#BnmRachnaWorld
#storyromantic
इस कहानी के दोनों भागों को संशोधित कर एक भाग में कर दिया गया है । इसे मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर मेरी आवाज में सुने:
https://youtu.be/7J3d_lg8PME
तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है
(यु एस ए, कैलिफोर्निआ, इरवाइन
से गुजरने वाली सन डिएगो क्रीक (छोटी नदी) की पृष्ठ भूमि पर जन्म लेती प्रेम कहानी!)
वह पार्क के फेंसिंग के पार गुजरती पतली सड़क को हमेशा देखा करता है। यह सड़क इरवाइन में सन डियागो क्रीक
(छोटी नदी) के इस किनारे बनी है, जिसपर पैदल टहलने वाले या साइकिल चलाने वाले ही आते जाते हैं। क्रीक के उस किनारे पाइन और ओक के घने
वृक्ष हैं। उसके पार वह नहीं जानता, क्या है? कल्पना से भी जानने की कोशिश नहीं की, उसने। वह सामने की सड़क और इसपर से गुजरते वाकर्स और
साइकिल चलाते लड़के – लड़कियों को देखा करता। लोग चलते
हुए या साइकिल चलाते हुए रफ्तार में अच्छे लगते हैं। जिन्दगी रफ्तार का ही नाम है। रफ्तार धीमी हो सकती
है। जिन्दगी का रफ्तार विहीन हो जाना, जिन्दगी के थम जाने
जैसा है। यही कहा था उसने केट से।
ऐसे ही वह उस दिन सामने की पतली सड़क पर गुजरते लोगों को देख
रहा था। यहाँ गर्मियों में गर्मी रहती है। लेकिन लू नहीं चलती। शाम को पेड़ों की शाखों से होकर पत्तों से सरसराती हुई हवा ठंढा सुकून देती है। इस मौसम में शाम होने के ठीक पहले लोग घरों से बाहर निकल जाते हैं। दिन में गर्मी होती है और धूप
चिलचिलाती हुई। खड़े हो धूप में, तो बदन जलता है। इसलिए दिन में लोग बाहर निकलने से परहेज करते हैं। पार्क में शाम में छिड़काव-पाइपों ( स्प्रिंकलर) से पानी छोड़
दिया जाता है। गर्म वातावरण से पानी के
फब्बारे मिलकर वातावरण में सोंधी खुशबू के साथ ठंढा अहसास फैलाते हैं।
उस दिन भी वह सड़क के पार देखते हुए किन्हीं खयालों में खोया था। सूर्य का गोला सड़क को रोशनी से नहला रहा था… धीरे-धीरे पश्चिम की ओर उतर रहा था। उस दिन भी वह
लड़की साइकिल से उसी समय गुजरी जिस समय
हर रोज गुजरती थी। वह शाम को अक्सर उस लड़की को तेजी से साइकिल से गुजरते हुए देखता। उसकी पोनी टेल
जैसी चोटी उसके सर पर बंधे हेल्मेट से बाहर निकलकर भी हवा में लहराती हुई दिख जाती। वह ठीक उसी समय सड़क से गुजरती जब सूर्य का गोला धीरे-धीरे पश्चिम क्षितिज
में गोते लगाने को होता। ठीक उसके पहले से ही वह सड़क पर टकटकी लगा देता। उसे
क्यों उसके उस तरफ से
गुजरने का इंतज़ार रहता, उसे भी नहीं मालूम। पर उसे उसके गुजर जाने से पानी के पाइप से फब्बारों का छिड़काव जैसा महसूस होता।
उस दिन गर्मी अधिक थी या वह महसूस कर रहा था, उसे ही मालूम था। वह पार्क के फेन्स के अन्तिम छोर पर
पहुँच गया था। वहाँ पर एक गेट था जो सान
डिएगो क्रीक के दक्षिणी किनारे के समानांतर
गुजरती पतली सड़क पर खुलता था। परंतु वह गेट हमेशा बन्द रहता था। उसमें ताला लगा रहता था। वहीं पर आकर वह उस लड़की
के साइकिल से गुजरने का इन्तजार करता। वह तेज
हवा के झोंके सी आती, हेल्मेट के नीचे से
उसकी पोनी टेल चोटी हवा में लहराती और वह
तेजी से निकल जाती। वह उसकी ओर देखती भी नहीं, लेकिन वह उसे देखता, देखता रहता जबतक हवा
में लहराती उसकी पोनी टेल उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती। उसके रोमरहित सुपुष्ट टांगों पर वह नजरें नहीं टिकाता। लेकिन उसकी साइकिल का हवा की तरह वहाँ से गुजर जाना उसे अच्छा लगता।
उस दिन भी वह ऐसे ही सूर्य के गोले को देख रहा था। हवा
हल्की-हल्की चल रही थी। स्प्रिंकलर से फौब्बारे की शक्ल में पानी का छिड़काव जारी था। सूर्य के गोले का पश्चिम क्षितिज में डुबकी लगाने वक्त
हो रहा था। वह इंतज़ार कर ही रहा था कि साइकिल
से वह तेजी से उधर से गुजरी। वह उसे
जाते हुए देखने के लिये ढलानों की तरफ देख ही रहा था। शायद उसे दूर तक जाते हुए देखने की उसकी इच्छा
रही हो। इसके बाद उसकी आंखें खुलीं तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह लड़की उसे व्हील चेयर सहित
खींचकर सड़क पर ला रही थी। क्या हुआ था, उसे? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
उस लड़की ने कहा था, "Why are you trying to go uphill on this
wheelchair?"
उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। पीछे मुड़कर जब उसने देखा, तो पार्क का गेट खुला हुआ था। वह गेट तो अक्सर बन्द रहता था। इसीलिए वह पार्क से बाहर इस सड़क पर
कभी आता ही नहीं था। आज वह इस तरफ कैसे आ गया? सूर्य को पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखना चाहता था क्या? सड़क पूरब से पश्चिम की ओर क्रीक के बहने की दिशा में
ही पसरी थी। इसलिए सूर्य को
पश्चिम में डूबते हुए देखने के लिये पार्क से सड़क पर आना जरूरी होता। उसके मन में सूर्य को गोते लगाते हुए देखने की
इच्छा जरूर कहीं दबी थी। लेकिन वह पार्क से बाहर
कैसे आ गया? शायद पार्क का गेट आज
खुला हुआ था। उसमें तो ताला लगा रहता था, आज खुला क्यों था?
"मैं
आज जल्दी ही साइकिल पर वापस लौट रही थी। तुम इस व्हील चेयर पर जोर-जोर से अपहिल, ऊपर की ओर आ रहे थे। मैंने वापस लौटते हुए अचानक देखा कि तुम वापस लुढ़कने लगे और सड़क के किनारे, क्रीक के किनारे बने रेलिंग के
तरफ जाने लगे। मैने साइकिल फेंकी और तुम्हारे सहित
व्हील चेयर को पकड़ लिया। ऐसे ऐडवेंचर करते हैं, क्या?"
वह चुपचाप ही रहा। उसने अपनी हेल्मेट उतारी।
"कहाँ रहते हो?"
"पार्क के दूसरी तरफ की
सोसायटी में।"
“चलो मैं तुझे छोड़ देती हूँ।"
वह चुप ही रहा था।
उसने अपनी साइकिल वहीं सड़क पर
छोड़ दी। उस लड़के को व्हील चेयर पर ठीक से बैठायी। उसे उसके घर की ओर लेकर चली।
वह नहीं चाहता था कि कोई उसकी इस तरह मदद करे। लेकिन उसके अंदर यह चाहत भी किसी कोने में अंकुरित हो रही थी कि इसी बहाने कुछ
देर तो साथ रहे।
"केट नाम है मेरा।"
"मुझे बाला सुब्रमण्यम कहते
हैं।"
"तुम इंडियन हो?"
"हाँ।"
कुछ देर तक खामोशी रही।
"क्या तुम रोज ही पार्क में
आते हो?"
"हाँ, शाम को मैं खुद ही इस 'मूविंग आर्म
चेयर' पर सवार होकर पार्क चला आता हूँ।"
उसने अपने व्हील चेयर को मूविंग आर्म चेयर (चलित आराम कुर्सी) कहा था। इस पर उसकी प्रतिक्रिया सुनना चाहता था।
"आर्म चेयर...!" सुनकर वह खूब हँसी थी।
उसका हँसना उसे अच्छा लगा। वह भी धीमे से मुस्कुराया था।
"तुम पार्क में आकर क्या
देखते हो?"
"मुझे सूरज के गोले का
पश्चिम क्षितिज में डुबकी लगाते देखना अच्छा लगता है। लेकिन देख नहीं पाता हूँ। पश्चिम क्षितिज सड़क की दूसरी छोर पर जो है।"
पार्क का फैलाव उत्तर-दक्षिण दिशा में था। सड़क और क्रीक दोनों ही
पूरब- पश्चिम में समानांतर फैले हुए थे।
"...और आज तुम उसी सूरज को
पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखने के लिए पार्क से बाहर आ गए और खुद ही
क्रीक में गोते लगाने को अपनी आर्म चेयर दौड़ा दी...!"
वह खूब जोर से हँसी। उसका हँसना उसे अच्छा लगा। अब तक उसका घर आ चुका था।
"देखो मेरा घर आ गया... ।"
मुझे यहीं छोड़ दो।
"..........।" उसकी चुप्पी ने उसपर क्या प्रभाव डाला? पता नहीं।
अब तक लड़की के अंदर उसे फिर देखने की इच्छा जगती
हुई - सी लगी।
"कल फिर पार्क में आना। परन्तु सूरज को पश्चिम क्षितिज में गोते लगाते हुए देखने के लिए खुद क्रीक में
गोते लगाने मत दौड़ पड़ना...!"
...और वह इस बार और भी जोर से
हँसी… उसका हँसना उसे इस बार और भी अच्छा लगा।
"ओके, बाए...।" कहकर वह मुड़ी और वापस चली गयी।
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