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Thursday, October 24, 2019

जीने की चाह करें (कविता )

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आओ दोस्तों, थोड़ी अपनी भी परवाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।

कोई हाथ बढ़ाने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?
कोई हमें थामने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?

चाह नहीं इसकी अब भी,
पहले भी कभी नहीं रही,
मस्ती में जीवन कटता है,
कभी कमी भी नहीं रही।

ऐसे जीवन में मलंग
भी गीत जीत का गाता है,
कल का किसने देखा है,
आज सूरज से नाता है।

रातें कटती, करते बातें,
कभी चाँद, तो कभी सितारे,
आँखे झँपती, जगी हैं आंतें,
रिश्ते सारे स्वर्ग सिधारे।

ऐसे में क्या सोंचे, क्या कोई गुनाह करें?
मेल बढ़ाएं, खेल बढ़ाएं, चलो जीने की चाह करें।

मेरे मन में जगती आसें,
लहरों पर दौड़ें, पंख फुलाएं,
जंग जीतनी है, जीवन की,
क्षितिज पार से कोई बुलाये। 

वहां प्रेम का दरिया बहता,
ठिठुरन भरी नहीं हैं रातें,
पेट भरे की नहीं है चिंता,
रोज नई दावतें उड़ाते।

कल्लू, जददू, आओ, बैठो थोड़ी तो सलाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।
ब्रजेन्द्रनाथ 

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