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#BnmRachnaWorld
#chhanvkasukh : यह हास्य - ब्यंग्य की रचना मेरी पुस्तक "छाँव का सुख" में सम्मिलित की गई है.
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#chhanvkasukh : यह हास्य - ब्यंग्य की रचना मेरी पुस्तक "छाँव का सुख" में सम्मिलित की गई है.
मेरी लिखी कहानी संग्रह "छांव का सुख" प्रकाशित हो चुकी है. सत्य प्रसंगों पर आधारित जिंदगी
के करीब दस्तक देती कहानियों का आनंद लें.अपने मन्तब्य अवश्य दे.
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ठगाने का संकल्प
मैं संकल्प
- विकल्प के बीच
नहीं झूलता हूँ। मैंने
रात में ही
निस्चय कर लिया
था। आज
के दिन को
यादगार बना के
ही रहूंगा। इससे मुझे
कोई नहीं रोक
सकता। इससे मुझे
सिर्फ एक ही
आदमी रोक सकता
है , वह सिर्फ
मैं। और
मैं अपने को
रोकना नहीं चाहता। इसलिए
सवेरे उठते ही
मैंने जब अपने
हाथों को देखकर
कहा ,
कराग्रे
बसते लक्ष्मी, करमध्ये
सरस्वती,
करमूले स्थितौ ब्रह्मः, प्रभात
करदर्शनम्।
तो मैंने मन - ही
- मन यह निश्चय
भी दुहराया था
कि आज मैं
निकलूंगा ठगाने के
लिए या अपने
को ठगे जाने
के लिए पूर्णतया
समर्पित करने
के लिए। अपने
इस संकल्प को
और भी दृढ़ता
प्रदान करने के
लिए शौच - स्नानादि
से निवृत होने
के बाद
जब भगवान के
सामने पूजा करने
को बैठा तो
मैंने उनसे कातर
स्वर में प्रार्थना
की ," हे भगवन
,आज जो निश्चय किया
है उसमें मुझे
अवश्य सफलता मिले। आपने
अनेक भक्तों को
, जैसे संत तुकाराम,
नरसी मेहता, मीरा,
सूर, कबीर,तुलसी,
रैदास को इसी
कलयुग के ज़माने
में ठगा है, नहीं - नहीं
ठगाते रहने की
संकल्प - शक्ति दी है
, तभी तो वे
संत - शिरोमणि कहलाये।
उन्हें अतिसाधारण से अति
विशिस्ट बना दिया।
कम - से
- कम मुझ अति
साधारण को अति
साधारण तरीके से, अति
सहज रास्ते पर
आगे चलकर, अति
निम्न कोटि के
ही भक्त बन
जाने दो और
ठगाने दो। आप तो
अपनी मोहिनी मूरत
, सोहिनी सूरत से
अनेकों को ठगते
रहे हैं या
जो अत्यंत अंतरतम
में आपको अनुभव
करते है वे
ठगे - से रह
गए हैं , तो
क्या मुझ अकिंचन
को ठगाने का लाभ
प्राप्त करने का
सुयोग नहीं उपलब्ध
कराएँगे , प्रभु?"
मैंने ईश्वर को
मन - ही - मन
धन्यवाद दिया क्योंकि
मुझे लगा कि
उन्होंने मेरी प्रार्थना
स्वीकार कर ली
है। क्योंकि
मैं अपने में
अतुलित बल के
संचार का अनुभव
कर रहा था
जैसे हनुमान जी
को जामवंत जी
ने कहा हो
,'का चुप साध
रहे बलवाना ' और
'राम काज हेतु
तव अवतारा ' और
हनुमान जी समुद्र
लाँघ गए एक
ही छलांग में। मैं
भी निकल पड़ा
आज ठगाने के लिए
यानि ठगे जाने के
लिए......। मैंने
आज के पंचांग
में भी देखा
था की राहु
काल का समय
दिन में १०
बजे से १२
बजे तक है। इसलिए
मैं उसी समय
निकला ताकि मेरे
ठगाने में राहुकाल
का भी योगदान
उसी दिशा में
हो और मेरे
ठगाने का काम
बनता रहे।
मैं अपनी कार से निकला। राश्ते में पेट्रोल पंप मिला। मैं वहां पेट्रोल भराने के लिए गाड़ी खड़ी की। वहां
कोई भी लाइन नहीं थी। मेरी एकलौती कार पेट्रोल
भराने के लिए खड़ी थी। यहाँ
ठगाने का एक सुनहरा मौका इससमय यानि ऑफिस जाने के भीड़ - भाड़ के समय होता है जब आप मीटर
नहीं देख रहे होते हैं बल्कि पीछे वाले के हॉर्न की आवाज के साथ आपका दिमाग कहीं और
होता है। तो आपने अगर जीरो नहीं देखा तो पेट्रोल
भरने वाले से ठगाने की पूरी संभावना होती है। मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है। आज तो ये नहीं हो सका इसलिए मैं जरा निराश हुआ क्योंकि
मेरा संकल्प पूरा होता हुआ नहीं दीख रहा था। मैं अपने ठगाने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहता
था। मुझे थोड़ा संतोष इससे मिला कि आगे ठगाने
के और भी मौके हैं। यह तो शुरुआत है। मेरी
कार में पेट्रोल भरना शुरू किया गया। पेट्रोल
भरने वाले लड़के को पेट्रोल मारने की नायाब कला का कामयाब प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त होता है। वे अगर पेट्रोल भरने के दरम्यान हैंडल से पेट्रोल के फ्लो को दो तीन
बार थ्रॉटटल करें तो समझ लें आपका तीन - चार
पॉइंट पेट्रोल मार लिया गया। इसके अलावा भी
उनके पेट्रोल मारने के अन्य कई तरीके होते होंगे जो मुझे भी नहीं मालूम। लेकिन आज तो गजब हो गया। पेट्रोल भरने वाले लड़के ने अनवरत प्रवाह स्थापित
रखते हुए पेट्रोल भरा। साथ ही मैंने देखा की
उतने ही पैसे में उसने ज्यादा पेट्रोल भर दी।
मेरे आस्चर्यमिश्रित दृष्टि से देखने पर उसने कहा था , ' सर , कल रात से पेट्रोल ढाई रुपये प्रति लीटर सस्ता हो गया है। इसीलिये
आपको उतने ही रुपये में थोड़ा ज्यादा पेट्रोल मिला है। ' .... अरे..रे…।, ये क्या हो
गया? मैं तो ठगाने के लिए पेट्रोल भरवाने गया था। यहाँ तो शुरू में ही मेरी तकदीर ने
मेरी इच्छा पर आघात कर दिया और मैं ठगाते - ठगाते रह गया।
वहां से
मुझे बैंक जाना
था। बैंक
के पास गाड़ी
पार्क करने की
सोच रहा था। जैसा कि
अक्सर होता रहा
है बैंक के
पास पार्किंग स्पेस
नहीं रहने और
नहीं मिलने के
कारण वहां से
एक किलोमीटर दूर
गाड़ी पार्क करनी
पड़ती है। लेकिन आज मुझे
बिलकुल नजदीक ही पार्किंग
की जगह मिल
गयी। गाड़ी
पार्क कर मैं
सीढ़ियां चढ़कर बैंक
जो दूसरे माले
पर है , पहुंचा
तो समय ठीक
१० बजकर ०५
मिनट हुआ था। मैं
इस उम्मीद से
ऊपर गया था
कि बैंक तो
अभी खुला नहीं
होगा तो चलो
दूसरी जगह इन्तजार
करने से अच्छा
है कि उन्ही
सीढ़ियों पर इन्तजार
कर लिया जाय। इसी
बहाने और भी
इन्तजार करने वाले
लोगों से बातें
हो जायगी। लेकिन वहां जो
कुछ मैंने
अपनी आँखों से
देखा उसे देखकर
मेरी आँखे देखती
रह गयी। यह क्या
? बैंक के मुख्य
द्वार का ग्रिल
वाला दरवाजा खुला
था जो अक्सर
साढ़े दस बजे
तक बंद रहता
था। मैंने
ऑंखें मलकर फिर
घड़ी को हिलाडुलाकर
फिर घड़ी देखी। घड़ी चल
रही थी और
समय वही था
जो मैंने अभी
से ठीक थोड़ी
देर पहले देखा
था। बैंक
के सारे बाबू
(ऑफिस की रानी
यहाँ बाबू कहलाते
हैं ) अपनी - अपनी
जगहों पर बैठे
ग्राहकों का इंतज़ार
कर रहे थे। मैं
इसी समय पहले
जब भी आया
हूँ तो बैंक
के कैशियर और
बाबुओं को सवा
दस बजे के
बाद धीरे - धीरे
बारी - बारी से
बैंक में घुसते
देखा है मानो
अगर थोड़ा पहले
आ गए तो
सबसे बड़ा पापी
होने का दोष
लग जायेगा। लेकिन आज तो
सारे ही दोष
- ग्रहण करने को
तैयार बैठे थे
और ग्राहकों का
इन्तजार कर रहे
थे। जो
पहले उल्टा होता
था यानि ग्राहक
बाबू लोगों का
इन्तजार किया करते
थे। मैं
दूसरा या तीसरा
ग्राहक रहा होऊंगा। मैंने
सिक्योरिटी से दबे
स्वर में पूछा
था , "क्या बात
है आज बाबू
लोग बड़े सवेरे
से ग्राहकों की
सेवा में डटे
है। " उसने बस
मुस्कराकर रह जाने
को ही अपना
जवाब समझने की
समझाईस मेरी
ओर फेंकी थी। मैं
भी आगे कोई
सवाल करने की
जुर्रत नहीं जुटा
सका।
साढ़े दस तक जब ग्राहकों की संख्या अच्छी (सीज़बल)
हो गयी तब बैंक मैनेजर ने घोषणा की ,"आप सभी कस्टमर्स से रिक्वेस्ट है कि आपलोग
कहीं नहीं जाइये। आज आप लोगों की उपस्थिति
में हमारी रीजनल मैनेजर साहब केक काटेंगे। " यह क्या हो रहा है ? मुझे समझ नहीं
आ रहा था क्योंकि वहां वह सबकुछ हो रहा था जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। बड़ा - सा केक आया। उसी समय एक और ओफ्फिसरनुमा अफसर टाई लगाये हुए आये। पता चला की ये उस बैंक के रीजनल हेड हैं। उन्होंने केक काटा और छोटे - से अल्प शब्दों
में बैंक के इस ब्रांच को शुभकामनायें दी।
तब कहीं मुझे पता चला कि आज इस ब्रांच
का वार्षिक जन्मदिन है। मैंने भी केक , बिस्कुट , सॉफ्ट ड्रिंक लिया और
ठगाने की बात लगभग भूल ही गया था। फिर स्वयंम
को चिकोटी काटते हुए बात याद दिलाई , 'क्यों बेटे , ठगाने चले थे आज और केक सॉफ्ट ड्रिंक
के मजे ले रहे हो ' मैं स्वयं ही स्वयं के सामने झेंपता हुआ सोचता रह गया। …मै यहाँ
भी, जहाँ हमें घंटो लम्बी लाइन में खड़ा रहना पड़ता था , सिंगल विंडो सर्विस होने पर
भी , कभी स्क्रॉल के लिए लाइन , फिर पैसे जमा करने एक बार और लाइन में लगना पड़ता था। लेकिन आज तो सब काम इतनी सुविधा से हो रहा था कि
मन - ही - मन में बड़ी असुविधा महसूस हो रही
थी , क्योकि हम इतनी सुविधाजन्य सुविधा के
अभ्यस्त नहीं थे। लगा कि किसी और ज़माने या
युग में तो नहीं पहुँच गए। हे भगवान , यहाँ
भी मैं नहीं ठगा सका, न वक्त के द्वारा और न इस ऑफिस की सेवा - विलम्ब - प्रदाता -
पद्धति द्वारा।
वहां से निकलकर मैं लाइफ इन्शुरन्स का प्रीमियम
जमा करने गया। यह क्या? काउंटर पर कोई लाइन नहीं।
मैं बाहर आकर फिर बोर्ड पढ़ा , हाँ भई, इन्शुरन्स ऑफिस ही है यह। हालाँकि
मैं प्रीमियम सिस्टम द्वारा ऑनलाइन भी जमा कर सकता हूँ। लेकिन मेरे एक मित्र ने मुझे मुफ्त परामर्श दिया
था ,”प्रीमियम आपको भी ऑफिस में जाकर ही जमा करना चाहिए , इसलिए नहीं कि मैं भी ऑफिस
जाकर ही जमा करता हूँ बल्कि इसलिए कि ऑफिस
जाते हुए , आते हुए ऑफिस में या ऑफिस के बाहर कुछ परिचित - अपरिचित से मिलने - जुलने,
बातचीत करने का मौका मिलेगा। और आप तो साहित्यिक
रूचि रखने वाले पुरुष हैं। हो सकता है आपको
कोई वाकया या प्रसंग ऐसा मिल जाये जिसे आप कहानी में फिट कर सकते है या परिवर्तित कर
कोई नयी कहानी गढ़ सकते हैं।“ वैसे मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया हूँ कि उनका यह
परामर्श मुझे मेरी परेशानी थोड़ी बढ़ा देने के लिए था या मुझे सही में मदद करने के लिए। उनका यह परामर्श मैं अबतक मानते हुए प्रीमियम ऑफिस
में जाकर काउंटर पर लाइन लगकर ही जमा करता हूँ।
मेरी कई कहानियों का प्लाट या कहानी के प्लाट के अंदर प्लाट गढ़ने की सामग्री
मिल जाया करती है। कभी - कभी आपके (अ) शुभचिंतक
मित्र के भी गलती से जानबूझकर दिए गए गलत परामर्श भी गलती से सही
निकल जाते है। मैं सही में इन्शुरन्स ऑफिस में ही काउंटर पर खड़ा था और कोई लाइन नहीं
थी। आश्चर्य हुआ। यहाँ भी काम इतनी जल्दी से हो जाएगा , विश्वास नहीं
हो रहा था। मैं कहाँ ठगा गया , यह सोचने का
भी वक्त नहीं मिल रहा था क्योंकि मैं कहीं ठगा ही नहीं रहा था। यह क्या हो गया है ज़माने को!!! कोई एक अदना - सा
अति साधारण आदमी के ठगाने की तुच्छ - सी इच्छा को पूरी करने की किसी में तमन्ना नहीं
जाग रही थी, न वक्त को, न ऑफिस के लोगो को, न ऑफिस की लाइन को!!!
मैं वहां से ठेले वाले के पास फल खरीदने गया,
पूरी गारंटी के साथ कि यहाँ तो ठगाना निश्चित
है। ठेले पर जो फल बेचते है और जो दूकान पर
बेचते हैं , उनमे तौल का अंतर होता है, यह एक अकाट्य सत्य है। इस सत्य के सत्यापन की किसी से जरूरत नहीं है। तो मेरे ठगाने की इच्छा की पूर्ति यहाँ तो होनी
ही है , ऐसा सोचकर मैंने ठेले वाले से एक किलो आम खरीदे। यह भी नहीं पूछा कि एक किलो के पूरे एक
किलो है न। ठेले वाले ने ही बिना मेरे पूछे कहा ," बाबू , ठेका वाला समझकर यह
मत सोचियेगा की मैं आपको तौल में कम दे रहा हूँ।
देखिये मेरे पास भी डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक तराजू है। मेरा चैलेंज है की आप इसको जहाँ भी तौलवा लें, अगर
एक किलो से काम हुआ तो मैं आपको दो किलो दूंगा। '
मैंने बड़ी विनम्रता
से कहा ,"आपको मैंने कुछ कहा क्या ?" ठेलावाला मुस्कराया , लेकिन मैं तो
मुरझा गया न। मैंने यह सोचकर ही खासकर ठेले
पर से बिना चुने आम लिया ताकि वह मुझे दो तरह से ठगे- एक तौल में कम देकर , दूसरे कुछ
सड़े आम को अच्छे आमों के साथ मिलाकर। मेरी
संशयात्मक स्थिति को भांप कर वह फिर बोला," बाबू, आमों को भी चेक कर लीजिये। अगर एक आम भी ख़राब निकला तो एक - के - बदले दो आम
ले जाइये। उसके आत्मविश्वास ने मुझे अंदर तक
हिला दिया। हे भगवान, यह हो क्या रहा है? मैं
अपनी ठगीच्छा (ठगाने की इच्छा) पूरी करने के लिए ठेले पर से फल लिए। वहां भी घोर निराशा
ही हाथ लगी। मेरी इच्छा पूरी होते - होते रह गयी। ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या दुनिया
से अचानक परस्पर ठगने - ठगाने का ब्यापार ख़त्म हो गया है? मैं विश्वास ही नहीं कर पा
रहा था।
देख
तेरे संसार की
हालत क्या हो
गयी भगवान ,
कितना बदल गया
इंसान.
कल तक जो
ठगा करते थे,
आज उनका बदल
गया ईमान,
वे बन गए
इंसान,
कितना बदल गया
ये जहान,
कितना बदल गया
इंसान।
ऐसे गुनगुनाने
का मन हो
रहा था लेकिन
तीर घुसा जा
रहा था मेरे
कलेजे में, कलेजा
छलनी हो रहा
था, क्योंकि मेरे
ठगाने की इच्छा
अधूरी रह रही
थी।
मैं ठगाने की इच्छा लिए ऑफिस - ऑफिस , मार्केट
- मार्केट, बाजार - बाजार , ठेला - ठेला घूमते - घूमते थक चूका था। कभी - कभी आपके साथ जब वो - वो होने लगता है जो
- जो आपने कभी सोचा ही नहीं, चाहे अच्छा या बुरा तो आपके साथ अच्छा होना भी आपको खलने
लगता है। आपमें ऊर्जा का अभाव होने लगता है। जैसे अगर निरंतर प्रदूषित खाद्य भक्षण करने वाले
को शुद्ध दूध, दही, घी खिला दिया जाय तो उसे
बदहजमी या डेसेंटरी होने लगती है और ऊर्जा समाप्त होने लगती है। मेरे साथ भी
कुछ ऐसा ही हुआ। बुझे मन से वापस घर आया, खाना खाया और लेटने के बहाने सोचने लगा। ऐसा क्यों हो रहा है? मैं ठगा क्यों नहीं रहा हूँ? क्या मेरा इस ज़माने का या पूर्व ज़माने का कोई पुण्य
मुझे ठगाने नहीं दे रहा है? फिर मैंने दृढ निश्चय किया कि ऐसे पुण्य करने की इच्छा
होने पर भी मैं उनसे तौबा करूँगा।
मैंने कितनी दुआएं मांगी ईश्वर से और एक सच्चे
, ईमानदार इंसान की तरह वे सारी दुआएं पड़ोसी और मोहल्ले वालों के लिए भी मांगी। पड़ोसी और मोहल्ले वालों के लिए मांगी गयी वे दुआएं
कबूल हो गयी और मेरे लिए वह दुआ, दुआ ही रह गयी।
कुछ वर्ष पहले की ही बात है , मैंने ईश्वर से प्रार्थना की थी , " हे ईश्वर, मेरे पड़ोसी के लड़के , लड़की
का आई आई टी एंट्रेंस परीक्षा या प्री मेडिकल परीक्षा में चुनाव हो जाय और मेरे बच्चे
का भी हो जाय।" मैंने एक सीधे - साधे
सबका भला सोचने वाले, सबका ख्याल रखने वाले इंसान की तरह पड़ोसी के लड़के या लड़की को
प्राथमिकता में पहले रखा और फिर अपनी संतान को रखा। भगवान ने सुनी और खूब सुनी। मेरी प्राथमिकता के
अनुसार पड़ोसी के लड़के - लड़कियों का चुनाव हो गया और मेरे लड़के , लड़की का नहीं हुआ। यहाँ मैं ठगा रह गया और ठगाने का मेरा संकल्प दुगना
हो गया।
वैसा ही जहाँ मैं काम करता हूँ वहां मेरे प्रमोशन
और इन्क्रीमेंट को लेकर होता रहा है। मैं अक्सर
बॉस के लिए पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन तैयार करता हूँ। काफी मेहनत करनी पड़ती है उसपर। इधर - उधर से डेटा खंगाल कर बॉस के बताये
अनुसार टू द पॉइंट अर्रेंज करने के बाद कही
वह प्रेजेंटेशन प्रेसेंटेबुल बनता है। बॉस
उस प्रेजेंटेशन को दिखला कर अपनी विद्वत्ता और विश्वसनीयता पैदा करने में सफल हो जाते
हैं। उनको इन्क्रीमेंट, प्रमोशन और अच्छी जगह
स्थानांतरण भी मिलता है। वे दूसरे विभाग में स्थानांतरित होते - होते मुझे
आश्वासन देते जाते है ,"मैं आपकी सिफारिश आनेवाले बॉस से करके जा रहा हूँ। आपको इसबार इन्क्रीमेंट और प्रमोशन दोनों अवश्य
मिलेगा। " मैं इस आश्वासन के साथ फिर दूने उत्साह से काम में लग जाता हूँ। ठगाने के एक और दौर के लिए तैयारी में जुट जाता
हूँ ताकि साल - दो - साल के अंत में फिर कोई इन्क्रीमेंट और प्रमोशन का आश्वासन मिले
और मैं फिर ठगाने के आनंद में ओत - प्रोत होता हुआ अपने प्रोफेशनल कैरियर की नाव को
वक्त के धार (या मंझधार ) के हवाले करता रहूँ।
ठगाने के इसी
आनंद को भक्त
सुदामा ने ताउम्र
प्राप्त किया। वे भगवान
श्री कृष्ण के
बाल - सखा थे
. श्री कृष्ण द्वारिकाधीश हो गए। श्रीकृष्ण
के ध्यान में
मग्न सुदामा और
उनका परिवार गरीबी
की मार झेलता
हुआ भी भक्ति
के अटल मार्ग
पर दृढ विस्वास
का दामन थामे रहा। उनकी
श्रद्धा में थोड़ी
भी कमी नहीं
आयी। भले
ही दरिद्रता के
साथ उनका अन्योन्याश्रय
सम्बन्ध स्थापित हो गया। यानि
वो दरिद्रता के
लिए बने थे
और दरिद्रता उनके
लिए। 'कभी
तो सुध लोगे
भगवन' ऐसे
लोग कितनी आसानी
से ठगे जाते
हैं। कभी कभी
तो लगता है
कि ठगने के
धंधे की शुरुआत
भगवान ने ही
की होगी। भगवान के द्वारा
जो ठगे गए
वे दीन - हीन,
दरिद्र, दुःख - क्लेश में
जीवन बिताते हुए
संत लहलाये या
संत के नाम
से महिमामंडित हुए। और
जो नहीं ठगाए
या जिन्होंने भगवान
को ही ठगना
चाहा वे हिरण्यकशिपु,
हिरण्याक्ष, भस्मासुर, महिषासुर,वृत्रासुर,
मधु- कैटभ , रक्तबीज,
जालंधर, रावण कहलाये
और ठाट से अपने
जमाने के वर्तमान को जीया
और ईश्वर के
हाथों मृत्यु को
प्राप्त हुए। अरे
भई, ये तो
सच ही है
कि ईश्वर ही
सबको जीवन
देते है और
वे ही मृत्यु
प्राप्त कराते हैं। यानि कि
जिन्होंने ईश्वर को ठगा
उन्हें मृत्यु प्राप्त कराने
के लिए ईश्वर
को साक्षात,ख़ुद आना
पड़ा।
तो मेरी
समझ में जबसे
मानव सभ्यता का
विकास हुआ है
तभी से ठगने
और ठगाने का
ब्यापार भी शुरू
हो गया। इसलिए डार्विन के
मानव सभ्यता के
विकास के सिद्धांत
'survival of the fittest' में अगर
'चीटर' जोड़ दिया
जाय तो वह
'survival of the fittest cheater ‘
हो जाएगा' जो
इस ब्यापार की
सच्चाई से मानव
- सभ्यता के विकास
के तंतुओं के
जुड़े होने को
स्थापित करता है। यानि
जो ठगने में
सबसे फिट वही
survive कर सका है
और आज के
समय में कर
सकता है। मुझे याद
नहीं जबसे मैंने
होश संभाला है
तभी से
मैंने देखा है
कि फिल्म जगत
की सुंदरियों में
जो सबसे सुन्दर
रही है हर
दशक में उन्होंने
उसी ब्रांड के
साबुन का उपयोग
किया है जिस
ब्रांड के साबुन
का उपयोग आजतक
इस ज़माने के
फिल्म जगत की
सुंदरियाँ करती रही
है। साबुन
के उत्पादक ने
सुंदरियों को ठगा
या सुंदरियों ने
उन्हें , यह तो
विशेष चर्चा जा
विषय हो सकता
है किन्तु इतना
तो अकाट्य सत्य
है की दोनों
ने मिलकर पिछले
कई दसकों से
ग्राहकों को और
इस्तेमालकर्ताओं को बखूबी
ठगा है। इसे इसतरह से
समझें कि कोई
भी इस्तेमालकर्ता आजतक
उस साबुन को
लगाकर वैसी सुंदरी
नहीं बना जैसी
सुंदरी विज्ञापनों में दिखाई
जाती है या
दिखाई जाती रही है।
आजतक कोई भी
ऐसा क्रीम या
साबुन नहीं निकला
है जिसने नाओमी
कैम्पबेल की त्वचा
को कटरीना कैफ
की त्वचा जैसा
रंग दे दे। जो
निखरा हुआ है
उसी में निखार
लाने का काम
ये सारे क्रीम
और साबुन करते
हैं। इसलिए
मेरी समझ में
यह एक साजिश
है ग्राहकों को
ठगने के लिए।
भगवान भी वही
काम करते हैं। जो
संपन्न है उसी
की सम्पन्नता और बढ़ा
देते है। ऐसा नहीं
था तो सुदामा
पूरी जिंदगी संत
बने सम्पन्नता का
इन्तजार नहीं करते
रहते। भगवान
श्रीकृष्ण ने उन्हें
सम्पन्नता तब दी
जब वे विपन्नता का दुःख
सहते - सहते बूढ़े
हो चुके थे। उससमय
उनके लिये सम्पन्नता
और विपन्नता का
कोई अंतर नही
रह गया था। वे
समभाव में
स्थित हो चुके
थे। नहीं तो
रावण जैसा छीनकर
अपने को संपन्न
बना लेते तो
कौन रोक लेता
उन्हें। उन्हें
ईश्वर - प्रेम और भगवद भक्ति ने दुर्बल
बना दिया था।
मैं तो कहता
हूँ कि इस
पूरे संसार का
ब्यापार ही ठगाने
के chain से
संचालित हो रहा
है। सुंदरियाँ कभी
कोल्ड ड्रिंक की
बोतल की गर्दन
को देखने को
कहती हैं, तो
कभी कीमती गैजेट्स
के इस्तेमाल करने
की सलाह देती
हैं. इस सलाह
के पीछे उस
ब्रांड और सुंदरी
के साझा प्रयास
द्वारा ग्राहकों की जेब
ढीली करने का
इरादा ही रहता
है। मैं
तो बहुत खुश
होता हूँ जब
ऐसे गैजेट्स की
कीमत बहुत अधिक
रखी जाती है। चलो
भई, मैं
तो अफ़्फोर्ड नहीं
कर सकता। मेरे इतने
रुपये तो बचे
साथ - ही - साथ
मैं ठगाने से
भी बच गया।
लेकिन मेरे ठगाने
की इच्छा की
पूर्ती नहीं हुयी। क्या
करता मन मारकर
रह जाना पड़ा।
मैं तो
अब कस्टमर यानि
ग्राहक का नाम
बदलने की अनुशंसा
करता हूँ। उसे कई
नामों से पहले
भी पुकारा जा
चूका है , मसलन
, कष्ट से मरनेवाला
या सीधे - सीधे
कष्ट से मर
इत्यादि। लेकिन मैं
कस्टमर यानि ग्राहक
को ठगेच्छु कहना
ज्यादा पसंद करूंगा। ठगेच्छु
यानि ठगाने की
इच्छा रखने वाला। सप्प्लायर
से लेकर होलसेल्लर
और रिटेलर तक
का पूरा चैन
ठगात्मकता का ही
विस्तार कहा जायेगा। पूरे
सेल्स - एडमिनिस्ट्रेशन को
ठग- विद्या के ही
एक अंश का
विस्तार और ब्यवहारिक
क्रियान्वयन का
अभिक्रम माना जा
सकता है।
मेरा यह
दिन जो बीता,
जब मैं ठगाने
के आनंद से
बंचित रह गया,
ऐसा ही दिन
सबका बीते। सबों
के ठगाने की
इच्छा पर थोड़ा
पानी ही नहीं
टैंकर का पानी
पड़ जाय।
पूरी रचना आप इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं.
http://yourstoryclub.com/short-stories-funny/sarcastic-hindi-story-thagane-ka-sankalp/
--ब्रजेंद्र
नाथ मिश्र , 25-06-2014
जमशेदपुर
1 comment:
This is a satire depicting the daily struggles that a common man has to face. Very interesting to read...
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