्र कन्विंस / सहमत हो जाती हैं. उन्हें मित्र या प्रेयसी बनाने में अधिक फ़िल्मी दाव - पेंच आजमाना नहीं पड़ता है. वें शीघ्र ही प्रणय की परिधि में चली आती हैं. 'आलिंगन' की स्थिति के लिए सहज ही प्रस्तुत हो जाती हैं. वे पहल करती हैं, प्रपोज तक कर देती हैं.

   आजकल के अधिक संवेदनशील लेखक बदलते परिवेश को लेकर निराश दिखाते हैं. बहुराष्ट्रीयता तथा पूंजीवाद क्व प्रति गहन असंतोष प्रदर्शित करते हैं. भावी पीढ़ी की सफलताओं की दीवारों के नींव में पुरानी पीढ़ी की पीड़ा, मूल्यहीनता से उत्पन्न सिसकन, उपेक्षा, अंतराल आदि का दर्द आदि अधिक बेधनेवाला लगता है. इन बातों से इंकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक विकास नव कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है. लेकिन मिश्र जी की कहानियों के वरिष्ठ - नागरिक पात्र भी 'अपडेट ' हैं. वे नई पीढ़ी के बदलावों को सहर्ष स्वीकारते हैं. वे वर्जनाओं से ऊपर उठकर बच्चों के साथ - साथ नई हवा में झूमने का प्रयास करते हैं. समाज में बुजुर्ग होते लोगों की भी कई कोटियाँ हैं जो कि वैक्तिक अर्थव्यवस्था, नैतिक मानदंडों, परंपराओं के प्रति झुकाव की मात्रा आदि से प्रभावित रहती हैं. कथाकर ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र आशावादी लेखक हैं. वे आगे बढ़ते समाज, सफल होती युवापीढ़ी, वैश्विक समीप्य का सहर्ष स्वागत करते हैं.

लेकिन समाज की तल्ख़ सच्चाईयों तथा मूल्यों को आप बखूबी समझते हैं. केवल गुलाबी - गुलाबी ही नहीं बल्कि कंटाकाकीर्ण परिवेशबसे भी पाठकों को दो - चार कराते हैं. "विश्वास के दर्प" में एक बालक की ईमानदारी के प्रति निष्ठा को दर्शाया है. "वह गोली" में फ़ौजी जीवन के मार्मिक प्रसंगों को उठाया गया है. "रमजीता पीपर" कहानी में पर्यावरण के प्रति लोगों की अनिष्ठा, स्वार्थपरता तथा परंपरागत मूल्यों के क्षरण की बात उठाई गईं है. "मुस्कान को घिरने दो" में एक मेडिकल के विद्यार्थी की मानवीय संवेदना प्रकट हुई है.

उस संकलन में आई कहानी "प्रतिशोध का पुरस्कार" सबसे अलग हटकर है. उत्तरगुप्तकालीन  भारत की राजनैतिक धार्मिक वतावारण को उपवृंहित करती यह कहानी, श्वेत हूणों के अत्याचारों, उनकी नृशंस अवधारणाओं, नालंदा विश्वविद्यालय के आदर्शो, उत्तरकालीन गुप्त राजाओं की सत्तागत स्थिति को इस कहानी में अभिचित्रित किया गया है. संभवतः ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गईं यह लेखक की पहली कहानी है.

अंत में तीन हास्य व्यंग्य रचनायें इस संग्रह को अधिक रोचक बना रही हैं. गुदगुदी उत्पन्न करने वाली  ये रचनाएँ समस्याओं को व्यंजित करती हैं. "क्या मैं बैल हूँ" की व्यंजनात्मकता बेजोड़ है.

इस कृति से पूर्व भी लेखक के कई उपन्यास और कथा संग्रह प्रकाशित हैं. वे पुस्तकाकार रुप में अमेज़न पर और ई बुक के रूप अमेज़ॉन किंडल पर उयलब्ध हैं. यह संग्रह लेखक की लेखनी की प्रवाहशीलता का प्रमाण दे रहा है. यह पाठकों, विद्वानों तथा समीक्षकों द्वारा स्वीकृत और प्रशंसित होगा, ऐसा मेरा दृढ विश्वास है. "तुम्हरे झूठ से प्यार है" यथार्थ की बूंदों को मस्तिष्क और मानस के पत्तों पर अपनी चमक तथा मुस्कुराहट बिखेरे, ऐसी मेरी शुभकामना है.

दिव्येन्दु त्रिपाठी

रामनवमी

संवत - 2080

28 मार्च 2023.

(श्री दिव्येन्दु त्रिपाठी वास्तु, पुरातत्व और डी एन ए से सम्बंधित कई शोध - ग्रंधों के रचयिता हैं )



Friday, May 19, 2023

कोमल प्रकृति के शब्द मुखर (कविता) #सुमित्रानन्दन पंत

 #BnmRachnaWorld

#सुमित्रानन्दन पंत #sumitranandan pant











20 मई को छायावाद के प्रमुख स्तम्भ कविवर सुमित्रानंदन का जन्मदिन है. प्रस्तुत है मेरी लिखी कविता :

कोमल प्रकृति के शब्द मुखर 

हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर.
मृदु राग भरा, है काव्य धरा,
मन भावों की है वसुंधरा.
तूने दिए हर स्पंदन को स्वर.

ग्रामश्री  का किया श्रृंगार सृजन
रजत मंजरियों से ढँका आम्र वन
गूंजन करता तेरा शब्द भ्रमर.
हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर.

मौन निमंत्रण में विम्ब विन्यास
भर देते उर में  उर्मिल उच्छवास.
विहग - कुल - कोकिल - कंठ -स्वर
हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर.

बसंत राग में वर्णित मधुमास
सुरभि से अस्थिर मरुताकाश
प्रणय में रोमांचित हुआ उर्वर
हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर.

पतझड़ में बिछड़े जीर्ण पात
नव पल्लव का मधुमय प्रभात
जीवन दर्शन का है ज्ञान प्रखर.
हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर

मृदु राग भरा, है काव्य धरा
मन भावों की है वसुंधरा
तूने दिए हर स्पंदन को स्वर.
हे कोमल प्रकृति के शब्द मुखर.

©ब्रजेन्द्र नाथ 


Thursday, February 2, 2023

चंदा रे शीतल रहना (कविता) #गीत

 #BnmRachnaWorld

#moon #chandaresheetalrahana










चंदा रे शीतल रहना 

जगत भर को तपन से त्राण देने के लिए
करोड़ों को सुधा का दान देने के लिए.
चंदा रे  शीतल रहना - 2

सूरज की तपन लेकर के
तू करता है अवशोषण.
छिटकाई जो तूने किरण,
करती चित्त का है शमन.
तू उज्जवलता  का जग को दे रहा है दान रे
तू मानवता का हरदम रख रहा है मान रे.
चंदा रे तू अविचल  रहना.
चंदा रे  शीतल   करना - 2

तुझे शिव ने किया धारण
तेरा विस्तार ज्यों वामन.
हुआ समुद्र का मंथन
तेरा जनम, एक रतन.
अम्बर के सितारों में तू गोलाकार है
ह्रदय में, नयन में, तू ही बस साकार है.
चंदा रे अचंचल  रहना.
चंदा रे शीतल  रहना - 2

विश्व में विष का शमन
बुद्धि में प्रभु का मनन.
कराता ईश का वंदन
हमारे रुके नहीं चरण.
तेरी उपमा है दी जाती, तू मामा है बच्चों का,
तेरी महिमा सुहाती है, तू प्रेमा के मुखड़े सा

चंदा रे, अविरल रहना.
चंदा रे,  शीतल रहना - 2

©ब्रजेन्द्रनाथ

इस कविता को संगीत बद्ध  किया गया है. इसके यूट्यूब लिंक के लिए नीचे की तस्वीर पर क्लीक करें...




Wednesday, January 25, 2023

इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#gantantra #diwas #gantantradiwaspoem




परम स्नेही आदरणीय मित्रों,
कृपया यह संदेश अवश्य पढ़ें :
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर हमें कुछ विषयों पर सोचना चाहिए. वैसे देश ने कोरोना संक्रमण के काल को पार कर विकास की राह पकड़ ली है, यह संतोष की बात है.
लेकिन अभी भी कुछ सवाल हैं, जो हमारी गति के त्वरण को प्रतिगामी बना रहे हैं.
हमें अग्रगामी बनने के लिए, 5 ट्रिलियन आर्थिक शक्ति बनने के लिए, आम जन को व्यथित करते इन कतिपय प्रश्नों या इनके जैसे अन्य प्रश्नों का हल ढूढना पड़ेगा... इन्हीं भावों को गुम्फित करती मेरी यह रचना मेरी आवाज़ में यूट्यूब लिंक पर भी सुनें ...

इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल

स्वतंत्र देश में हो आमूल परिवर्तन
इंग्लिश कानूनों को बदलना होगा.
देश की परिस्थितियों के अनुसार
अपने शासन तंत्र को चलना होगा.
कोई भी,  क़ानून से नहीं है विशाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

जनसंख्या वृद्धि में क्यों होना आगे?
क़ानून हो सख्त, लागू हो नियंत्रण.
श्रोतों पर दबाव  कम करने होंगे
जनता का इसमें है पूर्ण समर्थन.
इससे किसी को क्यों हो मलाल?
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

कन्हैया और कोले के कातिल
इसी तरह जुर्म को देंगे अंजाम?
क़ानून के रक्षक कर्तव्य निभाएंगे
जब हो जायेंगे सारे काम तमाम?
भ्रष्ट तंत्र का कब टूटेगा मकड़ जाल?
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

आफ़ताबों की हिम्मत ऐसी बढ़ेगी कि
दिग्भ्रमित श्रद्धा के टुकड़े किए जायेंगे?
न्याय प्रक्रिया इतनी पंगु हो जाएगी
जुल्म साबित करने में वर्षों लग जायेंगे?
विलंबित न्याय का कब सुधरेगा चाल?
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

धर्म परिवर्तन पर लागू हो क़ानून
किसी को न लालच, न हो दबाव
कोई भी झूठे झांसे में न लाये जाएँ.
किसी से कभी ना हो दुराव छिपाव.
कोई भी कमल कामत ना बने कमाल.
इस गणतंत्र उठ रहे कुछ सवाल.

सरकारी जमीन और संपत्तियों पर
अनाधिकार कब्जे का हो अधिग्रहण.
सड़कों, गलियों पर दबंगों के कब्जे से
मुक्त हो गलियाँ, खत्म हो अतिक्रमण.
दिलों में बस जाएँ लोकसेवक, टूटे भ्रम जाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

विकास की गति में भी हो विचार
पहाड़ों के अस्तित्व का हो संरक्षण,
नदियाँ ना बदल जाएँ गंदे नालों में,
स्वच्छ जल और हवा से ही है पर्यावरण
संतुलित विकास को पुनः करें बहाल.
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.

इस बार कोई भी सेनानियों के
शौर्य का नहीं मांगे कोई प्रमाण.
इस बार कोई भी उठाये न ऊँगली
दे सके तो दें उन्हें प्रेम और सम्मान.
वीरत्व और पराक्रम के साक्षात् मिशाल.
फिर किसी गणतंत्र ना कोई उठे सवाल.
फिर कोई क्यों करे  सवाल...?
इस गणतंत्र फिर कोई नहीं सवाल.
©ब्रजेन्द्र नाथ
यूट्यूब लिंक :

https://youtu.be/0TNmAfOjwqg







Friday, December 30, 2022

नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो (कविता) #new year 2023 greetings

 #BnmRachnaWorld

#newyeargreetings #happynewyear2023









नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष की नव रश्मियाँ
दे रहीं संदेश पल - पल।
सुधियाँ वही जो दे खुशी,
हो यही उद्घोष प्रतिपल।
नव स्फूर्ति के साथ नवाचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

कैलेंडर के बदले जाएँ पन्ने
नव वर्ष  के हर महीने में
नव उत्साह, नव उमंग की
भावनायें जगे हर सीने में.
हर पल खुशियों का संचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष कोई भी लड़की
टुकड़ों में ना काटी जाए
नव वर्ष में कोई भी श्रद्धा
आफताबों के जाल में ना बांटी जाये.
नव वर्ष में कभी भी ना दुराचार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष में  कन्हैया की
नहीं कटती रहे गर्दन
नव वर्ष में वहशियाना
कृत्यों का  हो मर्दन
वर्ष में निडरता का नया आधार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

छोटी आँखें छोटे कद वालों चीनियों
दम  देखो फौलादी बाजुओं में
मारेंगे, काटेंगे, और गाड़ देंगे
तवांग की बर्फ़ीली  घाटियों में.
इस वर्ष दुश्मनों का सम्पूर्ण संहार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

हम हैं जो तम की घाटियों से
किरण खुशियों की खींच लाते हैं.
हम हैं कि अँधेरे बादलों पर
बिजलियों का स्यन्दन चलाते हैं.
हमारे तूर्यनाद का दिग दिगंत प्रसार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

घना कोहरा छाया हो गगन में,
रश्मियों का रथ न कोई रोक पाया.
खुशियों के चिरागों की गति को
तमिश्रा का त्वरण न रोक पाया.
नव वर्ष में सदप्रयास सब साकार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

सीमा पर डटे सेनानियों,
हमारे दिलों में आप धड़कते हो
हम मनाते हैं खुशियां यहाँ,
जब आप दुश्मनों पर झपटते हो.
देशवासियों उनका नमन सौ बार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.


नव अन्वेषण के लिए
सिद्धांतों का शोधन करो।
नयी सोच पर, नई रीति से
नये आलोक में चिंतन करो.

नये विमर्श की नई शोध  स्वीकार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/qPOf386Jpfg




Friday, December 23, 2022

अटल होते आज अगर (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#Atalhoteaajagar

#atal









अटल होते आज अगर

पीर पंजाल का नाम होता
पञ्चालधारा  पर्वत माला?
पी ओ जे के होता भारत में,
गिलगिट पर फहराता तिरंगा निराला?

अटल होते आज अगर
रग रग हिन्दू मेरा परिचय,
भारत का वेद वाक्य होता
सत्य सनातन  ही
देश का अभिनव साक्ष्य होता.

अटल होते आज अगर
धर्म कोई भी ना होता
देशधर्म ही होता धर्म एकमात्र.
विपक्ष भी क्या होता सुसंस्कृत,
धर्म रक्षित, होता सुपात्र?

अटल होते आज अगर
जनसंख्या नियंत्रण पर
क्या बदलता संविधान ?
क्या होता एन आर सी पर
विस्तृत और संशोधित विधान?

अटल होते आज अगर
क्या चुनाव प्रक्रिया में
होता व्यापक सुधार?
क्या निर्वाचितों को वापस
बुलाने का मिलता अधिकार?

अटल होते आज अगर
क्या कानूनों में होता
आमूल चूल परिवर्तन?
क्या गुलाम भारत के कानूनों
का समाप्त होता चलन?

अटल होते आज अगर
क्या मदरसों के विद्यालयों
में भी लागू होती राष्ट्रीय शिक्षा नीति?
क्या पूरे भारत में एक सिलेबस
से होते सभी विद्वान और ना होती राजनीति?

ये सभी सवाल तब भी होते
आज भी खोज रहे हैं उत्तर.
देश को विकास के पथ पर
ले जाने को हो अगर तत्पर.

©ब्रजेन्द्र नाथ

Tuesday, December 13, 2022

गीतकार कवि शैलेन्द्र (लेख)#पुण्य तिथि पर

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मेकिंग ऑफ़ तीसरी कसम

(शैलेन्द्र के पुण्य तिथि 14 दिसंबर पर विशेष )

शायद प्रेम की परिणति यही है कि वह अधूरा रह जाय, उसका अधूरापन ही उसकी पूर्णता है, उसके अधूरेपन से उत्पन्न दर्द की छटपटाहट ही  इसकी गहराई है।  लहरों का उठना, तरंगों में तब्दील होना और किनारे जाकर टूटकर लौट जाना ही उसकी पूर्णता है।
मित्रों, रेणु जी की कहानी "मारे गए गुलफाम"  में पनपते अंतर्निहित  प्रेम के भावनाओं के अनुरूप और उसके विछोह सहित नमी भरे नोट पर अंत ' की कहानी को पर्दे पर उतारना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इस चुनौती को पूरा करने में कवि शैलेन्द्र ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. आइये 14 दिसंबर, उनकी पुण्य तिथि पर उनके संघर्षो के कुछ पहलूओं को याद करते हैं.

यह फ़िल्म हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर आधारित है। इस फिल्म का फिल्मांकन सुब्रत मित्र ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ "रेणु" ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें, जबकि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। यह फ़िल्म उस समय व्यावसायिक रूप से सफ़ल नहीं रही थी, पर इसे आज अदाकारों के श्रेष्ठतम अभिनय तथा अप्रतिम निर्देशन के लिए जाना जाता है। इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने के कारण निर्माता गीतकार शैलेन्द्र का निधन हो गया था। इसको तत्काल बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता नहीं मिली थी पर यह हिन्दी के श्रेष्ठतम फ़िल्मों में गिनी जाती है।
हि रामन एक गाड़ीवान है। फ़िल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य के साथ होती है जिसमें वो अपना बैलगाड़ी को हाँक रहा है और बहुत खुश है। उसकी गाड़ी में सर्कस कंपनी में काम करने वाली हीराबाई बैठी है। हिरामन कई कहानियां सुनाते और लीक से अलग ले जाकर हीराबाई को कई लोकगीत सुनाते हुए सर्कस के आयोजन स्थल तक हीराबाई को पहुँचा देता है। इस बीच उसे अपने पुराने दिन याद आते हैं और लोककथाओं और लोकगीत से भरा यह अंश फिल्म के आधे से अधिक भाग में है। इस फ़िल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। हीरामन अपने पुराने दिनों को याद करता है जिसमें एक बार नेपाल की सीमा के पार तस्करी करने के कारण उसे अपने बैलों को छुड़ा कर भगाना पड़ता है। इसके बाद उसने कसम खाई कि अब से "चोरबजारी" का सामान कभी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। उसके बाद एक बार बांस की लदनी से परेशान होकर उसने प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो बांस की लदनी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। हीराबाई नायक हिरामन की सादगी से इतनी प्रभावित होती है कि वो मन ही मन उससे प्रीति कर बैठती है उसके साथ मेले तक आने का 30 घंटे का सफर कैसे पूरा हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता हीराबाई हिरामन को उसके नृत्य का कार्यक्रम देखने के लिए पास देती है जहां हिरामन अपने दोस्तों के साथ पहुंचता है लेकिन वहां उपस्थित लोगों द्वारा हीराबाई के लिए अपशब्द कहे जाने से उसे बड़ा गुस्सा आता है। वो उनसे झगड़ा कर बैठता है और हीराबाई से कहता है कि वो ये नौटंकी का काम छोड़ दे। उसके ऐसा करने पर हीराबाई पहले तो गुस्सा करती है लेकिन हिरामन के मन में उसके लिए प्रेम और सम्मान देख कर वो उसके और करीब आ जाती है। इसी बीच गांव का जमींदार हीराबाई को बुरी नजर से देखते हुए उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास करता है और उसे पैसे का लालच भी देता है। नौटंकी कंपनी के लोग और हीराबाई के रिश्तेदार उसे समझाते हैं कि वो हिरामन का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे नहीं तो जमींदार उसकी हत्या भी करवा सकता है और यही सोच कर हीराबाई गांव छोड़ कर हिरामन से अलग हो जाती है । फिल्म के आखिरी हिस्से में रेलवे स्टेशन का दृश्य है जहां हीराबाई हिरामन के प्रति अपने प्रेम को अपने आंसुओं में छुपाती हुई उसके पैसे उसे लौटा देती है जो हिरामन ने मेले में खो जाने के भय से अमानत के रूप में उसे दिए थे। उसके चले जाने के बाद हिरामन वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठता है और जैसे ही बैलों को हांकने की कोशिश करता है तो उसे हीराबाई के शब्द याद आते हैं "मारो नहीं"और वह फिर उसे याद कर मायूस हो जाता है।

अन्त में हीराबाई के चले जाने और उसके मन में हीराबाई के लिए उपजी भावना के प्रति हीराबाई के संवेदना से विगलित ह्रदयाकाश से विदा लेने के बाद उदास मन से वो अपने बैलों को झिड़की देते हुए तीसरी क़सम खाता है कि अपनी गाड़ी में वो कभी किसी नाचने वाली बाई को नहीं ले जाएगा। इसके साथ ही फ़िल्म खत्म हो जाती है।
मित्रों, क्या यह कहानी जिसके अंत में नायक - नायिका का विछुड़न हो, फ़िल्म के व्यावसायिक रूप से सफल या हिट होने के उन दिनों के फॉर्मूले पर फिट बैठता था? यह प्रश्न बार - बार मन में उठता है.  व्यवसायिक अनुभव की कमी के बावजूद शैलेन्द्र ने एक असफल प्रेम पर आधारित साहित्यिक कृति को सेलूलाइड पर उतारने की हिम्मत की, इसे भगीरथ के गंगा को ज़मीन पर उतारने जैसा ही महत कार्य कहा जा सकता है.  इस कहानी में शैलेन्द्र को एक कविता की बहती धारा दिखी होगी, तभी वे उस दुर्गम पथ पर अथाह, असीम, अनंत हिम्मत के साथ बढ़ गए.
कहा जाता है कि कवि शैलेन्द्र ने जब राजकपूर के समक्ष हिरामन की मुख्य भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा, तो वे तत्काल मान गए. यह शैलेन्द्र के प्रति उनके सम्मान का ही प्रतिफल था. लेकिन उन्होंने जब अपने अनुबंध की पूरी रकम की अग्रिम भुगतान की बात कही तो शैलेन्द्र सकपका गए. उन्हें अपने अनन्य मित्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. तब राजकपूर ने हंस कर कहा था, "निकालो मेरा पूरा पेमेंट एक रुपया."
शैलेन्द्र ने अपने को संयत किया और निर्माण की प्रक्रिया सन 1961 में आरम्भ हो गई. उसी समय राजकपूर ने अपनी पहली रंगीन फ़िल्म "संगम" भी आरम्भ कर दी थी. बासु भट्टाचार्य जो विमल राय के असिस्टेंट रह चुके थे, उन्होंने इसके निर्देशन का भार संभाला. सन 1961 में इस फ़िल्म को आठ महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इसके पूरे होने में पांच वर्ष लग गए. इस फ़िल्म के निर्माण के लम्बे खिंचे  जाने के कई कारण रहे. इसमें मुख्य किरदार निभा रहे कलाकारों का डेट नहीं मिलना, मध्यप्रदेश के बीना में फ़िल्म की शूटिंग शेडूल करना, और अचानक निर्देशक के बिना सूचना के शूटिंग से गायब हो जाना कुछ मुख्य कारण रहे. फ़िल्म निर्माण और पूर्ण होने में विलम्ब के कारण फ़िल्म का बजट जो आरम्भ में एक लाख (ब्लैक और व्हाइट) था, वह बढ़ता चला गया. कहा जाता है कि निर्देशक बासु भट्टचार्य को विमल राय की बेटी से प्रेम हो गया, जिसे विमल राय पसंद नहीं करते थे. बासु भट्टाचार्य बीच में फ़िल्म की शूटिंग छोड़कर कलकत्ता भाग गए. वहाँ उन्होंने उसी लड़की से कोर्ट मैरेज कर लिया. इसतरह फ़िल्म में विलम्ब होता गया. इससे पता चलता है कि फ़िल्म के निर्माण और समय सीमा के अंतर्गत पूरा होने के प्रति प्रोडूसर और गीतकार शैलेन्द्र, कथाकर और संवाद लेखक फणीश्वर नाथ रेणु, गायक मुकेश, संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन आदि जितने प्रतिबद्ध थे, उतना टीम के अन्य सदस्य शायद नहीं थे. शैलेन्द्र ने अपनी सारी कमाई झोंक दी, कर्ज भी लिए और जब फ़िल्म पूरी हुई तो उनके ऊपर कर्ज का भारी बोझ था, जो उनकी सांसों पर भारी पड़ता गया. लेकिन यह सही नहीं है. फ़िल्म की दुनिया या किसी भी अन्य व्यवसाय में कर्ज भी उसीको मिलता है, जिसकी विश्वसनीयता होती है. शैलेन्द्र उस समय सबसे अधिक पैसे अर्जित करने वाले गीतकारों में थे. इसलिए कर्ज से मुक्त होने में उन्हें कोई अधिक समय नहीं लगता. फिर वे किस व्यवहार से आहत थे कि उन्हें उसकी कीमत अपनी सांसों को देकर चुकानी पड़ी. फ़िल्म के अंत को राजकपूर बदलना चाहते थे. वे इसे दुखान्त नहीं, सुखांत बनाना चाहते थे. लेकिन यह न शैलेन्द्र को और न ही फणीश्वर नाथ रेणु जी को ही मान्य था.
शैलेन्द्र को फ़िल्म निर्माण से जुड़े उनके अपने लोगों ने भी ठगा. फ़िल्म निर्माण के व्यवसाय से अपरिचित वे सबों की बातें मानते चले गए. कहा जाता है न कि अपनों का घाव बड़ा गहरा होता है. आपका विश्वास जहाँ टूटता है, आपका दिल भी टूटता है. शायद हिरामन का दिल भी ऐसे ही टूटा होगा. हीराबाई हिरामन के निश्छल, निष्कलुष प्यार से प्रभावित और द्रवित होने पर भी अपनी भावनाओं को उसपर प्रत्यक्षतः अभिव्यक्त नहीं कर पायी.
और अंत में जब वह हिरामन से बिछुड़ती है, तो उसका हृदयबेधक वाक्य

"महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद लिया है, गुरु जी!"  दर्शक के दिल के टुकड़े - टुकड़े कर देता है.
कितनी बेबसी है, इस वक्तव्य में। बाजार सजा है, खरीददार जिगर भी खरीद रहे है और जिगर के अंदर की भावनाओं को भी इंजन से भाप के साथ निकलती सीटी की तरह उड़ा  दे रहे हैं। किसका क्या चिथड़े - चिथड़े बिखर रहा है, किसकी चिन्दियाँ कहां उड़ रही हैं, किसके तीर किसके जिगर के पार हो रहे हैं, किसका वार किसको लहुलुहान कर रहा है, इससे उसे क्या मतलब? 
यह कहानी है उस फ़िल्म की जो उसके प्रोडूसर की साँसों के चुक जाने बाद सुपरहिट हो गई. जबकि शैलेन्द्र के जीवन काल में कोई भी वितरक इस लीक से हटकर बनी फ़िल्म को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. यह डिब्बे में बंद होने ही वाली थी कि शैलेन्द्र की आँखें इसे इस स्थिति में देखने के पहले ही बंद ही गईं.
उसके बाद तो फ़िल्म ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कई पुरस्कार प्राप्त किए. इस फ़िल्म के साथ शैलेन्द्र मरकर भी लोगों के दिलो दिमाग़ में जी उठे...
उनकी स्मृतियों को सादर नमन ❗️

ब्रजेन्द्र नाथ 

Friday, November 25, 2022

मैं यायावरी गीत लिखूँ (कविता)

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मैं यायावरी गीत लिखूँ


मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।
मैं तितली बन फिरूँ बाग में,
कलियों का जी न दुखाऊं।
गुंजन करुँ  लता-द्रुमों  पर,
उनको  कभी ना  झुकाऊँ।


मैं करुँ मधु - संचय और मधु-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।

मैं नदी,  सर्पिल पथ से
इठलाती-सी बही जा रही।
इतने बल कमर में कैसे
कहाँ- कहाँ से लोच ला रही?


मैं उफनाती, तोड़ किनारे को उन्मुक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मेरे गीत उड़े  अम्बर में,
जहां पतंगें उड़ती जाती।
जहां मेघ सन्देश जा रहा,
यक्ष - प्रेम में जो मदमाती।


उसके आंगन में बरसूं  और जल-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

गीत तरंगें चली लहरों पर
कभी डूबती, कभी उतराती।
कभी बांसुरी की धुन सुनने
यमुना तट पर दौड़ी जाती।


मैं नाचूं गोपियों संग और स्नेह-रिक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं जाउँ संगम - तट पर
धार समेटूं  आँचल में ।
मैं चांदनी की लहरों पर
गीत लिखूं, हर कल कल में।


मैं झांकूँ निराला निलय में, छंद मुक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं घूमूं काशी की गलियां,
पूछूं तुलसी औ' कबीर से।
बहती गंगा से बीनो तुम
शब्द शब्द शीतल समीर से।


उनके छंदों  को दुहराउँ, शोध-युक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

उड़ती  रहे धूल मिट्टी की,
शहनाई पर हो नेह राग।
गीत लिखूं औ' तुम टेरो
अंतर के उर्मिल अनुराग!


अणु-वीणा के  सुर गूंजे और बोध युक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।
©ब्रजेन्द्रनाथ

इस कविता को मेरी आवाज में यूट्यूब के इस लिंक पर सुनें. चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें :



Thursday, November 3, 2022

उदधि है अपार नाविक ले चल पार (कविता) #प्रेरक

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#प्रेरककविता




 








नाविक ले चल पार 

उदधि है अपार, असीम है विस्तार,
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!

आँधी में, हवाओं में कैसे तेरा बस चले?
धाराएँ प्रतिकूल हों, कैसे तेरा बस चले?
हिम्मत भरो अपार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

नाव चलाओ साथी मेरे, लहरों से चलो खेलें,
उमंगों की ऊंचाइयों पर, उर के बंध खोलें।
नेह - रथ पर सवार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

क्षितिज पर इंद्रधनुष, रंगों का लगा मेला है,
साथी चलो मेघ संग, बूंदों का लगा रेला है।
किसका है इंतजार,  नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल  पार!!

तप्त ह्रदय आँगन में, स्नेह की बौछार  करो,
प्लावित हो जाये मन, तृप्ति का संचार करो.
खिल जाये बहार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

लहरों के पार लक्ष्य है, तूफानों से क्या डरना है,
आगे बढ़ते जाना है, मंजिल पर ही दम लेना है.
टूटे ना जोश का तार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

@ब्रजेन्द्र नाथ

कविता मेरी आवाज में इस लिंक पर सुनें :
https://youtu.be/E62rpJNb_Ak




Friday, October 21, 2022

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ (कविता) #दिवाली

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#दिवालीपरकविता 








पहले अंतस का तमस मिटा लूँ

तब बाहर दीपक जलाने चलूँ.


गम का अंधेरा घिरा जा रहा हैं,

काली अँधेरी निशा क्यों है आती.

कोई दीपक ऐसा ढूढ़ लाओ कहीं से

नेह के तेल में जिसकी डूबी हो बाती.

अंतस में प्रेम की कोई बूंद डालूँ

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.


इस दिवाली कोई घर ऐसा न हो,

जहाँ ना कोई दिया टिममटिमाये.

इस दिवाली कोई दिल ऐसा न हो,

जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाये.

अंतर्वेदना से विगलित हुओं के, 

आंसू की मोती छिपाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ, 

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


क्यों नम हैं आँखें, घिर आते हैं आंसू,

वातावरण में क्यों छाई उदासी?

घर में अन्न का एक दाना नहीं हैं,

क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?

अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,

उठा लूँ, गले से लगाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


तिरंगे में लिपटा आया जो सेनानी,

शोणित में जिसके दिखती हो लाली.

दुश्मन से लड़ा कर गया प्राण अर्पण

देश में जश्न हो, सब मनायें दिवाली.

सीमा में घुसकर, अंदर तक वार करके,

दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


धुआं उठ रहा हैं, अम्बर में छाया,

तमस लील जाए, ना ये हरियाली.

कम हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाएं,

प्रदूषण मुक्त हो, मनायें दिवाली.

स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य ममता

को दिल में गहरे बसाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


सनातन हमारी है शाश्वत धारा

युगों से इसे ऋषियों ने संवारा.

इसकी ध्वजा गगन में उठाएं.

यही आज का है कर्तव्य हमारा.

दुश्मन जो, आ जाये मग में

उसको धरा से मिटाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.

©ब्रजेन्द्र नाथ



Thursday, October 13, 2022

पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है (कविता)

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पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है

वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।
पिता नीली छतरी का वितान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.


वह परिवार के लिए ही जीता है।
परिवार के लिए हर गम पीता है।
पिता सब फरमाइशें पूरी करता है.
सब कुछ करता, जो जरूरी होता है।
पिता न जाने कहाँ कहाँ होता है,
पिता हमारा सारा जहाँ होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।
वह आंसुओं को पलकों में रोक लेता है.
वह आँखें चुराकर कोने में सुबक लेता है.
वह खुशियों का मुकम्मल जहान होता है.
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

जब पिता है, तो हमारा अस्तिव है,
जब पिता हैं, तो हमारा व्यक्तित्व है।
जब पिता है, तो हम विस्तार होते हैं।
जब पिता हैं, तो हम साकार होते हैं.
जब पिता है, तो हम सनाथ होते हैं.
जब पिता है, तो हम विश्वनाथ होते है.
वह हमारी उपलब्धियों का प्रतिमान होता है,
वह हमारी आकांक्षाओं की उड़ान होता हैं।

©ब्रजेंद्रनाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें :


(सारे चित्र  कॉपीराइट फ्री गूगल से )

Saturday, September 24, 2022

अमृतमयी माँ, हमें प्यार देना (कविता ) #maa Durga

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अमृतमयी माँ, हमें प्यार देना.

स्वारथ में हम रत हैं हमेशा,
अपने ही बारे में सोचे हैं निशदिन.
बुद्धि पर छाई घनी विकृति को,
प्रक्षालित करना माता प्रतिदिन.

बालक हैं तेरे हमें दुलार देना
करुणामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

हमें शक्ति देना लडूँ राक्षसों से,
दशानन  दुश्चकरों  में  फाँसता है,
पाकर अकेली  माता सीता को
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा  लाँघता है.

हमें शौर्य की तू तलवार देना.
शक्तिमयी माँ हमें तार देना.
अमृत....

महिषासुर फिर रणमत्त होकर
सत्य सनातन पर घात करता.
रक्तबीजों से छाया घनमंडल,
धर्माचरण की ध्वजा ध्वस्त करता.

हमें फरसे की तू धार देना.
शौर्यमयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

निकल पड़े हम  करने को रक्षा
केसरिया बाना फहराते  हुए.
कोई भी पापी मिल जाये मग में,
उसको ठिकाने लगाते हुए.

सत्य - समर्थित संसार देना.
श्रद्धामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

प्रकृति के दोहन से दूषित हुए
चराचर जगत को बचाएंगे हम.
शपथ में हमारी साक्षी बनो माँ
धरा को हरा फिर बनायेंगे हम.

शुद्धता शुचिता का विचार देना
विद्यामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

सीमा पर दुश्मन रहता घात में,
करता अतिक्रमण भूखंडों पर.
काल भैरव हमें बना देना माँ
नर्तन करूँ उनके नरमुण्डों पर.

शिराओं में रक्त का संचार देना.
कल्याणमयी माँ हमें तार देना.
अमृत...


साधना क़े पथ पर सघन शक्ति देना,
भावना क़े पथ पर भ्रमर - भक्ति देना
तपस्या में लक्षित हो तप की तितीक्षा
प्रखरता की हो प्रबलतम परीक्षा.

बालक हूँ तेरा अंक में प्यार देना
ममतामयी माँ हमें तार देना.
अमृतमयी...

©ब्रजेन्द्र नाथ
यही कविता मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर मेरी आवाज में सुनें :




















माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...