प्रकृति जीवन रस बरसाती है
प्रकृति हमारी माता है
वह जीवन रस बरसाती है।
जबसे वह अस्तित्व में आई
उसने बाँटे जीवन अनन्त।
ब्रह्मांड में वह पाई विस्तार
उर्जा फ़ैली दिग दिगंत।
हम सब उसकी संतानें है
अमृत रस पिलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
जीवन पोषित करने को
उसने दिए हवा और जल।
उसने दिए प्रकाश सूरज का,
उसने दिए अन्न और फल।
माँ का दूध दिया उसने
जो पुष्ट हमें कर पाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
सूरज की रोशनी उससे है
चन्दा में है धवल चांदनी।
बादल में तड़ित- प्रभा उससे
उससे ही है हरी धरिणी।
हमारी है अन्नपूर्णा माँ
वह लोरी गा हमें सुलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
जल बन कभी बहा करती है,
सरिता की निर्झरणी - सी।
आगे बढ़ सरितायें मिलकर,
बहती प्रवाहमयी तटिनी - सी।
धरती को उर्वर करती वह,
सींचित कर सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
क्या - क्या नहीं दिये उसने,
अगणित हैं उसके उपकार,
इसके बदले कुछ लिया नहीं,
कुत्सित हैं हमारे आचार।
हमने उसको दुःख दिए हैं,
वह सबको सहलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
धरती का कलेजा चीर - चीर,
खनिज निकाले हमने कितने।
सागर की अतल गहराई से भी
तेल निकाले कितने हमने।
फिर भी सहती रही चुप चाप
हमारे जीवन सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
बस्तियाँ बसाने में हमने
वन सारे उजाड़ दिए।
वन्य प्राणी अब जाएँ कहाँ
उनके बसेरे उखाड़ दिए।
वह चुपचाप हमारी करतूतों
पर आवरण डालती जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
अपनी सुविधाओं के लिए
कल कारखाने बनाये हमने।
पर उनके अवशेषों से दूषित
कर दी धरा और जल कितने।
माफ़ किया माँ ने पापों को
बादल बनकर धो जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
अब तो चेत ऐ मानव जन
कर आवृत हरियाली से।
पर्यावरण बचा ले धरा का
बच्चे जीयें खुशहाली से।
माता का फैला है आँचल
वरदान तुझे दे जाती है
वह जीवन रस बरसाती है।
वह जीवन सरस बनाती है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/aEPQBYjfKBM
प्रकृति हमारी माता है
वह जीवन रस बरसाती है।
जबसे वह अस्तित्व में आई
उसने बाँटे जीवन अनन्त।
ब्रह्मांड में वह पाई विस्तार
उर्जा फ़ैली दिग दिगंत।
हम सब उसकी संतानें है
अमृत रस पिलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
जीवन पोषित करने को
उसने दिए हवा और जल।
उसने दिए प्रकाश सूरज का,
उसने दिए अन्न और फल।
माँ का दूध दिया उसने
जो पुष्ट हमें कर पाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
सूरज की रोशनी उससे है
चन्दा में है धवल चांदनी।
बादल में तड़ित- प्रभा उससे
उससे ही है हरी धरिणी।
हमारी है अन्नपूर्णा माँ
वह लोरी गा हमें सुलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
जल बन कभी बहा करती है,
सरिता की निर्झरणी - सी।
आगे बढ़ सरितायें मिलकर,
बहती प्रवाहमयी तटिनी - सी।
धरती को उर्वर करती वह,
सींचित कर सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
क्या - क्या नहीं दिये उसने,
अगणित हैं उसके उपकार,
इसके बदले कुछ लिया नहीं,
कुत्सित हैं हमारे आचार।
हमने उसको दुःख दिए हैं,
वह सबको सहलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
धरती का कलेजा चीर - चीर,
खनिज निकाले हमने कितने।
सागर की अतल गहराई से भी
तेल निकाले कितने हमने।
फिर भी सहती रही चुप चाप
हमारे जीवन सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
बस्तियाँ बसाने में हमने
वन सारे उजाड़ दिए।
वन्य प्राणी अब जाएँ कहाँ
उनके बसेरे उखाड़ दिए।
वह चुपचाप हमारी करतूतों
पर आवरण डालती जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
अपनी सुविधाओं के लिए
कल कारखाने बनाये हमने।
पर उनके अवशेषों से दूषित
कर दी धरा और जल कितने।
माफ़ किया माँ ने पापों को
बादल बनकर धो जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।
अब तो चेत ऐ मानव जन
कर आवृत हरियाली से।
पर्यावरण बचा ले धरा का
बच्चे जीयें खुशहाली से।
माता का फैला है आँचल
वरदान तुझे दे जाती है
वह जीवन रस बरसाती है।
वह जीवन सरस बनाती है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/aEPQBYjfKBM
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