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Thursday, July 11, 2019

स्टोरी मिरर साइट पर 1 मई से 10 मई तक लिखी कविताएँ (भाग 1, Vol I )

#BnmRachnaWorld
#poetriesonpictures

स्टोरी मिरर साइट पर 1 मई से 31 मई तक हर दिन दिए जाने वाले चित्रों पर मेरे द्वारा लिखी गई कविताएँ जिसके लिए मुझे यह प्रमाणपत्र मिला: इस साइट का लिंक इस प्रकार है:
https://storymirror.com/profile/6g3aqk4j/brajendranath-mishra/poems

3rd May के चित्र पर: Prompt 3, Day 3,
sbmission conf.
चित्र: आसमान पर सीढ़ी लगाए हुए एक आदमी कैनवास पर ब्रश से रंग रहा है:




आसमाँ पर कूची चलाऊँ

बादलों पर सीढ़ी लगाऊं, आसमाँ पर कूची चलाऊँ।
उनके संग उड़-उड़, हवा में, रंगीन बिजलियाँ सजाऊँ ।

ऐ पवन रुक जा कहाँ तू बावरी सी जा रही?
बादलों पर लिखी है पाती में अपने दिल का हाल
तू उन्हें भी संग लेकर उड़ती जा, और उड़ती जा,
देना संदेश मेरा और लेना प्रेमा को संभाल।

मैं तो हूँ अभिशप्त दूर पर्वत पर भोगता संत्रास
कैसे पाऊँ प्रिया तेरे अंक को और विश्रांति पाऊँ।

4th May के चित्र पर: बीच में आग जल रही है, माँ और सामने बच्ची हंस रहे है Prompt 4, Day 4,
sbmission conf



जिंदगी की भूख में

आग सी जलती रही है, जिंदगी हर भूख में।
हँस के थापेंगे रोटियाँ, जिंदगी की भूख में।।

भूख भी कोई प्रश्न है, जैसा मन वैसा ही तन
ओढ़ लेंगें रोटियाँ, जिंदगी की भूख में।

आंतों में छुपाकर भूख को, नींद लेते ही रहेंगें
ओढ़ उम्मीदों की चादर, जिंदगी की भूख में।

कल की फिकर, कल पर ही छोड़कर
आज नारे ओढ़ लेंगें, जिंदगी की भूख में।

हड्डियों ने ओढ़ ली है आज चमड़ी की चादर
आंतें जागती रहीं है, जिंदगी की भूख में।

विरासत की सियासत होती रही भूख में पर
तस्वीर कभी बदली नहीं, जिंदगी की भूख में।

5th May का चित्र, हाथ में काले ग्रीज़ सने हुए हैं, Prompt 5, Day 5, submission conf



खींचता हूँ रेखायें

हाथों में लगाकर लेप, मैंने मिटा दी रेखायें।
अपने बाजुओं के दम से खींचता हूँ रेखायें।

जहाँ पर ताप ने सोख ली है नमी धरती की,
मैं बादल बन बरसकर सींचता हूँ रेखायें।

कहीं पर मिट्टी है और है उड़ती धूल के साये,
मगर आशियाँ में तिनकों से सजाता हूँ रेखायें।

जोर कितना हो हवा में, तूफानों से नहीं डरता
कश्तियों के भी पतवार से रचता हूँ रेखायें।

मेरे नशे मन में फैले डोरों के रंग पे ना जाओ,
रोशनी गुल है, अंधेरे में भी खींचता हूँ रेखायें।

6th May Day 6, prompt 6: submission confirmed
चित्र: एक हाथ में मिट्टी और उसपर उगे पौधे से आती रोशनी, दूसरे हाथ से उसे ढंकने की कोशिश:



जुगनू उगाते हैं

चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,
रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।

उन्हीं तस्वीरों पर रोया करते है लोग,
जीवन में जो दूसरों के काम आते है।

कोई तो सूरत होगी इस भीड़ में कहीं,
जिसकी आंखों से आप आंखें मिलाते हैं।

मैं भटकता हूँ नहीं, तिश्नगी में कहीं,
मिलेगा कोई, जो प्यासे के पास जाते हैं।

कुछ लोग तो होंगे सफर में ऐसे भी,
जो दूसरों का बोझ अपने सर उठाते हैं।

©ब्रजेंद्रनाथ

7th May prompt Day 7, prompt 7, Submission।conf
चित्र: एक अंतरिक्ष यात्री के सामने आदि मानव, जानवर के खालों में:


आओ मेरे जग में साथी

तुम हो किस ग्रह के साथी,
आओ मेरे जग में साथी।

देखो इस नवीन धरा को,
हरे भरे बागों को देखो,
देखो ताल तलैया को
रंगीन परागों को देखो।

हम उन्मुक्त वासी हैं जग के
यहाँ न कोई बंधन है।
हम नाचते गाते है खुलकर
यहाँ न कोई उलझन है।

मेरे साथ गुजारो कुछ पल
आओ मेरे संग में साथी।

©ब्रजेंद्रनाथ

8th May prompt Day 8, prompt 8, Submissiin conf
चित्र: एक कार्टून कैरेक्टर छोटे टेबल पर सोया है। उसके चारों तरफ बोतले है। एक बोतल उसके पेट पर भी है।



बोतलों में हंसी ढूढ़ता हूँ

मैं अपने पास फैली
बोतलों में हंसी ढूढ़ता हूँ।
अपने दर्द को उसमें डुबोता हूँ,
उसमें घोलता हूँ,
और उससे खुशी के पल
निकालता हूँ।
कोशिश करता हूँ,
उसे संजोकर रख लूँ,
समेटकर बंद कर दूँ, संदूक में।
...और जरूरत पड़ने पर
उस समय निकालूँ,
उस उस समय निकालूँ,
जब घेरने लगते है,
आँसुओं के घेरे,
संवादों, विवादों और
दुर्वादों की बर्फ पर...
और बर्फ पड़ जाती है।

लेकिन वे पल मुठियों में,
रेत की तरह फिसल पड़ते हैं।
मैं फिर खुशी को ढूढ़ने की
वैसी ही कोशिश करता हूँ।
पर अब हँसी भी नहीं मिलती है।
जिंदगी कहीं फिसलती है,
और फिर नहीं मिलती है।
और फिर नहीं मिलती है।


9th May prompt Day 9, prompt 9, submission conf.
चित्र: एक चिंपांजी के आगे एक लड़की बैठी हुई खिल खिलाकर हंस रही है।



खिली-खिली रहो

खिलखिलाकर हंसती रहो,
तुम खिली खिली रहो।

मुझे हंसते हुए लोग
अच्छे लगते हैं।
चाहे उनकी हंसी
मेरा मजाक ही बनाती हो।
पर तुम मेरा मजाक नहीं
बना रही,
मुझे मालूम है।
तुम मुझे भी हँसाना चाह रही हो।
जो तुम चाह कर भी
नहीं कर सकती।
क्योंकि अगर मैं हंस भी दूँ,
तो मेरी हँसी दिखेगी नही,
मेरा चेहरा ही ऐसा है।
मुझे मालूम है।

पर तुम हँसती रहो,
खिलखिलाती रहो।
मेरे साथ खेलकर अठखेलियाँ,
खिली-खिली रहो!
खिली-खिली रहो!!

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

10th May prompt Day 10, prompt 10 submission conf
चित्र: नंग धड़ंग बच्चों द्वारा जल-क्रीड़ा करना:


बच्चे रहें खुशहाली से

बच्चे कर रहे तड़ाग में जमकर जल विहार,
गर्मी के मौसम में यही राहत और सम्हार।

सूरज ऊपर तप रहा, सोखे ताल तलैया को,
पानी की बूंदे दे दो, फुदक रही गोरैया को।

गर्म हवाओं से जल रहे धरती और गगन,
बाहर निकलने के पहले ढंके सिर और बदन।

छाछ पियें, आमरस पीएं और पियें जल जीरा,
मस्त मेलन, तरबूज और खाएँ ककड़ी खीरा।

सूखने दो समंदर को, और बनने दो बादल,
दौड़ लगाएंगे पावस में, बरसे बूंदे छल छल।

पेड़ लगाओ, करो धरा को आच्छादित हरियाली से,
पर्यावरण स्वच्छ, निर्मल हो, बच्चे रहें खुशहाली से।

©ब्रजेंद्रनाथ


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