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Tuesday, October 22, 2019

माँ तुम्हीं मेरा संबल हो! (कविता)

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#poem spiritual#durgamaa

गत रविवार ता 20 अक्टूबर 2019 को अपराह्न 4 बजे से स्थानीय तुलसी भवन बिष्टुपुर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित "काव्य कलश" कार्यक्रम में मैनेअपनी कविता "माँ तुम्हीं मेरा संबल हो!" सुनायी। इस समारोह की अध्यक्षता मानद सचिव डॉ नर्मदेश्वर पांडेय जी ने की। इस कार्यक्रम को प्रभात खबर समाचार पत्र के चौथे पृष्ठ पर स्थान मिला है।




मेरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net पर मेरी आवाज में सुने, चैनेल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। तुलसी भवन में काव्य पाठ में शामिल सुधीजनों की तस्वीरों का भी अवलोकन करें:

माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
पड़ी रहीं जो पगडंडी पर,
पाँव तले हैं कुचली जाती।
मिट्टी टूटकर धूल बनी पर,
पथिक पाँव को वे सहलाती.
माँ, मेरा जीवन भी सार्थक,
काम आये उनके जो विकल हों,
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो।

मेरा चढ़ना, गिरना, उठना,
चल देना तूफानों में,
नीरव वन में, फुंकारों में,
सन्नाटों में, और दहानों में.
पार करूँ मैं उनको हरदम,
साहस मेरा अडिग, अटल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!


साधन बना मैं, स्वारथ - हित का,
मैं तो ठहरा सीधा- साधा।
लोगों ने रक्खी बंदूकें,
मेरे काँधे पर से साधा।
बचा लिया तूने माँ, मुझको,
तुम्ही बनी मेरा सतबल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!

मैं चल रहा उन राहों पर,
जहां हैं पंक और फिसलन।
जो गिर पडूँ, उठाना माँ तुम,
सुलझा देना मेरी उलझन।
तुम्हीं मेरे प्राणों में बहती,
धार निरंतर, गंगाजल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/HAVTZeh1lf8

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