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(एक ग़ज़लनुमा कविता)
जुगनू उगाते हैं
चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,
रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।
उन्हीं तस्वीरों पर रोया करते है लोग,
जीवन में जो दूसरों के काम आते है।
कोई तो सूरत होगी इस भीड़ में कहीं,
जिन आंखों से आप आंखें मिलाते हैं।
मैं भटकता हूँ नहीं, तिश्नगी में कहीं,
होगा कोई, जो प्यासे के पास जाते हैं।
कुछ लोग तो होंगे सफर में ऐसे भी,
जो दूसरों का बोझ अपने सर उठाते हैं।
चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,
रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।
©ब्रजेंद्रनाथ
11 comments:
वाह।
आदरणीय रवींद्र जी, मेरी रचना को 27 फरवरी के चर्चा अंक के लिए चयनित करने पर हृदय से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय शिवम पाण्डेय जी, मेरी रचना की सराहना के लिए हॄदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
वाह! लाजवाब रचना! सही कहा,
"उन्हीं तस्वीरों पर रोया करते है लोग,
जीवन में जो दूसरों के काम आते है।"
आदरणीय विश्वमोहन जी, आपके उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!
बहुत खूब , बधाई आपको !
प्रिय सतीश जी,आपकी सराहना के स्नेहिल शब्दों से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
कुछ लोग तो होंगे सफर में ऐसे भी,
जो दूसरों का बोझ अपने सर उठाते हैं।
लाजवाब ग़ज़ल । काश जुगनू उगा ही लेते ।
आदरणीया संगीता स्वरूप (गीत) जी नमस्ते!👏! आपने मेरी इस रचना पर बहुत अच्छी टिप्पणी दी है। आपके उत्साहवर्धन के लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,
रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।
उन्हीं तस्वीरों पर रोया करते है लोग,
जीवन में जो दूसरों के काम आते है।//
हरेक शेर अपने भीतर एक कहानी छिपाये हुये है।भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई और शुभकामनाएं आदरनीय सर 🙏
आदरणीया रेणु जी,मेरी इस रचना पर आपकी सटीक और सार्थक सराहना से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
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