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परमस्नेही मित्रों,
जमशेदपुर से प्रकाशित "गृहस्वामिनी" पत्रिका के स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में "कम ज्ञात नारी स्वतंत्रता सेनानी" शीर्षक से मेरा लेख प्रकाशित हुआ है । इसमें झारखंड की "जोन ऑफ आर्क" संथाल विद्रोह को नेतृत्व देने वाली फूलों और झानो पर एक लेख है। मैं पत्रिका की संपादक आ अपर्णा संत सिंह जी का शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने मेरी रचना को स्थान दिया है। आप भी पढ़ें और कमेंट बॉक्स में अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएँ। सादर आभार! इसका लिंक इसप्रकार है:
http://www.grihaswamini.com/independence-day-7/
मैं यहाँ पर भी पूरा लेख दे रहा हूँ। आप अपने विचार अवश्य दें:
कम ज्ञात नारी स्वतंत्रता सेनानी
भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास कुछ ऐसी वेरांगनाओं की शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है जिसे पाठ पुस्तकों में कोई स्थान नहीं मिला है और जिसकी चर्चा भी शायद ही होती है। उन्हीं में से कुछ पन्नों की धूल को हटाकर मैं दो वीर माताओं की कहानियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, दिनकर की इन पंक्तियों को दुहराते हुए:
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
1) फूलों और झामो मुर्मू: (1750)
फूलों और झामो मुर्मू बहनें थी या नहीं, इसपर इतिहास में कई मत व्यक्त किये गए हैं। पर इनका जन्म भोगनडी गांव में ही हुआ था, इसपर मतैक्य है। ये दोनों, संथाल आदिवासी थी, जो झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमा में स्थित राजमहल की पहाड़ियों के वन क्षेत्र 1750 ई के आसपास आकर बस गयी थी। इन दो आदिवासी स्त्रियों के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को बहुत कम लोग जानते हैं।
1857 ई में प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन के ठीक पहले 1855-1856 में सिद्धू - कान्हू भाइयों द्वारा आहूत संथाल विद्रोह में इन्होंने ने अपनी अहम भूमिका निभायी थी। इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने जमींदारों की मदद से संथाल परिवारों से उनकी जमीन हड़प ली। उन्हें खाने के लिए ऋण लेने पर मजबूर कर दिया। ऋण को वसूल करने के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने पर विवश कर दिया।
इस कुकृत्य के विरोध में संथालों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने ब्रिटेन की मिलिट्री कैम्प पर धनुष बाण, कुल्हाड़ी, तलवार, भालों से हमला कर दिया। संथाल विद्रोह के योद्धा पूरी बहादुरी और शौर्य के साथ लड़े। युद्व लंबा चला। ब्रिटिश सेना के बंदूक जैसे उत्तम आयुधों के आगे संथाल नेतृत्व को हार का सामना पड़ा। इस भीषण युद्ध में फूलों और झामों भी शहीद हो गयी। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अपना नाम अमर कर गयी। किसी भी इतिहास की पुस्तक में इनकी वीर गाथा लिखी नहीं मिलेगी।
इन्हें झारखण्ड का " जोन ऑफ आर्क" कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
2) कित्तूर की रानी चेन्नम्मा:
कर्नाटक के बाहर रानी चेन्नम्मा को बहुत कम लोग जानते हैं। चेन्नम्मा का जन्म बेलगाँव के पास काकती गाँव के लिंगायत परिवार में 23 अक्टूबर 1778 में हुआ था।
उसका विवाह कित्तूर के महाराजा मल्लासरिया से 15 वर्ष की उम्र में ही ही गयी थी। उसने घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध की अन्य कलाओं में प्रशिक्षण लिया था।
1824 में महाराजा की मृत्यु ही गयी। आसपास के गुलाम राजाओं की मदद से ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके राज्य को हड़पने का षड्यंत्र रचाया। 1848 ई में ब्रिटेन की सेना ने कित्तूर पर कब्जा कर उसके खजाने को लूटने का प्रयास किया। उन्हीने 21000 सिपाहियों और 500 बंदूकों की सेना के साथ चारो ओर घेरा डाल दिया।
रानी चेन्नम्मा ने युद्धस्थल में स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश एजेंट और कलेक्टर जॉन थाकरे को मौत का घाट उतार दिया। साथ ही दो अन्य ब्रिटिश अफसरों को बंदी बना लिया। इसके बाद उन्हें इस संधि और सुलहनामे के साथ वापस किया गया कि दुश्मनी समाप्त हो जाएगी और अमन कायम होगा।
जैसा कि ब्रिटिश सेना का इतिहास रहा है, उन्होंने फिर धोखा किया और कित्तूर पर हमला बोल दिया। इस बार भी ब्रिटश फौज को मुँह की खानी पड़ी। 1826 ई में भेदिये की चाल के कारण धोखे से अंग्रेजों ने रानी चेन्नम्मा को गिरफ्तार कर बैलहोंगल जेल में डाल दिया गया। उसी जेल में 1829 में इस वीरांगना की मौत हो गयी। इतिहास एक और रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम की कहानी लिख गया।
©ब्रजेन्द्रनाथ
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