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Saturday, August 15, 2020

तिरंगे के आगे अपना शीश झुकता हूँ (कविता ) #inependencedaypoem

 #BnmRachnaWorld 

#independencedaypoem 









स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मैंने जो कविता लिखी है, वह तीन भागों में है|

पहला भाग में आजादी मिलने के समय देश ने बंटवारे का जो दंश और त्राशदी झेली,  उसका वर्णन है |

दूसरा भाग में पिछले कई प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष युद्धों में जब कोई सेनानी का तिरंगे में लिपटा हुआ ताबूत आता ही,  तो उसकी नवविवाहिता पर क्या गुजराती है, उसका चित्रण है |

तीसरा भाग में आजादी के मायने क्या? क्या एक भूभाग, या एक जज्बा, एक भाव जो स्व से ऊपर राष्ट्र को मानता हो | आइये इन्हीं भावों को दिल में संजोये हुए यह कविता सुनें और स्क्रीन पर दृश्यों का अवलोकन करते चलें ...

   

भाग 1

आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाता हूँ।

भारत माता के चरणों में अपना गीत सुनाता हूँ।

 

देश में आज के दिन कैसी मिली आजादी थी?

नक्शे में भारत माँ के विखंडन की बर्बादी थी।

 

आज के दिन ही मुल्क का दो भागों में फांक हुआ।

आज के दिन ही भारत का दो खंडों में बांट हुआ।

 

पश्चिम और पूरब प्रान्तों से लाखों के घर बर्बाद हुए।

कैसे कहूँ आज के दिन ही हम अंग्रेजों से आजाद हुए?

 

ट्रेनों में भर भर कर लाशों की बोरियां आती थी।

खून के आंसू बहते थे, त्योरियाँ मेरी चढ़ जाती थी।

 

मुल्क कहाँ आजाद हुआ, सत्ता का हस्तांतरण हुआ,

गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों का चरण पड़ा।

 

भगत, आजाद, ' सुभाष को खोकर हमने क्या पाया?

भारत- भूमि का खंडित भूभाग ही  हमारे  पास आया।

 

अपनी संतानों के कृत्यों पर भारत माता रोइ थी।

वसुंधरा के  विखंडन पर अस्मिता अपनी खोई थी।

 

 

आज तिरंगे के आगे मैं शर्मिंदा हो जाता हूँ।

भारत माँ के चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।

 

भाग 2

तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाती हूँ


आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाती हूँ।

भारत माता के चरणों में अपना गीत सुनाती हूँ।

 

बीती रातों की मीठे नींदें, सिलवट याद आते है।

ठिठोली सखियों की, सूने  पनघट  याद आते हैं।

 

भुज बंधों में  मधुमास की भीनी सुगंध छाई थी,

अङ्ग अंग में अनंग ने ऐसी प्यास जगाई थी।

 

मिलन हमारा धरती पर और आसमान इतराया था,

पुरुरवा की बाहों में उर्वशी ने यौवन रस छलकाया था।

 

नजर लग गयी मेरे प्यार को, एक संदेशा आया था,

तुम चल पड़े सीमा पर, माँ का कर्ज चुकाया था।

 

वीर सेनानी की मैं पत्नी,  देश हमारा याद करे,

मैं बन जाऊँ रणचंडी,  तोपों की दहाने याद करे।

 

एक बार जो थाल सजाऊँ करूँ रक्त से तर्पण में,

दुश्मन की छाती को चीरुं, आयुधों का करूँ वर्षण मैं।

 

आग जल रही सीने में, अपने जज्बात सुनाती हूँ।

आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकती हूँ।


भाग 3

कैसे मिली थी आजादी,  मन में जरा विचार लो?

दीवाने थे चढ़ गए शूली पर, मन से उन्हें पुकार लो।

 

आजादी का मतलब क्या, इतना भूभाग हमारा है?

आजादी का मतलब क्या, इतना विस्तार हमारा है?

 

आजादी का मतलब है, जज्बा देश के आन  का।

आजादी का मतलब है, शान, और कुर्बान का।

 

आजादी का मतलब क्या, समझाने मैं आया हूँ।

आजादी के साथ देश के दायित्वों को लाया हूँ।

 

देश के प्रति हो त्याग, समर्पण और हो अपनापन,

देश हित हो सबसे ऊपर, न्योछावर कर दें तनमन।

 

आपस की रंजिशें, तल्खियां, अदावतें हम भूलें,

जयचंदों, मीरजाफरों, की  ढीली कर दें  चूलें।

 

आओ ले आज सपथ, देश का गर्व नहीं झुकने दूंगा।

रक्त की अंतिम बूंद तक, अभियान नहीं रुकने दूंगा।

 

देश विरोधी कुकृत्वों पर शर्मिंदा हो जाता हूँ।

भारत माँ के चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।

©ब्रजेंद्रनाथ √

मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक  पर पूरी कविता  सुनें :
इस चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिलकुल फ्री है :
https://youtu.be/iD24RX6aQ5k

2 comments:

विश्वमोहन said...

बढ़िया कविता!!! बधाई!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय विश्वमोहन जी,आपकी सकारात्मक सराहना के शब्द मुझे सृजन की प्रेरणा देते हैं। हृदय तल से आभार!-- ब्रजेन्द्रनाथ

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