#Bnmrachnaworld
#americatourdiary
07-08-2018, इरवाइन, यू एस ए में 35 वाँ दिन (Day 35):
आज का दिन खास होने वाला था, यह पहले से ही तय था। मेरी पत्नी जी की यहाँ हिन्दुस्तान के विभिन्न हिस्से से आयी मम्मियों के साथ अच्छी-खासी दोस्ती हो गयी है। उसी के तहत उन सबों का विभिन्न घरों में बारी-बारी से जाकर महिला-मिलन-सह-सहभोज का कार्यक्रम चल रहा है।
तीन चार दिन पहले वे सभी अपनी एक हैदराबाद से आयी मित्र के यहाँ गयी थी। वहाँ उन्होंने परम्परागत इदली, बड़ा, दोसा, सांभर, चटनी का लुत्फ उठाया था। आज उसी कार्यक्रम के तहत सारी महिला मंडली मेरे यहाँ, जिस निवास स्थान में मैं ठहरा हूँ, वहाँ आ रही थी। तो आज का दिन खास होना ही था। यह महिला मित्रों की मण्डली थी, इसलिए मैं उसमें शामिल नहीं था।
इस मण्डली की महिलाएँ हिन्दुस्तान के विभिन्न जगहों जैसे देहरादून, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश , तेलंगाना, महाराष्ट्र, झारखंड आदि स्थानों से आयी हुई थीं। इसमें झारखंड बिहार से मेरी पत्नी जी थी। वे सभी 6:30 बजे शाम तक घर पर आ गई। आते ही उन्हें स्टार्ट अप के रूप में पेश किया गाया। मेरी पूत्र वधु ने सबों के लिए छोले, पूड़ी और सेवई मेन कोर्स के रूप में बनायी थी। मैं शाम को घूमने जा ही रहा था कि पत्नी जी ने मुझे सबों की तस्वीर खींचने का आग्रह किया। उन्होने कहा कि ठीक है 20 मिनट में घूमकर आ जाईये। मैं ठीक इतने ही समय में घूमकर वापस आ गया। अच्छी तस्वीरें निकाली गयीं। मैने भी बातचीत में थोडा हिस्सा लिया। मेरी पत्नी जी ने मेरा परिचय एक लेखक के रूप में करवाया। मैने उनसे कहा कि मेरी डो पुस्तकें प्रकाशित हौ चुकी हैं। मैने अपना विज़िटिंग कार्ड भी उन्हें दिया। एक हैदराबाद से आई महिला विजय्लक्ष्मी जी ने अपने पति से मिलवाने का वादा किया। वे भी लेखन कार्य में रुचि रखते हैं।
तो इसतरह आज का दिन भी खास हो गया न!!!
08-08-2018, इरवाइन, यू एस ए में 36 वाँ दिन (Day 36):
आज पास में ही रहने वाले एन भिक्षुपति, जो हैदराबाद के हैं, अपनी पत्नी विजय्लक्ष्मी के साथ मेरे घर पर आये। उनकी पत्नी श्रीमति जी द्वारा आयोजित कल की पार्टी में आयी थी। उन्हें मैने अपना विज़िटिंग कार्ड दिया था। उनसे काफी देर तक बातें हुईं।
उनके तीन लडके हैं। चार लडके थे। एक लड़का, जो थोड़ा कमजोर और अविकसित फेफड़े के कारण बचपन से ही रोगग्रस्त था, उसकी यादों को बयाँ करते हुए वे भावुक हो उठे। 28 वर्ष का होकर पिछले वर्ष वह चल बसा था। उसका जाना दुखद था, लेकिन एक तरह से ठीक भी था, क्योंकि वह पूरी तरह अपने माता-पिता पर निर्भर था, आश्रित था। इसीलिए वे पिछले वर्ष तक कहीं आ - जा नहीं सकते थे। पिछले वर्ष जब उसके देहावसान के बाद, उस उत्तरदायित्व से मुक्त हुए, तब 7 साल से यहाँ रह रहे अपने बेटे के पास पहली बार आये थे। उनसे और भी काफी बातें होती रही। वे हिन्दी में इसलिए बातें कर पा रहे थे, क्योंकि उनका काफी समय मुंबई के एक प्राईवेट सूती मिल में काम करने के दरम्यान हिन्दी बोलने वाले लोगों के बीच रहना हुआ था। वहाँ मिल बन्द हौ जाने के बाद वे परिवार सहित हैदराबाद आ गए। वहाँ उन्होने किराना दूकान चलाया, एल आई सी की एजेन्सी की और अपने लड़कों को उँची शिक्षा दिलाई, हैदराबाद में अपनी जमीन पर अपना मकान बनवाया। अभी संघर्ष का वह समय थोड़ा सहज हुआ है, तब वह सब हमलोगों से साझा कर पा रहे हैं। वे काफी मिलनसार लगे। उन्हीं के प्रयास से भारत से अपने बच्चों के पास आये कई बुजुर्गों को एक साथ मिलवाया। यहाँ मेरे घर के सामने ही वे सभी मिलकर ताश खेलते थे। अब यहाँ के लीसिन्ग ऑफ़िस ने क्लब का एक वातानुकूलित कमरा उपलब्ध करवा दिया है, इसलिए अब वे सब वहाँ ताश खेलते हैं। कुछ लोग जो नहीं भी खेलते हैं, वे गपशप करते हैं।
आज शाम में उसी पार्क में जाना हुआ, जहाँ बच्चों को गोलबंद कर उन्हें हिन्दू संस्कारों में संस्कारित होने की शिक्षा दी जा रही है। मैं भी उसमें शामिल हुआ। एक छोटी लड़की बाँसुरी पर "जन, गण, मन....." की धुन बजा रही त्गी। मुझे भी खूब आनन्द आया। मैं इलाहाबाद से आये सर्वेश कुमार जी से मिला। वे बचपन में 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' की शाखाओं में भाग लेते रहे थे। उसमें से कुछ खास चीजें बच्चों को सिखलाना चाह रहे थे। उनका प्रयास बहुत उत्तम और सराहनीय लगा। उनसे बात करते हुए पता चला कि यहाँ पल और बढ़ रहे हिन्दुस्तानी बच्चों को अपनी जड़ों के बारे में जानना, हिन्दुत्व और हिन्दू जीवन के बारे में बतलाना कितना जरूरी है।
बच्चे बड़े होते हुए जब थोड़ा समझने लायक हो जाते हैं, वे हिन्दु जीवन और हिन्दुत्व के बारे में कनफ्युज्ड से हो जाते हैं। साथ ही अपने दोस्तों और यहाँ के माहौल में लगता है कि ईसाइयत को सीधा, सहज और सरल ढंग से समझा और निभाया जा सकता है। इसलिए वे बड़े होकर ईसाई धर्म में धर्मांतरित होकर ईसाइयत जीवन शैली को अपना लेते हैं। इससे कैसे बचा जा सके या बचाया जा सके, यही उनकी सबसे बड़ी चिन्ता लगी। इसी से इस तरह के समूहों में बच्चों को हिन्दू जीवन में संस्कारित करने की पहल कई जगह चल रही है।
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07-08-2018, इरवाइन, यू एस ए में 35 वाँ दिन (Day 35):
आज का दिन खास होने वाला था, यह पहले से ही तय था। मेरी पत्नी जी की यहाँ हिन्दुस्तान के विभिन्न हिस्से से आयी मम्मियों के साथ अच्छी-खासी दोस्ती हो गयी है। उसी के तहत उन सबों का विभिन्न घरों में बारी-बारी से जाकर महिला-मिलन-सह-सहभोज का कार्यक्रम चल रहा है।
तीन चार दिन पहले वे सभी अपनी एक हैदराबाद से आयी मित्र के यहाँ गयी थी। वहाँ उन्होंने परम्परागत इदली, बड़ा, दोसा, सांभर, चटनी का लुत्फ उठाया था। आज उसी कार्यक्रम के तहत सारी महिला मंडली मेरे यहाँ, जिस निवास स्थान में मैं ठहरा हूँ, वहाँ आ रही थी। तो आज का दिन खास होना ही था। यह महिला मित्रों की मण्डली थी, इसलिए मैं उसमें शामिल नहीं था।
इस मण्डली की महिलाएँ हिन्दुस्तान के विभिन्न जगहों जैसे देहरादून, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश , तेलंगाना, महाराष्ट्र, झारखंड आदि स्थानों से आयी हुई थीं। इसमें झारखंड बिहार से मेरी पत्नी जी थी। वे सभी 6:30 बजे शाम तक घर पर आ गई। आते ही उन्हें स्टार्ट अप के रूप में पेश किया गाया। मेरी पूत्र वधु ने सबों के लिए छोले, पूड़ी और सेवई मेन कोर्स के रूप में बनायी थी। मैं शाम को घूमने जा ही रहा था कि पत्नी जी ने मुझे सबों की तस्वीर खींचने का आग्रह किया। उन्होने कहा कि ठीक है 20 मिनट में घूमकर आ जाईये। मैं ठीक इतने ही समय में घूमकर वापस आ गया। अच्छी तस्वीरें निकाली गयीं। मैने भी बातचीत में थोडा हिस्सा लिया। मेरी पत्नी जी ने मेरा परिचय एक लेखक के रूप में करवाया। मैने उनसे कहा कि मेरी डो पुस्तकें प्रकाशित हौ चुकी हैं। मैने अपना विज़िटिंग कार्ड भी उन्हें दिया। एक हैदराबाद से आई महिला विजय्लक्ष्मी जी ने अपने पति से मिलवाने का वादा किया। वे भी लेखन कार्य में रुचि रखते हैं।
तो इसतरह आज का दिन भी खास हो गया न!!!
08-08-2018, इरवाइन, यू एस ए में 36 वाँ दिन (Day 36):
आज पास में ही रहने वाले एन भिक्षुपति, जो हैदराबाद के हैं, अपनी पत्नी विजय्लक्ष्मी के साथ मेरे घर पर आये। उनकी पत्नी श्रीमति जी द्वारा आयोजित कल की पार्टी में आयी थी। उन्हें मैने अपना विज़िटिंग कार्ड दिया था। उनसे काफी देर तक बातें हुईं।
उनके तीन लडके हैं। चार लडके थे। एक लड़का, जो थोड़ा कमजोर और अविकसित फेफड़े के कारण बचपन से ही रोगग्रस्त था, उसकी यादों को बयाँ करते हुए वे भावुक हो उठे। 28 वर्ष का होकर पिछले वर्ष वह चल बसा था। उसका जाना दुखद था, लेकिन एक तरह से ठीक भी था, क्योंकि वह पूरी तरह अपने माता-पिता पर निर्भर था, आश्रित था। इसीलिए वे पिछले वर्ष तक कहीं आ - जा नहीं सकते थे। पिछले वर्ष जब उसके देहावसान के बाद, उस उत्तरदायित्व से मुक्त हुए, तब 7 साल से यहाँ रह रहे अपने बेटे के पास पहली बार आये थे। उनसे और भी काफी बातें होती रही। वे हिन्दी में इसलिए बातें कर पा रहे थे, क्योंकि उनका काफी समय मुंबई के एक प्राईवेट सूती मिल में काम करने के दरम्यान हिन्दी बोलने वाले लोगों के बीच रहना हुआ था। वहाँ मिल बन्द हौ जाने के बाद वे परिवार सहित हैदराबाद आ गए। वहाँ उन्होने किराना दूकान चलाया, एल आई सी की एजेन्सी की और अपने लड़कों को उँची शिक्षा दिलाई, हैदराबाद में अपनी जमीन पर अपना मकान बनवाया। अभी संघर्ष का वह समय थोड़ा सहज हुआ है, तब वह सब हमलोगों से साझा कर पा रहे हैं। वे काफी मिलनसार लगे। उन्हीं के प्रयास से भारत से अपने बच्चों के पास आये कई बुजुर्गों को एक साथ मिलवाया। यहाँ मेरे घर के सामने ही वे सभी मिलकर ताश खेलते थे। अब यहाँ के लीसिन्ग ऑफ़िस ने क्लब का एक वातानुकूलित कमरा उपलब्ध करवा दिया है, इसलिए अब वे सब वहाँ ताश खेलते हैं। कुछ लोग जो नहीं भी खेलते हैं, वे गपशप करते हैं।
आज शाम में उसी पार्क में जाना हुआ, जहाँ बच्चों को गोलबंद कर उन्हें हिन्दू संस्कारों में संस्कारित होने की शिक्षा दी जा रही है। मैं भी उसमें शामिल हुआ। एक छोटी लड़की बाँसुरी पर "जन, गण, मन....." की धुन बजा रही त्गी। मुझे भी खूब आनन्द आया। मैं इलाहाबाद से आये सर्वेश कुमार जी से मिला। वे बचपन में 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' की शाखाओं में भाग लेते रहे थे। उसमें से कुछ खास चीजें बच्चों को सिखलाना चाह रहे थे। उनका प्रयास बहुत उत्तम और सराहनीय लगा। उनसे बात करते हुए पता चला कि यहाँ पल और बढ़ रहे हिन्दुस्तानी बच्चों को अपनी जड़ों के बारे में जानना, हिन्दुत्व और हिन्दू जीवन के बारे में बतलाना कितना जरूरी है।
बच्चे बड़े होते हुए जब थोड़ा समझने लायक हो जाते हैं, वे हिन्दु जीवन और हिन्दुत्व के बारे में कनफ्युज्ड से हो जाते हैं। साथ ही अपने दोस्तों और यहाँ के माहौल में लगता है कि ईसाइयत को सीधा, सहज और सरल ढंग से समझा और निभाया जा सकता है। इसलिए वे बड़े होकर ईसाई धर्म में धर्मांतरित होकर ईसाइयत जीवन शैली को अपना लेते हैं। इससे कैसे बचा जा सके या बचाया जा सके, यही उनकी सबसे बड़ी चिन्ता लगी। इसी से इस तरह के समूहों में बच्चों को हिन्दू जीवन में संस्कारित करने की पहल कई जगह चल रही है।
1 comment:
सहेलियों के सम्मिलन का सुन्दर वर्णन! साधुवाद!
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