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प्रकृति कर रही श्रृंगार है
सरस शुभ्र, फेनिल जल,
सरित - वारि प्रवाह अविरल
अरुण - किरणों का तरुओं
से हो रहा संवाद अविचल।
जीवनानंद ले रहा विस्तार है।
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।
पादपों की लंबी कतारें,
गगन को चूमती फुनगियाँ।
धरा ओढ़े पीत चूनर
मगन ज्यों प्यारी दुल्हिनियाँ।
स्वयं समष्टि कर रही संवार है।
प्रकृति नटी कर रही श्रृंगार है।
एकत्र जलराशि अतल तल
ले रहा विस्तार झील ।
अम्बर झाँक रहा दर्पण में,
घुल गयी है जल में नील।
करूँ नर्तन, कर रही विचार है।
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।
मलय पवन, शान्त विचरण
मादक फैल रही गंध है।
भ्रमर स्वर गुंजित प्रतिपल
पुष्प पर शोभित मकरंद है।
सप्तरंगों की छा रही बहार है।
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
मेरी इस कविता पर आदरणीय सुरेश दत्त पाण्डेय जी का फेसबुक पर लिखी गयी समीक्षा देने से मैं अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ:
मेरे फेसबुक वाल से 24 फरवरी 21को प्राप्त:
अखिल भारतीय साहित्य परिषद, जमशेदपुर द्वारा आयोजित "वासंती काव्य-गोष्ठी,"के आयोजन के लिए भाई वसंत जमशेदपुरी को साधुवाद।
कभी कथा-साहित्य के लिए पहचाने जाने वाले प्रियवर ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र इन दिनों शिद्दत के साथ काव्य-मंचों पर भी शिरक़त कर रहे हैं,यह सुखद है। वे वर्षों से साहित्य-साधना में लगे हुए हैं एवं नगर के वरिष्ठ रचनाकारों में शुमार होते रहने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत हैं।
ब्रजेंन्द्र की कविता "कर रही श्रृंगार", "वासंती-नवगीत की खुशबू लिए हुए है।प्रथम चार पंक्तियां पढ़ते हुए ही अपनी लयात्मकता का परिचय दे देती है-
संरस-शुभ्र, फेनिल-जल,
सरित-वारि प्रवाह अविरल
अरुण किरणों के तरुओं से
हो रहे संवाद अविरल ।
स्वयं समष्टि कर रही संवार है,
प्रकृति-नटी कर रही श्रृंगार है।"
क्या खूब लिखा है ब्रजेंद्र जी ने। शब्द कोमल है, प्रकृति-प्रसंगो के संगत एवं अनुकूल अपनी रागात्मकता बनाए रखते हैं। तत्सम शब्दों के उपयुक्त प्रयोग से कविता जीवंत बन पाई है।निराला-जयंती के लगभग रची इस कविता द्वारा प्रकृति का अभिनन्दन करने के साथ- साथ महाप्राण निराला को श्रृद्धांजलि अर्पित भी की है कविवर ने। बधाई ऐसी सुंदर कविता के लिए ब्रजेंन्द्र भाई को।
*सुरेश दत्त प्रणय।
18 comments:
बहुत ही सुन्दर सृजन।🌻
आदरणीय शिवम जी, नमस्कार👏!
आपके उत्साहवर्धक शब्द मुझे सृजन की प्रेरणा देते रहेंगें। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
वाह! पंतजी की विरासत की सुंदर अभिव्यक्ति!!!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को "नयन बहुत मतवाले हैं" (चर्चा अंक-3987) पर भी होगी।
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मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदारणीय डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक सर, नमस्ते!👏!
आपने मेरी इस रचना को कल के चर्चा मंच के लिए चयनित किया है, इसके लिए मैं हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीय, चर्चा मंच के माध्यम से अन्यत्र प्रकाशित नहीं होने वाले और कम पढ़े जाने वाले साहित्यिक रचनाओं के ब्लॉगों को पाठकों के लिए उपलब्ध कराने का अनवरत प्रयास आपके साहित्य के प्रति समर्पण और उसे जन - जन तक पहुंचाने का दृढ़ प्रयास ने ब्लॉगों को पुनर्जीवन प्रदान करने का महनीय कार्य किया है। हमें चर्चा मंच में शामिल किए गए सारे ब्लॉगों को अवश्य पढना चाहिए और टिप्पणी भी देनी चाहिए। मैं इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करता हूँ। आपका पुनः आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय विश्वमोहन जी, नमस्ते!👏!
आपने मेरी इस रचना को पंत जी की विरासत की कड़ी में जोड़कर मेरा उत्साहवर्धन किया है, इसके लिए आपका हृदय तल से आभार! मैं प्रकृति के महान चितेरे पंत जी के आसपास भी पहुँच सका तो मैं अपने को बड़भागी मानूंगा। आपका पुनः आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
प्रकृति नटी का सुंदर नयनाभिराम चित्रण
आदरणीय सर , छायावाद की कविताओं की याद दिलाती मनभावन सरस , सुकोमल शब्दावली से सुसज्जित प्रभावी रचना | पढ़कर बहुत आनंद हुआ | आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं|
प्रकृति विभिन्न रूप धर जीवन को संपूर्ण बनाती है -वसंत के शृंगार का तो कहना ही क्या!
वसंत के साथ प्रकृति का सुंदर चित्रण ।
बहुत प्यारा गीत ।
अभुत भाव कविवर के ।
प्रकृति के रूप का बहुत ही सुंदर वर्णन।
आदरणीया ज्योति जी, आपके उद्गार मुझे सृजन के लिए प्रेरित करते रहेंगे। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया संगीता स्वरूप जी, आपके उत्साहवर्धन सी अभिभूत हूँ। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया प्रतिभा सक्सेना जी, आपने मेरे सृजन में कोमल प्रकृति के भावों को समाहित करने के मेरे प्रयास को सराहा है, इसके लिए हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया रेणु जी, आपके उदगारों से अभिभूत हूँ। आपने मुझे सृजन के पथ पर आगे बढ़ने के लिए ऊर्जस्वित कर दिया है। आपका हॄदय तल से आभार । --ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीया अनिता जी, आपकी सकारात्मक टिप्पणी से मुझे सृजन की नई प्रेरणा मिल गयी है। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
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