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स्टोरी मिरर साइट पर 1 मई से 31 मई तक हर दिन दिए जाने वाले चित्रों पर मेरे द्वारा लिखी गई कविताएँ जिसके लिए मुझे यह प्रमाणपत्र मिला: इस साइट का लिंक इस प्रकार है:
https://storymirror.com/profile/6g3aqk4j/brajendranath-mishra/poems
21st May prompt Day 21।prompt 21 submission conf
चित्र: तिलश्मी चेहरे, भूतिया जैसे।
दाग छिपा लेते हैं लोग
चेहरे पर चेहरे लगा लेते हैं लोग।
असली चेहरा छुपा लेते हैं लोग।
यह जहाँ एक तिलश्मी जाल है,
कैसे - किसे यहाँ फँसा देते हैं लोग।
कोई चेहरा हँसता हुआ - सा है, मगर
उसके अंदर भी गम छुपा लेते हैं लोग।
आप के नाराज चेहरे से हमें याद आया,
छुपा कर भी बहुत कुछ बता देते हैं लोग।
उनकी पोशाक में जो झक्क सफेदी है,
'मर्मज्ञ' के दामन में दाग छिपा लेते हैं लोग।
©ब्रजेंद्रनाथ √
22nd May prompt Day 22।prompt 22 submission conf
चित्र: जर्सी में एक फुटबॉल लिए खिलाड़ी चला जा रहा है।
राही तू चलता जा
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
राहों पर कंकड़ - पत्थर,
टूट - टूटकर धूल बन गए।
वे सहलाती राही के
पैरों के नीचे फूल बन गए।
नहीं रहेगी थकन,
छाँव के नीचे बना है रास्ता।
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
चले चलो क्रीड़ागण की ओर
ध्येय प्राप्ति को मन संकल्पित।
तू रुकना मत, तू थकना मत,
कभी न हो तन व्यथित।
बाधाओं, अवरोधों से तुम,
जोड़ चलो एक रिश्ता।
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
सत्य शपथ ले, चले चलो तुम,
विजयपथ पर बढे चलो तुम।
अशुभ संकेतों से निडर हो,
रश्मिरथ पर चढ़े चलो तुम।
तन बज्र - सा, मन में शक्ति
झंझावातों में समरसता।
राही तू चलता जा
चलने से तेरा वास्ता।
©ब्रजेंद्रनाथ
23rd May prompt Day 23।prompt 23submission
Conf
चित्र: बड़ी सी तर्जनी जिसपर वोट देने के पहले स्याही लगायी जाती है।
मौसम का मिजाज बदल रहा है
ये कहना बहुतों को खल रहा है,
कि मौसम का मिजाज अब बदल रहा है।
सदियों से हवायें कैद थी कोने में कहीं,
बहने को उनका भी दिल मचल रहा है।
दशकों से जिनके गुर्गे बाँट खाते थे सारे निवाले,
वही अब सबके हलक में उत्तर रहा है।
कसमसाकर रह जाते थे कई सवाल,
अब सबके जेहन से निकल रहा है।
नोंचकर फेंक देना है देशद्रोह के नासूर को,
दशकों से जो इस ब्यवस्था में पल रहा है।
मन कहता है कह दूँ, अब अँधेरा होगा नहीं,
देखो सूरज को, हर कहीं तो निकल रहा है।
ये कारवां है सच का जाएगा दूर तलक,
क्योंकि झूठ का पर्वत अब पिघल रहा है।
©ब्रजेंद्रनाथ
24th May prompt Day 24prompt 24submission
Conf
चित्र: एक कार्टून चरित्र की पीठ पर बंधे डंडे से 90 डिग्री पर बंधे एक और डंडे में ब्रेड बंधा है, और वह दौड़ा जा रहा है। सामने खाई है।
पड़ेगा तुम्हें पछताना
पीठ पर बंधे डंडे से बंधा हुआ है ब्रेड,
उसे देख दौड़ रहा क्यों एब्सेंट माइंडेड।
सामने दिखता नहीं क्या खुला हुआ है डिच?
आगे पैर बढ़ाये तो ऑफ हो जाएगा स्वीच।
खूब लगा लिए तूने खाने के लिए चक्कर,
दिमाग को ठंढा करके सोच जरा घनचक्कर।
हाथ तुम्हारे खुले हुए है, पीठ का डंडा खोलो।
उसके बाद ब्रेड को खोलो और उसे खा लो।
आँख मूंदकर कभी भी दौड़ नहीं तुम लगाना।
मुसीबत बढ़ जाएगी, पड़ेगा तुम्हें पछताना।
©ब्रजेंद्रनाथ √
25th May prompt Day 25prompt 25submission
Conf
चित्र: इस चित्र के आधे भाग में एक पिता अपने बेटे की उंगली थामे है। दूसरे आधे भाग में एक बूढ़ा व्हील चेयर पर है और एक नौजवान उसे थामे है।
सर्वत्र तुम्हारी जय हो
तेरी मुस्कराहटें फैलाती रहे रोशनी,
तेरी चपलताएँ चटपटी चाशनी।
तुम अपने पांवों से
मुझको भी चलना सिखला दे,
उठकर गिरना, गिरकर उठना,
और सम्भलना फिर चल देना,
सारी दुनिया को, जीने का
यही तो है फंडा बतला दे।
तुम पकड़कर मेरी उंगली,
कदम बढ़ाओ ऐसे पथ पर,
नए बदलाव लाओ जग में,
चढ़े चलो रश्मिरथ पर।
सबों के चेहरे पर मुस्कान हो
ऐसे काज जहाँ में करना।
तेरे कर्मों के प्रकाश से,
फैले उजाले सबके अँगना।
तुम सच करना अपने सपने,
दुआएं दे रहे तुम्हारे अपने ।
मैं जब बूढ़ा हो जाऊँगा,
मेरा पाँव शिथिल हो जायेंगा।
सहारा देना तुम मुझको
मेरा जन्म सफल हो जाएगा।
इस जहाँ में निर्भीक बनो तुम
सर्वत्र तुम्हारी जय हो,
हर दिन तुम्हारा मंगलमय हो !
हर दिन तुम्हारा मंगलमय हो।
©ब्रजेंद्रनाथ √
26th May prompt Day 26 prompt 26 submission
Conf
चित्र: एक पौधा लगाकर हाथ के चुल्लू से जल का प्रवाह उसकी जड़ों में दिया जा रहा है।
धरा का भाग्य जगायें
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
पौधे की जड़ों को, गाड़ दो जमीन में,
बढ़ने दो, खड़ा होने दो।
फिर उन जड़ों में जल का प्रवाह दो,
ऊपर और ऊपर बड़ा होने दो।
धरा को हरा करें, सारी पृथ्वी का हो सिंचन,
अपने अंतर का त्याग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
वृक्षों को काटकर बस्तियाँ बसाई,
वनों को उजाड़कर खेतियाँ सजाईं।
आबादी बढ़ती रही, जंगल कटते रहे,
धरा की सतह पर फटती रही बेवाई।
कबतक होगा यह, प्रकृति का दोहन
अब तो चेते, कुछ अनुराग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें।
आओ धारा का भाग्य जगायें।
बादल उड़ते जा रहे गगन में,
कैसे धरा पर वे उतरेंगे ।
सीढ़ियाँ है नहीं वृक्षों की,
कैसे धरा पर वे पसरेंगें।
जल से शून्य धरती का उपवन
संभल जाएं, अपना सौभाग्य जगमगाये।
एक छोटा सा पौधा लगायें।
आओ धरा का भाग्य जगायें।
©ब्रजेंद्रनाथ √
27th May prompt Day 27 prompt 27 submission
Conf
चित्र: एक परी जैसी राजकुमारी अपने पलंग पर लेटी है।
अभिसार को यादों मे पिरो लें
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
खिड़कियों को बन्द मत करो, खोल दो
हवाओं को निर्बाध अंदर तो आने दो।
बादलों में उड़ रहे पवन के रेशों से,
बदन को स्नेहिल स्पर्श से भिंगो लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
उत्कंठित मनसे, उद्वेलित तन से,
उर्जा के प्रबलतम आवेग के क्षण से,
यौवन से जीवन का अविचारित यात्री बन,
अंतर में टूटते तटबंध को टटोंलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
यहाँ प्रेम ज्वर नहीं जीवन का पर्याय है।
खोजता है याचक बन बिखरने का उपाय है।
संचयन में नहीं, अभिसिंचन में अमृत कलश
उड़ेलकर देखे, विस्तार को समों लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
देह, तरंग - सी खोजती है अतल तल
त्वचा और रोम - रोम सूंघते है प्रणय - जल।
आँखों क़ी तराई में डूबने दो आँखों को,
सांसों में सांसों को मिलाकर भींगो लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
चाँद भी देता है लहरों को नेह निमंत्रण,
चांदनी लुटाती है सम्पूर्ण अपना यौवन।
है डूबकर ही जाना, जाना है डूबकर ही,
धड़क रहा है दिल तो, उसे धडकनों में घोलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
नींद नहीं आती, गिन गिन कर तारों को
करवटें बदलकर सोयें, फैला चाँदनी का आँचल।
मलयानिल भी हो चला शांत, बहो धीरे - धीरे
पलकों को कर बंद, अमृत- कलश टटोलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
©ब्रजेंद्रनाथ √
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28th May prompt Day 28 prompt 28 submission
Conf
चित्र: जयमाल पहने हुए नव युगल में पत्नी महावर लगे हाथों की अंजुली से पति की अंजुली में रश्मअनुसार कुछ देते हुए:
तू है मेरा दिलवर
महावर लगे हाथों को
तेरे हाथों में सौंपती हूँ।
जीवन मेरा है तेरा,
समर्पण मैं करती हूँ।
मेरी सांसों में तेरी ही
अब यादें बसा करेंगीं।
तू ही है मेरा रहबर
तेरे संग चला करूंगी।
जीवन में आएंगे, कभी
पतझड़ कभी बसंत।
मुझे उसकी नही परवाह
अब तू है मेरा कंत।
अगर कभी भी कुछ भी
गलती हो जाएगी।
इशारों में बता तू देना,
मैं खुद संभल जाऊंगी।
मन उचाट हो जाये,
कभी मैं रूठ जाऊँ।
मुझको मना लेना तू,
तेरे पास आ मैं जाऊँ।
मन में बसा लिया है,
दिल में समा लिया है।
अपने नाव की पतवार
तेरे हाथों में दे दिया है।
तुझपे है भरोसा
भगवान से भी ज्यादा।
अंतर में उतर गया तू
भगवान से भी ज्यादा।
मुझे साथ लेके चलना
मेरे प्यार मेरे दिलवर।
हम आगे बढ़ चलेंगें
जब तू है मेरा रहबर।
©ब्रजेंद्रनाथ √
29th May prompt Day 29 prompt 29 submission
Conf
चित्र: एक तराजू में एक तरफ एक लड़का और दूसरी तरफ नोटों के बंडल, तराजू के डंडे पर लिखा है educaton।
शिक्षा को मत व्यापार बनाओ।
शिक्षा में अब चल रहा है नोटों का जोर,
अध्ययन और अध्यापन का चला गया है दौर।
पैसा से ले लो भैया डिग्रियाँ हैं बिक रही।
कौन सी डिग्री चाहिए, कीमत दे ले जा सभी।
डिग्रियाँ ले मेरा लाल, क्या कमाल कर जाएगा?
क्या उसकी प्रतिभा में नोटों से निखार आएगा?
यह सवाल है बड़ा बहुत, मंथन चाहिए।
शिक्षा क्या ऐसे चलेगी, मनन चाहिए?
शिक्षा को तौलो मत, इसे मत व्यापार बनाओ।
प्रतिभा का मत करो हनन, इसे मत बीमार बनाओ।
©ब्रजेंद्रनाथ √
30th May prompt Day 30 prompt 30 submission
Conf
चित्र: क्रिकेट के मैदान में भारत का लहराता हुआ झंडा।
यह क्रिकेट का मैदान नहीं, देश का सम्मान है।
भारत का तिरंगा फहर रहा,
क्रिकेट के मैदान में।
चौके छक्के लग रहे,
देश के सम्मान में।
पूरा देश है आ गया
मानों हरे भरे क्रीडांगण में।
तिरंगे की शान बढ़ाने को
खिलाड़ी जुटे इस आंगन में।
कोटि कोटि की नजर लगीं,
क्रिकेट के हर बॉल पर।
कोटि कोटि खिलाड़ी खेल रहे,
उमंगों हैं उबाल पर।
आगे बढ़ो वीरों रखो शान, हमारा देश महान है।
यह क्रिकेट का मैदान नहीं, देश का सम्मान है।
हर बाल है कीमती,
छूटने न पाए,
हर कैच है जोखिम भरा,
बाल चाहे कहीं भी जाये।
इधर झपट लो,
उधर लपक लो,
डाइव मारकर
बाल पकड़ लो।
क्षेत्ररक्षण हो सशक्त,
हर बाल पर रन रोको।
दुश्मन के इरादे पहचानो
हर बैट्समैन टन ठोको।
वीर बांकुरों, विश्व कप ले आओ, देश का अरमान है।
यह क्रिकेट का मैदान नही, देश का सम्मान है।
©ब्रजेंद्रनाथ √
31st May prompt Day 31 prompt 31 submission
Conf
चित्र: सारे धर्मों जैसे हिन्दू, ईसाई, यहूदी, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध, के प्रतीक चिन्ह एक फ्रेम में दिख रहे हैं।
एक धर्म हो मानवता
आओ एक धर्म ऐसा चलाएँ,
जहाँ सारे धर्मों के प्रतीक चिन्ह घुल जाएं,
और उनके जानने और मानने वाले,
एक दूसरे में ऐसे घुलमिल जाएँ,
जहाँ सिर्फ एक धर्म हो मानवता,
दया, प्रेम, करुणा, स्नेह और ममता।
स्व के ऊपर परमार्थ हो,
न कुछ अपना निहितार्थ हो।
हर कोई दर्द देखें तो दूसरों का,
कष्ट दूर करे तो दूसरों का।
हर कोई का मुक़म्मक ईमान हो,
गरीब न हो, हर कोई धनवान हो।
भूख और भय से ऊपर हो,
भ्रष्टाचरण मुक्त, हर कोई की पहचान हो।
कोई मुखौटा न हो,
शुद्ध हो आचरण।
एक ही ईश्वर हो,
जिसका करें सब वंदन।
परस्पर विश्वास हो,
शुद्ध हो अंतःकरण।
छल, कपट, द्वेष, दम्भ,
का मिट जाए चलन।
उल्लास हो, उमंग हो,
जीवन में प्रेमराग हो।
मधुर-मधुर धुन पर नर्तन हो,
परस्पर व्याप्त अनुराग हो।
©ब्रजेंद्रनाथ √
#poetriesonpictures
स्टोरी मिरर साइट पर 1 मई से 31 मई तक हर दिन दिए जाने वाले चित्रों पर मेरे द्वारा लिखी गई कविताएँ जिसके लिए मुझे यह प्रमाणपत्र मिला: इस साइट का लिंक इस प्रकार है:
https://storymirror.com/profile/6g3aqk4j/brajendranath-mishra/poems
21st May prompt Day 21।prompt 21 submission conf
चित्र: तिलश्मी चेहरे, भूतिया जैसे।
दाग छिपा लेते हैं लोग
चेहरे पर चेहरे लगा लेते हैं लोग।
असली चेहरा छुपा लेते हैं लोग।
यह जहाँ एक तिलश्मी जाल है,
कैसे - किसे यहाँ फँसा देते हैं लोग।
कोई चेहरा हँसता हुआ - सा है, मगर
उसके अंदर भी गम छुपा लेते हैं लोग।
आप के नाराज चेहरे से हमें याद आया,
छुपा कर भी बहुत कुछ बता देते हैं लोग।
उनकी पोशाक में जो झक्क सफेदी है,
'मर्मज्ञ' के दामन में दाग छिपा लेते हैं लोग।
©ब्रजेंद्रनाथ √
22nd May prompt Day 22।prompt 22 submission conf
चित्र: जर्सी में एक फुटबॉल लिए खिलाड़ी चला जा रहा है।
राही तू चलता जा
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
राहों पर कंकड़ - पत्थर,
टूट - टूटकर धूल बन गए।
वे सहलाती राही के
पैरों के नीचे फूल बन गए।
नहीं रहेगी थकन,
छाँव के नीचे बना है रास्ता।
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
चले चलो क्रीड़ागण की ओर
ध्येय प्राप्ति को मन संकल्पित।
तू रुकना मत, तू थकना मत,
कभी न हो तन व्यथित।
बाधाओं, अवरोधों से तुम,
जोड़ चलो एक रिश्ता।
राही तू चलता जा,
चलने से तेरा वास्ता।
सत्य शपथ ले, चले चलो तुम,
विजयपथ पर बढे चलो तुम।
अशुभ संकेतों से निडर हो,
रश्मिरथ पर चढ़े चलो तुम।
तन बज्र - सा, मन में शक्ति
झंझावातों में समरसता।
राही तू चलता जा
चलने से तेरा वास्ता।
©ब्रजेंद्रनाथ
23rd May prompt Day 23।prompt 23submission
Conf
चित्र: बड़ी सी तर्जनी जिसपर वोट देने के पहले स्याही लगायी जाती है।
मौसम का मिजाज बदल रहा है
ये कहना बहुतों को खल रहा है,
कि मौसम का मिजाज अब बदल रहा है।
सदियों से हवायें कैद थी कोने में कहीं,
बहने को उनका भी दिल मचल रहा है।
दशकों से जिनके गुर्गे बाँट खाते थे सारे निवाले,
वही अब सबके हलक में उत्तर रहा है।
कसमसाकर रह जाते थे कई सवाल,
अब सबके जेहन से निकल रहा है।
नोंचकर फेंक देना है देशद्रोह के नासूर को,
दशकों से जो इस ब्यवस्था में पल रहा है।
मन कहता है कह दूँ, अब अँधेरा होगा नहीं,
देखो सूरज को, हर कहीं तो निकल रहा है।
ये कारवां है सच का जाएगा दूर तलक,
क्योंकि झूठ का पर्वत अब पिघल रहा है।
©ब्रजेंद्रनाथ
24th May prompt Day 24prompt 24submission
Conf
चित्र: एक कार्टून चरित्र की पीठ पर बंधे डंडे से 90 डिग्री पर बंधे एक और डंडे में ब्रेड बंधा है, और वह दौड़ा जा रहा है। सामने खाई है।
पड़ेगा तुम्हें पछताना
पीठ पर बंधे डंडे से बंधा हुआ है ब्रेड,
उसे देख दौड़ रहा क्यों एब्सेंट माइंडेड।
सामने दिखता नहीं क्या खुला हुआ है डिच?
आगे पैर बढ़ाये तो ऑफ हो जाएगा स्वीच।
खूब लगा लिए तूने खाने के लिए चक्कर,
दिमाग को ठंढा करके सोच जरा घनचक्कर।
हाथ तुम्हारे खुले हुए है, पीठ का डंडा खोलो।
उसके बाद ब्रेड को खोलो और उसे खा लो।
आँख मूंदकर कभी भी दौड़ नहीं तुम लगाना।
मुसीबत बढ़ जाएगी, पड़ेगा तुम्हें पछताना।
©ब्रजेंद्रनाथ √
25th May prompt Day 25prompt 25submission
Conf
चित्र: इस चित्र के आधे भाग में एक पिता अपने बेटे की उंगली थामे है। दूसरे आधे भाग में एक बूढ़ा व्हील चेयर पर है और एक नौजवान उसे थामे है।
सर्वत्र तुम्हारी जय हो
तेरी मुस्कराहटें फैलाती रहे रोशनी,
तेरी चपलताएँ चटपटी चाशनी।
तुम अपने पांवों से
मुझको भी चलना सिखला दे,
उठकर गिरना, गिरकर उठना,
और सम्भलना फिर चल देना,
सारी दुनिया को, जीने का
यही तो है फंडा बतला दे।
तुम पकड़कर मेरी उंगली,
कदम बढ़ाओ ऐसे पथ पर,
नए बदलाव लाओ जग में,
चढ़े चलो रश्मिरथ पर।
सबों के चेहरे पर मुस्कान हो
ऐसे काज जहाँ में करना।
तेरे कर्मों के प्रकाश से,
फैले उजाले सबके अँगना।
तुम सच करना अपने सपने,
दुआएं दे रहे तुम्हारे अपने ।
मैं जब बूढ़ा हो जाऊँगा,
मेरा पाँव शिथिल हो जायेंगा।
सहारा देना तुम मुझको
मेरा जन्म सफल हो जाएगा।
इस जहाँ में निर्भीक बनो तुम
सर्वत्र तुम्हारी जय हो,
हर दिन तुम्हारा मंगलमय हो !
हर दिन तुम्हारा मंगलमय हो।
©ब्रजेंद्रनाथ √
26th May prompt Day 26 prompt 26 submission
Conf
चित्र: एक पौधा लगाकर हाथ के चुल्लू से जल का प्रवाह उसकी जड़ों में दिया जा रहा है।
धरा का भाग्य जगायें
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
पौधे की जड़ों को, गाड़ दो जमीन में,
बढ़ने दो, खड़ा होने दो।
फिर उन जड़ों में जल का प्रवाह दो,
ऊपर और ऊपर बड़ा होने दो।
धरा को हरा करें, सारी पृथ्वी का हो सिंचन,
अपने अंतर का त्याग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें,
आओ धरा का भाग्य जगायें।
वृक्षों को काटकर बस्तियाँ बसाई,
वनों को उजाड़कर खेतियाँ सजाईं।
आबादी बढ़ती रही, जंगल कटते रहे,
धरा की सतह पर फटती रही बेवाई।
कबतक होगा यह, प्रकृति का दोहन
अब तो चेते, कुछ अनुराग दिखायें।
एक छोटा सा पौधा लगायें।
आओ धारा का भाग्य जगायें।
बादल उड़ते जा रहे गगन में,
कैसे धरा पर वे उतरेंगे ।
सीढ़ियाँ है नहीं वृक्षों की,
कैसे धरा पर वे पसरेंगें।
जल से शून्य धरती का उपवन
संभल जाएं, अपना सौभाग्य जगमगाये।
एक छोटा सा पौधा लगायें।
आओ धरा का भाग्य जगायें।
©ब्रजेंद्रनाथ √
27th May prompt Day 27 prompt 27 submission
Conf
चित्र: एक परी जैसी राजकुमारी अपने पलंग पर लेटी है।
अभिसार को यादों मे पिरो लें
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
खिड़कियों को बन्द मत करो, खोल दो
हवाओं को निर्बाध अंदर तो आने दो।
बादलों में उड़ रहे पवन के रेशों से,
बदन को स्नेहिल स्पर्श से भिंगो लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
उत्कंठित मनसे, उद्वेलित तन से,
उर्जा के प्रबलतम आवेग के क्षण से,
यौवन से जीवन का अविचारित यात्री बन,
अंतर में टूटते तटबंध को टटोंलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
यहाँ प्रेम ज्वर नहीं जीवन का पर्याय है।
खोजता है याचक बन बिखरने का उपाय है।
संचयन में नहीं, अभिसिंचन में अमृत कलश
उड़ेलकर देखे, विस्तार को समों लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
देह, तरंग - सी खोजती है अतल तल
त्वचा और रोम - रोम सूंघते है प्रणय - जल।
आँखों क़ी तराई में डूबने दो आँखों को,
सांसों में सांसों को मिलाकर भींगो लें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
चाँद भी देता है लहरों को नेह निमंत्रण,
चांदनी लुटाती है सम्पूर्ण अपना यौवन।
है डूबकर ही जाना, जाना है डूबकर ही,
धड़क रहा है दिल तो, उसे धडकनों में घोलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
नींद नहीं आती, गिन गिन कर तारों को
करवटें बदलकर सोयें, फैला चाँदनी का आँचल।
मलयानिल भी हो चला शांत, बहो धीरे - धीरे
पलकों को कर बंद, अमृत- कलश टटोलें।
अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।
©ब्रजेंद्रनाथ √
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28th May prompt Day 28 prompt 28 submission
Conf
चित्र: जयमाल पहने हुए नव युगल में पत्नी महावर लगे हाथों की अंजुली से पति की अंजुली में रश्मअनुसार कुछ देते हुए:
तू है मेरा दिलवर
महावर लगे हाथों को
तेरे हाथों में सौंपती हूँ।
जीवन मेरा है तेरा,
समर्पण मैं करती हूँ।
मेरी सांसों में तेरी ही
अब यादें बसा करेंगीं।
तू ही है मेरा रहबर
तेरे संग चला करूंगी।
जीवन में आएंगे, कभी
पतझड़ कभी बसंत।
मुझे उसकी नही परवाह
अब तू है मेरा कंत।
अगर कभी भी कुछ भी
गलती हो जाएगी।
इशारों में बता तू देना,
मैं खुद संभल जाऊंगी।
मन उचाट हो जाये,
कभी मैं रूठ जाऊँ।
मुझको मना लेना तू,
तेरे पास आ मैं जाऊँ।
मन में बसा लिया है,
दिल में समा लिया है।
अपने नाव की पतवार
तेरे हाथों में दे दिया है।
तुझपे है भरोसा
भगवान से भी ज्यादा।
अंतर में उतर गया तू
भगवान से भी ज्यादा।
मुझे साथ लेके चलना
मेरे प्यार मेरे दिलवर।
हम आगे बढ़ चलेंगें
जब तू है मेरा रहबर।
©ब्रजेंद्रनाथ √
29th May prompt Day 29 prompt 29 submission
Conf
चित्र: एक तराजू में एक तरफ एक लड़का और दूसरी तरफ नोटों के बंडल, तराजू के डंडे पर लिखा है educaton।
शिक्षा को मत व्यापार बनाओ।
शिक्षा में अब चल रहा है नोटों का जोर,
अध्ययन और अध्यापन का चला गया है दौर।
पैसा से ले लो भैया डिग्रियाँ हैं बिक रही।
कौन सी डिग्री चाहिए, कीमत दे ले जा सभी।
डिग्रियाँ ले मेरा लाल, क्या कमाल कर जाएगा?
क्या उसकी प्रतिभा में नोटों से निखार आएगा?
यह सवाल है बड़ा बहुत, मंथन चाहिए।
शिक्षा क्या ऐसे चलेगी, मनन चाहिए?
शिक्षा को तौलो मत, इसे मत व्यापार बनाओ।
प्रतिभा का मत करो हनन, इसे मत बीमार बनाओ।
©ब्रजेंद्रनाथ √
30th May prompt Day 30 prompt 30 submission
Conf
चित्र: क्रिकेट के मैदान में भारत का लहराता हुआ झंडा।
यह क्रिकेट का मैदान नहीं, देश का सम्मान है।
भारत का तिरंगा फहर रहा,
क्रिकेट के मैदान में।
चौके छक्के लग रहे,
देश के सम्मान में।
पूरा देश है आ गया
मानों हरे भरे क्रीडांगण में।
तिरंगे की शान बढ़ाने को
खिलाड़ी जुटे इस आंगन में।
कोटि कोटि की नजर लगीं,
क्रिकेट के हर बॉल पर।
कोटि कोटि खिलाड़ी खेल रहे,
उमंगों हैं उबाल पर।
आगे बढ़ो वीरों रखो शान, हमारा देश महान है।
यह क्रिकेट का मैदान नहीं, देश का सम्मान है।
हर बाल है कीमती,
छूटने न पाए,
हर कैच है जोखिम भरा,
बाल चाहे कहीं भी जाये।
इधर झपट लो,
उधर लपक लो,
डाइव मारकर
बाल पकड़ लो।
क्षेत्ररक्षण हो सशक्त,
हर बाल पर रन रोको।
दुश्मन के इरादे पहचानो
हर बैट्समैन टन ठोको।
वीर बांकुरों, विश्व कप ले आओ, देश का अरमान है।
यह क्रिकेट का मैदान नही, देश का सम्मान है।
©ब्रजेंद्रनाथ √
31st May prompt Day 31 prompt 31 submission
Conf
चित्र: सारे धर्मों जैसे हिन्दू, ईसाई, यहूदी, मुस्लिम, सिख, जैन, बौद्ध, के प्रतीक चिन्ह एक फ्रेम में दिख रहे हैं।
एक धर्म हो मानवता
आओ एक धर्म ऐसा चलाएँ,
जहाँ सारे धर्मों के प्रतीक चिन्ह घुल जाएं,
और उनके जानने और मानने वाले,
एक दूसरे में ऐसे घुलमिल जाएँ,
जहाँ सिर्फ एक धर्म हो मानवता,
दया, प्रेम, करुणा, स्नेह और ममता।
स्व के ऊपर परमार्थ हो,
न कुछ अपना निहितार्थ हो।
हर कोई दर्द देखें तो दूसरों का,
कष्ट दूर करे तो दूसरों का।
हर कोई का मुक़म्मक ईमान हो,
गरीब न हो, हर कोई धनवान हो।
भूख और भय से ऊपर हो,
भ्रष्टाचरण मुक्त, हर कोई की पहचान हो।
कोई मुखौटा न हो,
शुद्ध हो आचरण।
एक ही ईश्वर हो,
जिसका करें सब वंदन।
परस्पर विश्वास हो,
शुद्ध हो अंतःकरण।
छल, कपट, द्वेष, दम्भ,
का मिट जाए चलन।
उल्लास हो, उमंग हो,
जीवन में प्रेमराग हो।
मधुर-मधुर धुन पर नर्तन हो,
परस्पर व्याप्त अनुराग हो।
©ब्रजेंद्रनाथ √
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